आज तकनीक से घिरे इंसान जहाँ इसके नकारात्मक प्रभाव से बचे नहीं हैं। साइबर अपराध भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। निजता पर, रचनात्मकता पर, और समय की बर्बादी जैसे प्रभाव छोड़ रही तकनीक का एक सही उपयोग किसी दृष्टिबाधित को UPSC जैसी कठिन परीक्षा पास करा के भारतीय विदेश मंत्रालय का अधिकारी बना देता है। UPSC देश की सबसे कठिन परीक्षा है। इसका अनुमान इसके नतीजों से लगाया जा सकता है जो अंदाज़तन 0.1 प्रतिशत से 0.3 प्रतिशत तक ही रहता है। ऐसे में दृष्टिबाधित होने की तमाम दिक्कतों के बावजूद माता-पिता के सहयोग, दोस्तों के साथ और तकनीक का सही उपयोग करते हुए वह साल 2014 में UPSC की परीक्षा 343 ऑल इंडिया रैंक के साथ उतीर्ण करती है और 2015 में वह बन जाती हैं भारतीय विदेश सेवा (IFS) में देश की पहली पूर्णतः दृष्टिबाधित महिला अधिकारी।
चेन्नई के विल्लीपुरम में 17 अप्रैल 1990 को जन्मी ‘एन एल बेनो ज़ेफ़ीन’ जन्म से ही दृष्टिबाधित हैं। पिता ल्यूक एंथल चार्ल्स रेलवे कर्मचारी हैं और माता मैरी पद्मजा हाउसवाइफ हैं। बेनो ज़ेफ़ीन के बड़े भाई ब्रूनो जेवियर कनाडा में इंजीनियर हैं। उनकी माँ मैरी पद्मजा कहती हैं – “हमें यह जानकर निराशा हुई कि हमारी बच्ची जन्म से अंधी है। यह दुखद था। हम भी किसी अन्य विकलांग बच्चे के परिजनों की तरह उसके भविष्य को लेकर चिंतित थे। लेकिन हमने ईश्वर के उपहार को स्वीकार करते हुए उसका नाम बेनो ज़ेफ़ीन रखा। बेनो का अर्थ ईश्वर की संतान और ज़ेफ़ीन का मतलब छिपा हुआ खज़ाना। समय बीतने के बेनो ज़ेफ़ीन अपने नाम को सार्थक करती गई। बेनो ज़ेफ़ीन शुरू से ही होनहार और खुशमिजाज लड़की थी।”
बेनो ज़ेफ़ीन अपने पिता के सयुंक्त परिवार में कई रिश्तेदारों के बीच पली-बढ़ी। उनके साथ किसी विशेष व्यक्ति जैसा व्यहवार नहीं किया गया, इससे उन्हें ज़िंदगी को समझने में काफी मदद मिली। लिटिल फ्लॉवर कॉन्वेंट स्कूल में उन्होंने स्कूली शिक्षा ग्रहण की। स्टेला मैरिस कॉलेज से अंग्रेजी विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और लोयला कॉलेज परास्नातक हुई। 11वीं कक्षा में ही उनके मन में सिविल सेवा में जाने का सपना घर गया था। उससे पहले वे वकालत या अध्यापन कार्य को लेकर असमंजस में थीं। उन्हें सिविल सर्विसेज की तरफ मोड़ने में उनके पिता और शिक्षकों की अहम भूमिका रही। मूल रूप से वह एक बातूनी लड़की थी उनके बोलने की क्षमता और विषयों पर उनकी पकड़ को उनके पिता बहुत पहले पहचान गए थे। उन्होंने अपनी बेटी बेनो ज़ेफ़ीन को सभी भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। बेनो ज़ेफ़ीन भी उसमें पूरी लगन से लग गई। शिक्षकों ने भी स्कूल के अंदर-बाहर जहाँ भी बोलने के अवसर होते वहाँ बेनो ज़ेफ़ीन को नामांकित किया। उनके पिता उन्हें हर दिन की प्रमुख खबरें और करंट अफेयर्स के विश्लेषण सुनाते। वे बेनो ज़ेफ़ीन के संसाधक व्यक्ति थे। उनके वेतन का अधिकांश हिस्सा बेनो ज़ेफ़ीन की किताबों पर खर्च हो जाता। उन्हें नए विषयों और दुनियादारी की भी समझ मिले इसलिए वे जहाँ तक संभव हो उसे अपने साथ ले जाया करते। बेनो ज़ेफ़ीन के पिता ल्यूक चार्ल्स कहते हैं- “बेनो किसी भी विषय पर प्रयोग करने के लिए तैयार रहती थी। वह बिना तैयारी के भी बोल सकती थी। कैंसर जागरूकता, पर्यावरण या सामाजिक मुद्दों और यहाँ तक कि विदेश राजनीति जैसे विषयों पर उसकी अच्छी पकड़ थी। