पॉल रिचर्ड अलेक्जेंडर एक अमरीकी वकील, लेखक और पोलियो सर्वाइवर हैं। इनका गर्दन से नीचे का पूरा शरीर पोलियो से प्रभावित है। पॉल उन ज़िद्दी लोगों में से एक हैं जो न सिर्फ़ ज़िन्दगी को मौत के चंगुल से छुड़ा ला सकते हैं बल्कि ज़िन्दगी को इस अंदाज़ में जी सकते हैं कि दूसरों के लिए मिसाल बन जाएँ। इनका जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास प्रान्त के एक बड़े नगर डैलस में 10 जनवरी 1946 को हुआ था। आज पॉल की आयु 77 वर्ष से अधिक है। पैरालिटिक पोलियो से प्रभावित व्यक्ति के लिए ज़िन्दगी का इतना लम्बा सफ़र तय कर पाना अपने-आप में बहुत बड़ी बात है। पॉल आयरन लंग मशीन में रहने वाले दुनिया के अंतिम जीवित व्यक्ति हैं।
पॉल के जीवन में पोलियो का आगमन: ‘The Guardian’ अखबार के अनुसार वर्ष 1952 में जब पॉल की उम्र सिर्फ़ 6 साल थी, इन्हें पोलियो हो गया था। जुलाई महीने के एक दिन जब पॉल डैलस में स्थित अपने घर के बाहर बारिश में खेल रहे थे, अचानक इन्हें गर्दन और सिर में तेज दर्द के साथ बुखार हो गया। पॉल के माता-पिता ने इनका सामान्य इलाज कराया; लेकिन पॉल की तबियत बिगड़ने लगी तब इनके पारिवारिक डॉक्टर ने पॉल के माता-पिता से इन्हें अस्पताल ले जाने की सलाह दी। अस्पताल में डॉक्टरों ने यह सुनिश्चित कर दिया कि पॉल को पोलियो हो चुका है। चूँकि, अस्पताल में मरीजों की बहुत अधिक भीड़ थी; इसलिए डॉक्टरों ने पॉल को इनके घर रखकर ही इनका इलाज करने को बेहतर माना।
अगले पाँच दिनों में पॉल की तबियत ज़्यादा बिगड़ गयी; जो बच्चा कुछ दिन पहले खेल-कूद रहा था, दौड़ रहा था; अब वह ख़ुद से हिल-डुल भी नहीं पा रहा था, न ही बोल रहा था। इन्हें कुछ भी खाने-पीने और खाँसने में भी तकलीफ़ हो रही थी। पॉल के माता-पिता इनको पार्कलैंड अस्पताल ले गए। इस अस्पताल में पोलियो से प्रभावित बच्चों के लिए अलग से पोलियो वार्ड बनाया गया था। वर्ष 1950 के दशक की शुरुआत में अमेरिका में पोलियो का प्रकोप अपने चरम पर था। पॉल सहित डैलस, टेक्सास व उसके आसपास की जगहों से सैकड़ों बच्चों को पोलियो के इलाज के लिए पार्कलैंड अस्पताल लाया गया था। पॉल की माँ भी इनके निरीक्षण के लिए इनकी बारी का इंतज़ार कर रही थी। एक डॉक्टर ने पॉल की जाँच की और इनको क़रीबन मृत घोषित कर दिया। पॉल बहुत मुश्किल से साँसे ले पा रहे थे। अगर एक अन्य डॉक्टर इनकी दुबारा जाँच न करता तो शायद पॉल जीवित न बचते। दूसरे डॉक्टर ने जब देखा कि पॉल साँसे नहीं ले पा रहे हैं तो इनके फेफड़ों के जमाव को बाहर निकालने के लिए डॉक्टर ने इनकी आपातकालीन ट्रेकियोस्टॉमी की ताकि ये साँस ले सके। इस दौरान पॉल बेहोश हो चुके थे।
ट्रेकियोस्टॉमी क्या होती है? यह एक शल्य प्रक्रिया है। इसमें गर्दन के अगले हिस्से में एक छेद करके इस छेद से ट्रेकियोस्टॉमी ट्यूब गर्दन के अन्दर डाल दी जाती है। इस ट्यूब की मदद से बाहर की वायु अन्दर फेफड़ों तक पहुँचाई जाती है। इस सर्जरी के बाद व्यक्ति को साँस लेने और छोड़ने के लिए नाक या मुँह द्वारा कोई क्रिया करने की ज़रूरत नहीं होती है।
