क्या चलने का नाम ही ज़िन्दगी है?

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“चलने का नाम ही ज़िन्दगी है” सुनने में यह वाक्य कितना सरल और सुलझा हुआ लगता है ना? व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए लेकिन यह वाक्य इतना भी सरल और सुलझा हुआ नहीं है। शायद मेरे जैसे और भी कितने ही लोग होंगे जिन्हें यह वाक्य किसी न किसी स्तर पर बेचैन करता होगा। कारण यह है कि मेरे जैसे चलने में लगभग असमर्थ व्यक्ति के लिए इस वाक्य में कितने ही ऐसे अर्थ छुपे हैं जिन्होंने हमारी ज़िन्दगी को परिभाषित किया है।

आपने जब यह वाक्य पढ़ा होगा तो शायद चलना शब्द को ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के अर्थ में ही लिया होगा। उस दृष्टिकोण से यह वाक्य बिलकुल सटीक भी है। जब तक ज़िन्दगी है हमें आगे ही तो बढ़ते रहना है। थक कर हम आराम करने के लिए एक छोटा विराम ले सकते हैं लेकिन एक ही जगह ठहर जाने का विकल्प नहीं है।

मैं चाह कर भी जब भी यह या ऐसा कोई और वाक्य पढ़ती हूँ तो ‘चलना’ को सिर्फ़ आगे बढ़ने के अर्थ में नहीं ले पाती। मैं ‘चलना’ को चलने की शारीरिक क्रिया से जोड़ ही लेती हूँ। कारण यह है कि मुझे इस वाक्य को मेरे जीवन के शुरूआती दौर में इसी दृष्टिकोण से समझाया गया था। मुझे बताया गया था कि यदि मैं चल न पाऊँ तो मैं न ज़िन्दगी जी पाऊँगी न कहीं पहुँच पाऊँगी। अट्ठारह महीने की उम्र में पोलियो के कारण चलने की क्षमता खो देने के बाद अट्ठारह वर्ष से भी अधिक तक मैंने अपनी ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा भाग चल सकने की कोशिश या न चल पाने की कुंठा में बिताया है क्योंकि मैं भी यही मान कर बैठी थी कि ‘चलना ही ज़िन्दगी है’।

एक वयस्क के रूप में लेकिन मैंने अपने जीवन के अनुभवों से जो सीखा है वे अनुभव मुझे इस या ऐसे किसी भी अन्य वाक्य के लिए विद्रोह से भर देते हैं। मैं चीख कर कह देना चाहती हूँ कि “चलना ही ज़िन्दगी नहीं है।” आज भी सार्वजनिक जगहों पर निकलते ही गाहे-बगाहे अवांछित-सी टिप्पणियाँ सुनने को मिल ही जाती हैं जिसमें कोई अनजान व्यक्ति मेरे न चल सकने पर अफ़सोस जताता है या किसी ऐसे नीम-हकीम का पता बताता है जो जादुई रूप से मुझे चलने की शक्ति प्रदान कर सकता है। यह सभी टिप्पणियाँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसी बात को दोहराती हैं कि “चलना ही ज़िन्दगी है, यदि आप चल नहीं रहे तो न आप ज़िन्दगी जी पाएँगे, न ज़िन्दगी में कहीं पहुँच पाएँगे।”

ख़ैर, व्यक्तिगत ज़िन्दगी में अब ऐसी कोई भी बात मुझे प्रभावित नहीं करती क्योंकि मैंने ज़िन्दगी को अपने नज़रिए से देखना सीख लिया है। आज इस आलेख में इस बात को उठाने का मेरा उद्देश्य बस इतना ही है कि मैं ऐसे माता-पिता तक यह बात पहुँचा सकूँ जिनका बच्चा चलने में (या बोलने या ऐसा कोई भी काम करने में) असमर्थ हो। ज़िन्दगी उस एक क्रिया तक नहीं रूकती… ज़िन्दगी उससे कहीं अधिक बड़ी है।