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों में उसकी गहरी रुचि ने उसे सिविल सर्विसेज के विचार की तरफ आकर्षित किया। मैंने उसे किसी भी पारिवारिक समारोह या सार्वजनिक बैठकों में शामिल होने से नहीं रोका। मैं चाहता था कि वह दुनिया को सुने और महसूस करे और लोगों की विभिन्न प्रकार की मानसिकता को समझे। वह एक प्रश्न बैंक की तरह थी। उसकी जानने की इच्छा अद्भुत थी। वह लोगों, स्थानों, और अनुभवों में उत्तर खोजती थी। उसने जो भी सुना दिमाग में दर्ज कर लिया, भविष्य में उपयोग करने के लिए सहेज लिया।”
बेनो ज़ेफ़ीन सिर्फ ब्रेल में उपलब्ध पाठ्य सामग्री से ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी नहीं कर सकती थी। इसलिये उन्होंने तकनीक का सहारा लिया। जॉब एक्सेस विद स्पीच (JAWS) नामक एक कंप्यूटर प्रोग्राम के ज़रिए उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की। जॉब एक्सेस विद स्पीच(JAWS) एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम है व्यक्ति विशेष के कंप्यूटर या फोन को टेक्स्ट टू स्पीच आउटपुट के ज़रिए स्क्रीन पढ़ने में उस व्यक्ति की सहायता करता है। उन्होंने 9 अलग-अलग सेंटर्स से कोचिंग ली जहाँ वे एकमात्र दृष्टिबाधित व्यक्ति थीं। उनके सहपाठी पहले उन्हें ब्रेल में पढ़ते देख हैरान होते और पूछते कि यह कैसे काम करता है और फिर उनकी पढ़ाई में सहयोगी बन जाते। सारी पाठ्य सामग्री को स्कैन करके पढ़ना लगभग असंभव था क्योंकि पाठ्य सामग्री ही बहुत ज्यादा थी। इसलिए हर समय तकनीक का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता था। इसलिये उनकी माँ उनके लिए घंटों तक पढ़तीं। बाकी सहयोग उनके सहपाठी और मित्र करते। JAWS तो था ही जब उन्हें स्वयं पढ़ना होता तो JAWS सबसे बड़ा सहायक होता था। 2012 में उन्होंने प्री क्लियर किया लेकिन मेंस नहीं कर पाई। 2014 में जब उन्होंने UPSC परीक्षा में AIR 343 हासिल किया तब वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में PO पद पर कार्यरत थीं।
उन्होंने इंटरव्यू में सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर देकर सभी इंटरव्यू लेने वालों को प्रभावित किया। उनके इस साहस और लगन को ध्यान में रखते हुए सरकार ने आईएफएस के मापदंडों कुछ बदलाव किया और बेनो ज़ेफ़ीन बन गई भारत की पहली पूर्णतः दृष्टिबाधित महिला IFS अधिकारी। भारतीय दूतावास पेरिस में कार्य कर चुकी बेनो ज़ेफ़ीन को 2018 में उनके सिविल सेवा के प्रति दृढ़ निश्चय व लगन के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। बेनो ज़ेफ़ीन के दृढ़ निश्चय और लगन के लिए इतना ही कहा जा सकता है:
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो
अति सुन्दर..इनकी मेहनत के साथ साथ इनका भाग्य भी प्रबल रहा है..हर कोई नहीं निकल पाता..हम खुद 7 बार main exam tk aa चुके..upsc में..अपना अपना..भाग्य..
विजेता को सब सराहते है..बाकी का क्या..😑
बहुत ही सुंदर लेख लिखा है