पोलियो की वजह से पॉल का बदला हुआ जीवन: तीन दिन बाद जब इन्हें होश आया तो इन्होने अपनी गर्दन और मुँह अलावा बाकी पूरे शरीर को एक बड़ी कनस्तरनुमा मशीन में बंद पाया। इसके अन्दर ये अपने शरीर को न देख पा रहे थे और न ही हिला-डुला पा रहे थे। यह मशीन थी – आयरन लंग मशीन। कुछ दिनों में पॉल शुरूआती संक्रमण से तो ठीक हो गये; लेकिन पोलियो की वज़ह से इनके गर्दन से नीचे का पूरा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका था। पोलियो के कारण पॉल अपने डायाफ्राम से साँस नहीं ले सकते थे। ऐसे में इन्हे साँस दिला पाने का एकमात्र रास्ता आयरन लंग मशीन ही थी।
आयरन लंग मशीन क्या है? आयरन लंग मशीन मटर के आकारनुमा एक बड़ी मशीन होती है। यह मशीन एक फुल बॉडी मेकानिकल रेस्पीरेटर होती है। जिस व्यक्ति को पैरालिटिक पोलियो हो जाता है उस व्यक्ति के लिए यह मशीन एक वरदान है। वह व्यक्ति इस मशीन की सहायता से आसानी से साँस ले सकता है। यह मशीन मरीज के फेफड़ों में ऑक्सीजन भरने का काम करती है। जिससे मरीज ज़िन्दा रह पाता है; लेकिन इस मशीन के अन्दर रह पाना कोई आसान बात नहीं है, हर मरीज इस मशीन के अन्दर सामंजस्य नहीं बैठा पाता। पॉल ने न सिर्फ़ इस मशीन में रहना सीखा बल्कि इन्होने अपनी ज़िन्दगी के सात दशकों से भी अधिक के समय को इस मशीन में रहकर बख़ूबी जिया है।
पॉल ट्रेकियोस्टॉमी के कारण बोल व खाँस तक नहीं पा रहे थे। एक बार को तो पॉल को लगा कि वे मर चुके हैं; लेकिन जैसे ही इनके चारों ओर लगे पर्दें हटे; इन्होने अपनी ही तरह कई बच्चों को ऐसी ही मशीनों में बंद देखा। पॉल की नज़र जहाँ तक देख सकती थी — वहाँ तक इन्हीं आयरन लंग मशीनों में क़ैद बच्चे दिखाई दे रहे थे। वे सफ़ेद यूनिफॉर्म में डॉक्टर और नर्सों के समूहों को देख रहें थे; जो उन बच्चों के पास जाकर उनका मुआयना कर रहे थे। पॉल दर्द से रोते-चिल्लाते इन बच्चों की चीखें सुन रहे थे और चेहरे के इशारों से अन्य बच्चों से बात करने व दोस्ती करने की भी कोशिश कर रहे थे।
जीने की ज़िद: पॉल के जीवन के अगले अट्ठारह महीने बहुत कठिन होने जा रहे थे। पोलियो ने हँसते-खेलते पॉल के जीवन को तबाह करने में कोई कसर शेष नहीं छोड़ी थी; लेकिन कहते है न कि जब कोई तूफ़ान आता है तो उसका सामना करने की हिम्मत भी आ ही जाती है। वैसी ही हिम्मत छ: साल के पॉल में भी आ चुकी थी, ये पोलियो की हर चुनौती का सामना करने के लिए ख़ुद को तैयार कर चुके थे। ज़िन्दगी जहाँ पॉल से अपना दामन छुड़ा लेना चाहती थी; वहीं ये ज़िन्दगी का हाथ कसकर पकड़े हुए थे।
ट्रेकियोस्टॉमी के कारण बोल न सकने की स्थिति में पॉल घंटों तक मशीन के अन्दर गंदे कपड़ों में पड़े रहते थे। वे नर्सो को बता ही नहीं पाते थे कि इनके कपडे बदलने हैं और जब नर्स इनके कपड़े बदलने के लिए इनको मशीन से बाहर निकालती थी तो ये उन कुछ पलों में भी ख़ुद से साँस नहीं ले पाते थे। ज़िन्दा रहने के लिए इन्हें उन पलों में अपनी साँसे रोकनी ही होती थी। वे पल पॉल के लिए बहुत भयानक और कष्टकारी होते थे। उन पलों में पॉल मौत के चंगुल में फँसी अपनी ज़िन्दगी को बचाने की जी-तोड़ कोशिश करते थे। ज़िन्दगी और मौत की इस जंग में जीत हमेशा पॉल की ही हुई।
