Author name: डॉली परिहार

जमशेदपुर की निवासी डॉली परिहार एक संवेदनशील कवयित्री हैं। डॉली पोलियो से प्रभावित हैं। आपका एक काव्य संग्रह 'जो मैं ऐसा जानती' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है।

डॉली परिहार
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ख़ुशियों के रंग

ये वो लोग थे जिन्होंने घर से निकलते हुए, आईना देखकर ये नहीं सोचा होगा कि ‘अपने चेहरे और कपड़ों को थोड़ा और संवार लूँ, जिससे जलसे में आकर्षण का केन्द्र बनूँ।’

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नैब की यादें / भाग 3

डॉली परिहार तीन भागों की इस शृंखला में नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर ब्लाइंड (NAB) से जुड़ी अपनी कुछ यादों को साझा कर रही हैं। इस तीसरे व अंतिम भाग में वे NAB में मिले कुछ और दोस्तों के बारे में बता रही हैं।

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नैब की यादें / भाग 2

डॉली परिहार तीन भागों की इस शृंखला में नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर ब्लाइंड (NAB) से जुड़ी अपनी कुछ यादों को साझा कर रही हैं। इस दूसरे भाग में वे बता रही हैं कि कैसे उनकी मुलाकात NAB के दो संगीत शिक्षकों से एक बाल दिवस कार्यक्रम में हुई।

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नैब की यादें / भाग 1

डॉली परिहार तीन भागों की इस शृंखला में नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर ब्लाइंड (NAB) से जुड़ी अपनी कुछ यादों को साझा कर रही हैं। इस पहले भाग में वे बता रही हैं कि कैसे वे NAB के सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने गईं।

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अभी तो इसकी ज़िन्दगी में सब सुख हैं… लेकिन जब माँ-बाप न होंगे, तब?

अपनी उन ज्ञान-भरी बड़ी बातों से किसी विकलांग व्यक्ति को डराते रहते हैं कि ‘बहुत जल्दी तुम्हें विकृत भविष्य-रूपी एक राक्षस मिलेगा, जिससे तुम लड़ भी नहीं पाओगे और वो तुम्हें खा जायेगा।’ बेचारा विकलांग व्यक्ति सुनहरे वर्तमान में भी उस अदृश्य राक्षस के डर से डर-डर कर जीता है।

photograph of baba sidhaye with his family

बाबा सिद्धाये: देश के पैंथर पहले मूक-बधिर क्रिकेटर

देश व दुनिया के पहले मूक-बधिर क्रिकेटर जिन्हें बाबा सिद्धाये और पैंथर के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि बाबा सिद्धाये इकबाल (2005) फ़िल्म के पीछे की प्रेरणा हैं।

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अपने जैसे लोग

यदि एक साथ रहते हुए भी, तुम एक-दूसरे को ही नहीं जानते/समझते, तो बाहर दुनिया में अपने जैसे लोगों को क्या ही समझ पाओगे? जब तक एक-दूसरे को समझोगे ही नहीं, तब तक तुम्हें ऐसा लगेगा कि तुम्हारा दर्द ही सबसे बड़ा दर्द है। दुनिया में अकेले सिर्फ़ तुम ही संघर्ष कर रहे हो।

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हम अल्पसंख्यक हैं, क्या इसीलिए नज़र-अंदाज़ कर दिया?

विकलांगजन भारत में भले ही सिर्फ़ 2% हों लेकिन हम अपने आप में एक पूरा देश हैं। हम जनसंख्या में लगभग 56 देशों से बड़ा देश हैं। फिर भी हमें नज़रअंदाज़ करने देने का क्या कारण है? क्या विकलांगजन को इसलिये नज़र-अंदाज़ कर दिया जाता है क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं?

photograph of dr. jonas salk injecting polio vaccine in a girl child's arm.

डॉ. जोनास सॉक का जादू

हम मान सकते हैं कि डॉ. सॉक कोई जादूगर थे जिन्होंने अपने जादू से, उस वक़्त के पोलियो महामारी के रूप में जन्मे विश्व के सबसे बड़े राक्षस का अंत किया था।

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हम डिसेबल इसलिए हैं क्योंकि समाज हमारे लिए एक्सेसिबल नहीं है

बहुत बार ऐसा होता है कि हमें अज्ञानता और अशिक्षा के कारण ये पता ही नहीं चल पाता है कि जो समस्या है, उसका समाधान भी है। और बहुत बार पता तो होता है लेकिन गरीबी समाधान नहीं निकाल पाती।