विकलांगता आपके जीवन की कठिनता को बढ़ा देती है। फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं जो विकलांगता को अपनी उपलब्धियों के रास्ते में अड़चन नहीं बनने देते। आत्म-विश्वास ही उनकी सबसे बड़ी ताकत होती है और उनकी हिम्मत उन्हें सफलता और शोहरत तक पहुँचाती है।
मैं यहाँ पेश कर रही हूँ ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध भारतीय विकलांग व्यक्तियों की सूची जिन्होंने विकलांगता के बावजूद बड़ी सफलताएँ हासिल की हैं।
इस सूची को किसी विशेष क्रम में नहीं लिखा गया। इसमें और भी नाम जोड़े जाने शेष हैं। आपकी नज़र में कोई ऐसा व्यक्ति है जो इस सूची का हिस्सा हो सकता है तो हमें अवश्य बताइए। विश्व के कुछ प्रसिद्ध विकलांगजन की सूची भी आप देख सकते हैं।
अभिषेक बच्चन
विकलांगता: डिस्लेक्सिया
अभिषेक बच्चन एक भारतीय अभिनेता और फ़िल्म निर्माता हैं। डिस्लेक्सिया के कारण उन्हें अपने बचपन में काफ़ी तकलीफ़ें झेलनी पड़ी थीं। नौ वर्ष की उम्र में उनकी इस विकलांगता का पता चल पाया था। बॉलीवुड में एक अभिनेता के रूप में काम करते हुए उन्होंने प्रसिद्धि हासिल की। युवा (2004), सरकार (2005), कभी अलविदा ना कहना (2006) जैसी फ़िल्मों में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया। इन्हें अब तक सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के रूप में तीन बार फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। अभिषेक बच्चन ने फिल्म पा (2009) के लिए हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता।
इरा सिंघल
विकलांगता: स्कोलियोसिस
इरा सिंघल एक आई.ए.एस. अधिकारी हैं जिन्होंने साल 2014 में पूरे देश में पहला स्थान प्राप्त किया था। इनका जन्म 31 अगस्त 1983 को मेरठ में हुआ था। कंप्यूटर साइंस से स्नातक करने के बाद इन्होंने फैकल्टी ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज, दिल्ली विश्वविध्यालय से मार्केटिंग और फाइनेंस में एम्.बी.ए. की दोहरी डिग्री हासिल की।
ललित कुमार ‘सम्यक ललित’
विकलांगता: दोनों पैर पोलियो से प्रभावित; बैसाखियों से चलते हैं
ललित कुमार, सम्यक ललित के नाम से भी जाने जाते हैं। आप विकलांगता विषयों से जुड़ा दशमलव नामक एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं जिस पर 2,10,000 से अधिक दर्शक हैं। भारत के विकलांग व्यक्तियों के बीच ललित की अच्छी पहचान है। वे ईवारा फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं और एक प्रसिद्ध विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता हैं। ललित ने अपने जीवन के आधार पर ‘विटामिन ज़िन्दगी’ नाम से एक पुस्तक लिखी है जो हिन्दी में अब तक लिखी गई बेहतरीन प्रेरणादायक किताबों में से एक है। वे एक राष्ट्रीय पुरस्कार (डिसेबल्ड रोल मॉडल) विजेता हैं।
ज्योति आम्गे
विकलांगता: बौनापन
दुनिया की सबसे छोटी जीवित महिला के रूप में ज्योति के नाम एक विश्व कीर्तिमान है। वे कई बार टी.वी. कार्यक्रमों में आ चुकी हैं। उनका बौनापन एक अनुवांशिक बीमारी एकौनड्रॉप्लेज़िया के कारण है।
डॉ. सुरेश एच. आडवानी
विकलांगता: पोलियो, व्हीलचेयर इस्तेमाल करते हैं
डॉ. सुरेश एच. आडवानी भारत के एक प्रतिष्ठित कैंसर विशेषज्ञ हैं जिन्हें भारत में हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण आरम्भ करने का श्रेय दिया जाता है। पद्म भूषण से सम्मानित डॉ. सुरेश आडवानी को आठ वर्ष की उम्र में पोलियो हुआ था। इन्होंने मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. और एम.डी. की डिग्री हासिल की। इन्हें मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (2005) द्वारा डॉ. बी.सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया।