पॉल उस पोलियो वार्ड में हर रोज बच्चों को मरते देख रहे थे; लेकिन इन्होने अपने ज़िन्दा रहने की उम्मीद को कमज़ोर नहीं होने दिया। डॉक्टर और नर्स जब भी पॉल का मुआयना करने आते थे तो यही कहते थे कि यह बच्चा ज़िन्दा नहीं बचेगा, आने वाले कुछ दिनों या पलो में यह मर जायेगा। पॉल को यह सब सुनकर बहुत गुस्सा आता था और ये बातें पॉल के ज़िन्दा रहने की ज़िद को और मज़बूत बनाती थी। डॉक्टरों को जब यह लगने लगा कि अब पॉल मर जायेंगे तो उन्होंने इनको आयरन लंग मशीन के साथ ही घर भेज दिया; पर पॉल हार मानने वालो में से नहीं थे। उन्होने ख़ुद को ज़िन्दा रखने की जंग जारी रखी।
ख़ुद साँस लेना सीखना: वर्ष 1954 में जब पॉल आठ साल के थे, तब इनकी माँ को एक चिकित्सक के बारे में पता चला जो पोलियो उन्मूलन के लिए कार्यरत एक अमरीकी चैरिटी मार्च ऑफ डाइम्स के साथ काम कर रही थी। इन चिकित्सक का नाम श्रीमती सुलिवन था। वे पॉल की थेरेपी करने के लिए तैयार हो गई और इनके घर सप्ताह में दो बार आने लगी।
श्रीमती सुलिवन ने पॉल को आयरन लंग मशीन से कुछ समय बाहर रहकर साँस लेने की एक तकनीक सिखाई। इस तकनीक को “ग्लोसोफैरिंजियल ब्रीदिंग” या ‘फ्रॉग ब्रीदिंग’ तकनीक कहते है। इस तकनीक में हम मुँह और गले में हवा भरते है जो मुँह बंद करने पर गले की मांसपेशियों द्वारा स्वर रज्जुओं से होती हुई फेफड़ों तक धकेली जाती है। इस तरह एक बार में एक साँस लेने की प्रक्रिया पूरी होती है।
पॉल के लिए इस तकनीक द्वारा साँस ले पाना आसान बिल्कुल नहीं था। सुलिवन ने पॉल से वादा किया कि यदि वे तीन मिनट तक इस तकनीक द्वारा साँस लेना सीख जायेंगे तो वे उन्हें ईनाम में एक पिल्ला लाकर देंगी। पॉल को इस तरह साँस लेना सीखने में एक साल का समय लग गया; लेकिन उन्होने अंत में अपने ईनाम के रूप में एक पिल्ले को पा ही लिया। पॉल ने अपने इस नए दोस्त का नाम जिंजर रखा। लगातार कोशिश करते रहने की वजह से पॉल अब कुछ मिनटों की जगह कुछ घंटे आयरन लंग मशीन से बाहर रहकर साँस ले सकते थे; लेकिन रात में पॉल को आयरन लंग मशीन में ही सोना पड़ता था; क्यूंकि सो जाने की स्थिति में ये ‘ग्लोसोफैरिंजियल ब्रीदिंग’ तकनीक द्वारा साँस नहीं ले सकते थे। ख़ुद से साँस लेना सीखने के बाद पॉल अपग्रेडिड व्हीलचेयर की मदद से अपने घर के अन्दर व बाहर घूमने लगे थे।
