famous disabled person in the world Louis Braille

लुई ब्रेल के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

लुई ब्रेल दुनिया के सबसे प्रसिद्ध विकलांग व्यक्तियों में से एक हैं। वे एक फ्रांसीसी आविष्कारक थे जिन्होंने दृष्टिहीन व दृष्टिबाधित लोगों द्वारा पढ़ी जाने वाली ब्रेल लिपि का अविष्कार किया था। लेकिन, उनके इस महान अविष्कार के अलावा शायद ही उनके जीवन से जुड़ा कोई तथ्य हो जो आपको मालूम हो। तो आइये आज विकलांगता डॉट कॉम पर लुई ब्रेल के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों जो जानते हैं। यह आलेख न सिर्फ़ आपके सामान्य ज्ञान में बढ़ोतरी करेगा बल्कि आपको लुई ब्रेल और उनके अविष्कार को और बेहतर तरीके से समझने में भी मदद करेगा।

लुई ब्रेल जन्म से ही दृष्टिहीन नहीं थे।

आपको यह तो मालूम होगा कि लुई ब्रेल दृष्टिहीन थे लेकिन क्या आपको मालूम है कि वे जन्मांध नहीं थे?

लुई का जन्म बिलकुल सामान्य दृष्टि के साथ हुआ था। उनके पिता चमड़े का काम करते थे। लुई जब 3 साल के थे तब एक दिन वे अपने पिता की कार्यशाला में खेल रहे थे और खेल के दौरान ही दुर्घटनावश चमड़ा सीलने वाला सुआ उनकी एक आँख में घुस गया। उनका इलाज कराने की कोशिश तो की गई लेकिन एंटीबायोटिक के न होने के कारण उनकी घायल आँख में संक्रमण हुआ जो उनकी दूसरी आँख तक भी फैल गया।

धीरे-धीरे घटते हुए पाँच साल की उम्र तक लुई के दोनों आँखों की रोशनी पूरी तरह चली गयी।

एक ग़रीब परिवार से होने के बावजूद लुई ने रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड में पढ़ाई की थी।

चमड़े का काम करके लुई के पिता इतना तो कमा लेते थे कि वे अपने चार बच्चों को खिला सकें लेकिन उनके पास दृष्टिहीन बेटे को शिक्षा दिला पाने के पैसे नहीं थे।

एक कुलीन परिवार की महिला को किसी तरह नन्हें लुई के दृष्टिहीन हो जाने की कहानी पता चली और उनका मन पसीज गया। उन्हीं कुलीन महिला ने लुई के लिए रॉयल इंस्टिट्यूट फ़ॉर द ब्लाइंड की शिक्षा का खर्च उठाने की ज़िम्मेदारी ले ली।

रॉयल इंस्टिट्यूट फ़ॉर द ब्लाइंड दृष्टिहीनों के लिए बना विश्व का पहला विद्यालय था। दस वर्ष की उम्र में लुई पढ़ने के लिए घर से दूर पेरिस चले गए।

रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड किसी जेलखाने से कम नहीं था।

नाम से यह विद्यालय चाहे जितना भी शाही लगे, लेकिन वास्तव में यह किसी जेलखाने से कम नहीं था। विद्यालय की इमारत वाकई एक पुरानी जेल ही थी। पूरी इमारत अँधेरी, सीलन-भरी और जर्जर स्थिति में थी।

विद्यालय के नियमो के बारे में सुनेंगे तो आपको लगेगा कि सिर्फ़ इमारत ही नहीं वहाँ के कायदे-क़ानून भी किसी जेल से ही उधार लिए गए थे।

यहाँ बच्चों को महीने में सिर्फ़ एक दिन नहाने की इज़ाज़त थी। उन्हें मिलने वाले खाने की मात्रा कम और सज़ा की मात्रा ज्यादा थी। कायदे-कानूनों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त थी जिसे वहाँ रहने वाले बच्चों को मानना ही होता था।

उन कठिन परिस्थितियों के बावजूद लुई और उनके जैसे अनेक बच्चे वहाँ रह कर पढाई करते थे।

लुई ने ब्रेल लिपि का अविष्कार मात्र 15 वर्ष की आयु में कर लिया था।

एक सेवानिवृत सैनिक चार्ल्स बार्बियर एक बार लुई के विद्यालय में आये थे और उन्होंने लुई को बताया कि युद्ध के दौरान साथी सैनिकों से बात करने के लिए एक गुप्त कोडिंग तकनीक बनाई थी जिसमें एक मोटे कागज़ पर छेद और डैश के ज़रिये संदेश को संचारित किया जा सकता था।

लुई इस बात से काफ़ी प्रेरित हुए और लिखने-पढ़ने की अपनी अलग प्रणाली बनाने के कार्य में जुट गए। इस प्रणाली को बनाने और पुख्ता करने में उन्हें दो साल लग गए लेकिन 15 वर्ष की आयु तक उन्होंने छः बिन्दुओं वाली अपनी एक नयी लिपि तैयार कर ली।