भरत कुमार
विकलांगता: बिना बाएँ हाथ के पैदा हुए
भरत एक पैरा-तैराक हैं जिन्होंने दो अंतरराष्ट्रीय खिताब और 50 से अधिक पदक जीते हैं। इन्होंने इंग्लैंड, आयरलैंड, हॉलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों में प्रतियोगिताओं में भाग लिया है। भरत एक मजदूर पिता के घर पैदा हुए। ग़रीबी और विकलांगता दोनों के साथ जीवन जीते हुए इन्होंने अपनी उपलब्धियों से एक अलग जगह बनाई है।
प्रीती श्रीनिवासन
विकलांगता: क्वाड्राप्लेजिक
प्रीती तमिलनाडु के अंडर-19 महिला क्रिकेट की कप्तान थीं। इन्होंने 1997 की राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए अपनी टीम की कप्तानी की थी। उस वक़्त वे महज़ 17 साल की थीं। इसके अलावा प्रीती तैराकी की भी चैम्पियन थीं। 50 मीटर ब्रैस्टस्ट्रोक में इन्होंने राज्य स्तर पर स्वर्ण पुरस्कार जीता था। 18 साल की उम्र में एक दुर्घटना के कारण इनकी गर्दन के नीचे का पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। लेकिन इसके बाद भी प्रीती एक चैंपियन ही रही। उन्होंने ‘सोलफ्री’ नाम से एक संस्था शुरू की जो रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित लोगों को पुनर्स्थापित करने के लिए काम करती है। सोलफ्री भारतीय युवाओं में इस तरह की चोटों की रोकथाम के लिए जागरूकता फैलाने का भी काम करती है।
एच. बोनिफेस प्रभु
विकलांगता: क्वाड्राप्लेजिक
एच. बोनिफेस प्रभु पद्म श्री से सम्मानित व्हीलचेयर टेनिस खिलाड़ी हैं। इनका जन्म 14 मई 1972 को बैंगलोर में हुआ था। मात्र चार वर्ष की आयु में एक ट्यूमर के कारण वे क्वाड्राप्लेजिक हो गए थे। शॉटपुट और जैवलीन थ्रो से उन्होंने अपने खेल जीवन की शुरुआत की। प्रभु ने 1996 में यू.के. में हुए विश्व व्हीलचेयर गेम्स में शॉट पुट में स्वर्ण पदक और डिस्कस थ्रो में रजत पदक जीता था। वह अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाले पहले भारतीय हैं। इसके बाद इन्होंने अपना ध्यान व्हीलचेयर टेनिस में लगाया और 1998 विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीता। उनके कैरियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग एकल में 17 और युगल में 19 रही है।
सुधा चंद्रन
विकलांगता: दाहिने पैर का विच्छेदन (ऐमप्युटेशन)
सुधा चंद्रन भारतीय टी.वी. और फ़िल्मों की अदाकारा और कुशल भरतनाट्यम नर्तिका हैं। इनका जन्म 27 सितम्बर 1965 को हुआ था। मई 1981 में 16 वर्ष की आयु में एक कार दुर्घटना में वे घायल हुईं और परिणामस्वरूप उनके दाहिने पैर को काटना पड़ा। उनका फ़िल्मी कैरियर तेलुगु फ़िल्म ‘मयूरी’ से आरम्भ हुआ। यह फ़िल्म सुधा के जीवन जीवन पर ही आधारित है। बाद में इस फ़िल्म की डबिंग तमिल और मलयालम भाषाओं में भी हुई। 1986 में उस फ़िल्म को दोबारा हिन्दी में ‘नाचे मयूरी’ नाम से बनाया गया। इस फ़िल्म की नायिका मयूरी का पैर कटने के बाद उसे नकली पैर (जयपुर फ़ुट) मिलता है और वह इससे दोबारा नाचना सीखती है।
अरुणिमा सिन्हा
विकलांगता: घुटने के नीचे बाएँ पैर का कटा होना
अरुणिमा सिन्हा पहली महिला हैं जिन्होनें पैर कटे होने के बावजूद माउंट एवेरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। अरुणिमा का जन्म 20 जुलाई 1988 को हुआ था। इनकी रूचि खेलों में थी और ये राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी भी बनीं। 12 अप्रैल 2011 को अरुणिमा ट्रेन से कहीं जा रही थीं। यात्रा के दौरान कुछ लूटेरों ने उनका बैग और सोने की चेन छीनने के चक्कर में उन्हें ट्रेन से धक्का दे दिया जिसके कारण बाद में उनके बाएँ पैर को काटना पड़ा। 21 मई 2013 को प्रात: 10:55 पर अरुणिमा सिन्हा माउंट एवेरेस्ट के शिखर पर पहुँची थीं। उन्हें पद्म श्री, तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड (2016) और फ़र्स्ट लेडी अवार्ड (2018) से सम्मानित किया गया है।