पोलियो के बाद पॉल की शिक्षा: पॉल की ज़िन्दगी की जंग साँस लेना सीख लेने पर ही पूरी नहीं हुई। पॉल ने कभी भी केवल साँस ले पाने को ही ज़िन्दगी जी लेना नहीं माना। हालाँकि उनके लिए यह कर पाना एक जंग जीत लेने जैसा ही था। पॉल निरंतर आगे बढ़ते रहने और एक अर्थपूर्ण जीवन जीने को ही सही मायने में ज़िन्दगी जीना मानते हैं। वे पोलियो के कारण जन्मी तमाम परेशानियों के बावजूद पढ़ना चाहते थे। पढ़ाई को लेकर उनमें एक अलग ही ज़ुनून था; लेकिन उनके लिए पढ़ाई कर पाना, ख़ुद से साँस ले पाने जितना ही मुश्किल था। पोलियो के कारण पॉल का गर्दन से नीचे का पूरा शरीर निष्क्रिय हो चुका था। अपने हाथों के प्रयोग से कुछ भी लिख पाना या पकड़ पाना पॉल के लिए संभव नहीं था। ऐसे में पॉल के पिता ने इनके लिए एक विशेष प्रकार का पेन बनाया। जिसे मुँह से पकड़ कर उन्होने लिखना व ड्राइंग करना सीखा।
पॉल ने अपनी शिक्षा के दौरान लिखने से ज़्यादा बोलकर याद करने पर अधिक बल दिया। कोई भी स्कूल पॉल को कक्षा में अनुपस्थित रहते हुए घर से पढ़ाई करने की इजाज़त नहीं दे रहा था; लेकिन आखिरकार पॉल की ज़िद के आगे स्कूल प्रशासन को हार माननी ही पड़ी। वर्ष 1967 में, 21 साल की उम्र में पॉल ने W. W. Samuell High School से अपनी कक्षा में दूसरा स्थान प्राप्त करते हुए दसवीं पास की। 1967 में, पॉल डैलस के Samuell School से कक्षा में अनुपस्थित रहते हुए दसवीं करने वाले पहले छात्र बनें।
लॉ की शिक्षा प्राप्त करना: आगे चलकर पॉल को Southern Methodist University से छात्रवृति प्राप्त हुई। वहाँ से पॉल ने Austin में स्थित Texas University में अपना स्थानान्तरण करा लिया और अपने एक केयरटेकर के साथ हॉस्टल में रहे। वहाँ से इन्होंने वर्ष1978 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद वर्ष 1984 में इन्होने पोस्ट-ग्रेजुएशन करते हुए लॉ की पढ़ाई पूरी की। इन्होनें Bar Council में भर्ती होने से पहले ऑस्टिन के एक ट्रेड स्कूल में कोर्ट के स्टेनोग्राफरों को कानूनी शब्दावली पढ़ाने का काम भी किया।
वकील के रूप में काम करना: पॉल ने कई वर्षों तक डैलस और फोर्ट वर्थ में बतौर वकील काम किया। इस दौरान इन्होने अपने सहायक के रूप में कैथी गेन्स को नियुक्त किया। कोर्ट में पॉल अपनी मॉडिफाइड व्हीलचेयर का प्रयोग करते थे जो इनके शरीर को सीधा रखती थी। कोर्ट में यह पूरे समय विशेष तकनीक द्वारा साँस लेते थे। पॉल उस समय के जाने-माने वकीलों में से एक थे। इन्होने सामाजिक सुरक्षा, संघर्ष, संपत्ति, वसीयत, आपराधिक व नाबालिगो से जुड़े मामलों, सरकारी व नागरिक अधिकारों से सम्बंधित मुक़दमों को लड़ा। पॉल ने हर पल मौत से साँसों की लड़ाई लड़ते हुए सैकड़ों लोगों के लिए इंसाफ़ की लड़ाइयाँ भी लड़ी। उन्होनें न सिर्फ़ ये लड़ाइयाँ लड़ी बल्कि बख़ूबी जीती भी।
किताब: पॉल वकील होने के साथ-साथ लेखक भी हैं। इन्होने “Three Minutes for a Dog: My Life in an Iron Lung” नाम से एक संस्मरण लिखा है। इस पुस्तक को उन्होनें अप्रैल 2020 में अपने एक मित्र नॉर्मन डी. ब्राउन की मदद से स्वयं प्रकाशित किया है। The Guardian अखबार के अनुसार पॉल कहते हैं कि यह संस्मरण लिखने में इन्हें आठ साल से अधिक का समय लगा। पॉल प्लास्टिक की छड़ी और पेन का उपयोग करके कीबोर्ड पर अपनी किताब को टाइप करते थे। कई बार इस काम में वह अपने मित्र की भी मदद लेते थे। पॉल बोलते जाते थे और इनका मित्र इनके कहे गए शब्दों को टाइप करता जाता था।
गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड: वर्ष 2020 में, पॉल अलेक्जेंडर आयरन लंग्स का उपयोग करने वाले एकमात्र जीवित व्यक्ति बन गए। वर्ष 2022 में, 70 साल तक आयरन लंग्स का उपयोग करते रहने की वजह से इनका नाम ‘गिनीज़ बुक’ में सबसे लम्बे समय तक आयरन लंग मशीन में जीवित रहने वाले व्यक्ति के रूप में दर्ज हो चुका है।
निजी जीवन: पॉल एक आकर्षक, मिलनसार, बातूनी, हँसी-मज़ाक करने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होनें अपने अब तक के जीवन काल में अनेक हवाई यात्राएँ की, क्लबों में गए, समुद्र देखा, चर्च में गए, प्रेम भी किया और विकलांगता अधिकारों के लिए धरने भी दिए। कॉलेज के दिनों में पॉल और इनकी एक साथी छात्रा (जिसका नाम क्लेयर था) को एक-दूसरे से प्रेम हो गया; लेकिन क्लेयर के माता-पिता को उसका पॉल के साथ रहना पसंद नहीं था। अंतत: इन दोनों का प्रेम-सम्बन्ध टूट गया। इसके बाद पॉल ने कभी भी प्रेम या विवाह के विषय में नहीं सोचा।
लगभग 74 साल की उम्र से पॉल ने अपना अधिकांश समय आयरन लंग मशीन के अन्दर ही बिताना शुरू कर दिया। बढ़ती उम्र और कमज़ोर होते शरीर के कारण इनके लिए अब ख़ुद साँस ले पाना बहुत मुश्किल हो गया है। अब ये 77 वर्ष से अधिक उम्र के हो गए हैं और आयरन लंग मशीन से ही साँस लेते हैं। कोविड-19 महामारी के समय में भी पॉल ख़ुद को इस महामारी से सुरक्षित रखने में सफल रहे। जो व्यक्ति आयरन लंग मशीन और ग्लोसोफैरिंजियल ब्रीदिंग तकनीक द्वारा साँस लेता हो – यदि वह कोविड-19 से संक्रमित हो जाता तो उसके लिए जीवित बचना बेहद मुश्किल हो जाता; लेकिन ‘पॉल रिचर्ड अलेक्सजेंडर’ ने पैरालिटिक पोलियो और कोविड-19 जैसी दो-दो महामारियों को अपनी मज़बूत इच्छा शक्ति से हराकर हमेशा अपनी ज़िन्दगी को जीत दिलाई है।
पॉल रिचर्ड अलेक्सजेंडर उन सभी विकलांग लोगों के लिए आदर्श हैं जो अपनी विकलांगता की तमाम मुश्किलों के बावजूद जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहते हैं और विकलांगता से अलग अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। पॉल उन सभी विकलांग और सामान्य लोगों के लिए भी एक मिसाल हैं जो अपने जीवन की छोटी-छोटी कठिनाइयों से हार जाते हैं। अपनी इच्छाशक्ति और इरादों को छोटा समझ अपनी मुश्किलों को बड़ा मान लेते हैं। व्यक्ति अगर चाहे तो अपनी मज़बूत विल पॉवर (इच्छा शक्ति) से नामुमकिन से नामुमकिन बात को भी मुमकिन कर सकता है पॉल रिचर्ड अलेक्सजेंडर इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं।
Wow
इनका परिचय कराने लिए बहुत शुक्रिया।
यह कितना मुश्किल था पॉल के लिए! पर जहां जिजीविषा है वहां सब कुछ है। यह मिसाल तो है ही साथ ही यह प्रेरणा बहुत सशक्त है।
Very Informative. Thank you
कितनी जीवटता और मुश्किलों का सामना करने की जिद,ऐसे वायरल लोगों की कहानियां हम तक पहुंचाने का आभार विकलांगता.com
Bahut bahut dhanyawad itne prernadayak vyaktitva se parichay karane ke liye .. 🙏