मैं यह नहीं कहती कि इलाज़ कराने या ‘सामान्य’ के स्तर पर चलने या किसी काम को करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए लेकिन पूरी ज़िन्दगी का केंद्र किसी एक क्रिया पर सिमट कर रह जाना ग़लत है। यदि आप चलने में असमर्थ अपने बच्चे को सामान्य बच्चों जैसा चलाने की कोशिश में उसकी पढ़ाई में बाधा डाल रहे हैं तो आप उसके साथ ग़लत कर रहे हैं। आपके द्वारा डाला गया चलने का मानसिक दबाव यदि आपके बच्चे को एक आम मासूमियत भरा बचपन जीने से रोक रहा है तो बेशक आप ग़लत कर रहे हैं। मैं यहाँ उदाहरणों की लम्बी सूची नहीं डालना चाहती लेकिन आप ढूंढे तो आपको ऐसे हज़ारों उदाहरण मिल जाएँगे जो लोग बिना चले ज़िन्दगी जी भी रहे हैं और उपलब्धियों के मुकाम को भी हासिल कर रहे हैं।

विकलांग बच्चों के माता-पिता के अलावा मैं ये बात हर उस व्यक्ति से भी कहना चाहती हूँ जो किसी विकलांग व्यक्ति को देखते ही उनकी ज़िन्दगी पर अफ़सोस जताने के लिए मचल उठते हैं। यह बात बेहद मुमकिन है कि आप जिस विकलांग व्यक्ति को देख कर अफ़सोस जताने आगे बढ़े हैं वह आपसे ज्यादा ख़ुश और अर्थपूर्ण जीवन जी रहा हो। यदि ऐसा नहीं भी है तो भी आपके अफ़सोस जता देने से उसके जीवन में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आ जाएगा।

चलना बेशक मानव जाति के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण क्रिया है लेकिन यह एक क्रिया आपकी पूरी ज़िन्दगी से बड़ी नहीं है। आगे बढ़ते रहना ज़रूरी है लेकिन चलना ही ज़िन्दगी नहीं है।

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नूपुर शर्मा
Nupur
1 year ago

आलोकिता जी, आपका आलेख समाज को सकारात्मक दृष्टिकोण देता है। समाज को बताता है कि ज़िन्दगी बहुत बड़ी (लम्बी नहीं) होती है। कोई भी शारीरिक कमीं इसका रास्ता नहीं सकती है और आगे बढ़ते रहने का नाम ही ज़िन्दगी है।

सुनील रावत
सुनील रावत
1 year ago

आपकी सोच को मैं सलाम करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि आप जैसे लोगों का हौसला और बड़े ताकि जो लोग व्हीलचेयर पर हैं उनको यह ना लगे कि मैं चल नहीं सकता तो मैं कुछ नहीं कर सकता ऐसा नहीं है हां चलना जरूरी है पर अगर आप के हौसले बुलंद है तो आप बगैर चले हुए भी हर चीज कर सकते हैं और अपने जीवन का हर पल वैसे ही जी सकते हैं जैसे आप चाहे और आपके मैसेज से उन लोगों का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा जो भी चेयर पर हो क्या या विकलांग हो अपने जीवन से निराश है आप का मैसेज पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लगा और आपकी सोच को मैं तहे दिल से सलाम करता हूं आपका भाई सुनील

सुनील थुआ
सुनील+कुमार+थुआ
1 year ago

संवेदनशील आलेख

Kumar Deepak
Kumar Deepak
1 year ago

Awesome writing

Mohini
Mohini
1 year ago

a beautiful way of thinking…
Definitely pairon par chalna zaruri nahi

Smita Shree
Smita Shree
1 year ago

वाकई बहुत सकारात्मक ही नहीं बल्कि नितांत व्यावहारिक पहलू जो लेखिका के जवन अनुभव से पनपा है।
धन्यवाद आपका एक और पहलू की ओर सोच को ले जाने के लिए, बहुत प्यार और सामर्थ्य आपको ❣️👌

Rashmi Bhatia
Rashmi Bhatia
1 year ago

Nice read. 😊 Good luck to you.👍

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