रविन्द्र जैन
विकलांगता: जन्म से पूर्णत: दृष्टिबाधित
रविन्द्र जैन (28 फ़रवरी 1944 – 9 अक्तूबर 2015) एक प्रतिष्ठित गीतकार, संगीतकार और गायक थे। उन्होंने सैंकड़ों हिन्दी फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए संगीत दिया। राम तेरी गंगा मैली, चितचोर, अंखियों के झरोखों से, मेंहदी, गीत गाता चल जैसी फिल्मों और रामायण जैसे टीवी धारावाहिक में दिया उनका संगीत आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। रवींद्र जैन ने पंडित जी.एल. जैन, पंडित जनार्दन शर्मा और पंडित नाथू राम से संगीत प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्हें पद्म श्री और सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
अजित जोगी
विकलांगता: रीढ़ की हड्डी में चोट
अजित जोगी (29 अप्रैल 1946 – 29 मई 2020) वर्ष 1971 बैच में आई.ए.एस. सेवा में चुने गए। वर्ष 1986 में वे कांग्रेस पार्टी के सदस्य बने और वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। 2004 में एक सड़क दुर्घटना के कारण उनका पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो गया। इस दुर्घटना ने उनके राजनीतिक जीवन को प्रभावित किया लेकिन फिर भी वे 2004 से 2008 के बीच वे छत्तीसगढ़ की महासमुंद सीट से सांसद रहे। 2013 में अपने 68वें जन्मदिन पर अजित जोगी को ‘बायोनिक इ-लेग्स’ प्राप्त हुए थे जो एक तरह के रोबोटिक पैर होते हैं और लकवाग्रस्त लोगों को चलने में मदद करते हैं।
एस. जयपाल रेड्डी
विकलांगता: 18 महीने की उम्र से पोलियो
एस. जयपाल रेड्डी (16 जनवरी 1942 – 28 जुलाई 2019) एक भारतीय राजनेता थे जो एक केन्द्रीय मंत्री भी बने। अलग-अलग समय पर उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय, शहरी विकास, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, पृथ्वी विज्ञान, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला। वे पाँच बार लोक सभा के लिए चुने गए –
- 1984 में 8वीं लोक सभा
- 1998 में 12वीं लोक सभा
- 1999 में 13वीं लोक सभा
- 2004 में 14वीं लोक सभा
- 2009 में 15वीं लोक सभा
जयपाल रेड्डी 1969 और 1984 के बीच चार कार्यकालों के लिए आंध्र प्रदेश के कलवाकुर्ती निर्वाचन क्षेत्र से विधायक भी रहे। 1998 में वे उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से भी सम्मानित हुए। इस पुरस्कार को पाने वाले वे दक्षिण भारत के पहले और सबसे कम उम्र के सांसद थे।
जावेद आबिदी
विकलांगता: स्पाइना बाईफिडा
जावेद आबिदी (11 जून 1965 – 04 मार्च 2018) भारत के एक जाने-माने विकलांगजन अधिकार कार्यकर्ता थे। उन्होंने नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (NCPEDP) के निदेशक के रूप में कार्य किया और राजीव गांधी फाउंडेशन की विकलांगता शाखा की स्थापना भी की। आबिदी के बचपन के दिनों में उनका परिवार संयुक्त राज्य अमेरिका चला गया था और वहाँ उन्हें बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल और शिकागो के पुनर्वास संस्थान में देखभाल मिली थी। 15 वर्ष की आयु में उन्होंने व्हीलचेयर का इस्तेमाल शुरू कर दिया। सारी कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने राइट स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और 1989 में पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए भारत आ गए।
Bhot hi achi jaankari