इसकी जाँच के लिए उनके प्रधानाध्यापक ने उन्हें अखबार से एक श्रुतलेख दिया जिसे लुई ने अपनी नयी लिपि में लिखा और बाद में उसे शब्दशः पढ़ कर सुनाया। एक रोचक बात यह भी है कि जिस चमड़े के सुए ने लुई के आँखों की रोशनी छीनी थी उसी सुए से छेद करके लुई ने ब्रेल लिपि तैयार की थी।

ब्रेल लिपि को एक सर्वमान्य लिपि के रूप में लुई की मृत्यु के बाद ही अपनाया गया था।

प्रधानाध्यापक के उस श्रुतलेख से लुई की लिपि की उपयोगिता तो सिद्ध हो गयी थी लेकिन इसे विद्यालय ने औपचारिक रूप से नहीं अपनाया।

लुई का सम्मान अपने शिक्षक के सामने बढ़ गया था। 19 साल की उम्र में उन्हें उनके ही विद्यालय में पूर्ण-कालिक शिक्षक के रूप में नौकरी भी मिल गयी थी लेकिन उनकी लिपि को कभी किसी और छात्र को सीखने नहीं दिया गया। विद्यालय के शिक्षकों को यह डर था कि यदि बच्चों को यह लिपि सिखा दी गयी तो वे इतने आत्मनिर्भर हो जाएँगे कि उन्हें शिक्षकों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

छात्रों की भारी माँग के आगे मजबूर होकर विद्यालय को इसे औपचारिक रूप से अपनाना पड़ा लेकिन वह दिन देखने के लिए लुई इस दुनिया में नहीं रहे कि उनकी प्रणाली दृष्टिहीन लोगों की ज़िन्दगी को कैसे बदल रही है।

लुई ब्रेल संगीत के भी अच्छे जानकार थे।

लुई किताबें पढ़ने के शौक़ीन तो थे ही साथ ही उन्हें संगीत में भी काफ़ी रुचि थी। वे अपने विद्यालय के ऑर्केस्ट्रा का भी हिस्सा थे जहाँ उन्होंने सेलो और माउथऑर्गन जैसे वाद्ययंत्र बजाना सीखा था। बाद के दिनों में अपनी लिपि में उन्होंने अक्षरों के अलावा संगीत के नोट्स को भी शामिल किया था।

इनकी अस्थियों को दो अलग-अलग जगहों पर दफ़नाया गया है।

लुई की ज़िन्दगी के तथ्यों में शायद सबसे रोचक तथ्य यही है कि उनकी अस्थियों को दो जगह दफ़नाया गया है।

मरणोपरांत उन्हें सबसे पहले उनकी जन्मस्थली कूपव्रे में दफ़नाया गया था। इस अंतिम संस्कार में करीब 20 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।

उनकी मृत्यु के क़रीब एक सदी बाद उनके अवशेषों को पेरिस ले जाकर पैंथियन में दफनाया गया। उनके अवशेषों को ले जाते वक़्त उनके हाथ को कूपव्रे में ही छोड़ दिया गया जहाँ उन्हें मूल रूप से दफ़नाया गया था।

एक क्षुद्रग्रह (एस्टेरोइड) का नाम लुई के नाम पर रखा गया है।

1992 में नासा द्वारा खोजे गए एक क्षुद्रग्रह, जिसे मूल रूप से 1992केडी कहा जाता था, का नामकरण 1999 में लुई ब्रेल के नाम पर किया गया।

कैनेडी स्पेस सेंटर के इंजिनीयर कैरी बेबौक के सुझाव के अनुसार अब इस क्षुद्रग्रह को 9969ब्रेल कहा जाता है। क्षुद्रग्रह 9969ब्रेल नौ दिनों में केवल एक बार घूमता है और इसकी कक्षा ग्रहों के अण्डाकार तल की तुलना में बहुत झुकी हुई है।

लुई के बचपन का घर अब एक संग्रहालय है।

जिस घर में लुई ब्रेल का जन्म हुआ था उसे उनके तथा उनके कार्यों को समर्पित एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। अब यह घर एक ऐतिहासिक इमारत की तरह सूचीबद्ध है। घर की बाहरी दीवार पर लगी एक संगमरमर की पट्टिका पर लिखा है, “इस घर में 4 जनवरी, 1809 को दृष्टिहीनों के उपयोग के लिए उभरे हुए बिंदुओं की लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल का जन्म हुआ था। उन्होंने उन लोगों के लिए ज्ञान के द्वार खोले जो देख नहीं सकते।”

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Bharti
Bharti
8 months ago

बहुत ही रोचक, उपयोगी व ज्ञानवर्धक जानकारी 🙏

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