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नैब की यादें / भाग 3

< दूसरा भाग

कुछ देर में लड़कों का एक झुंड मेरे थोड़ा करीब आकर खड़ा हो गया, जिसमें से एक लड़के ने कहा “यार! वह लड़की कौन है? जो गा रही थी हंमं हंssमं हंहंम्म्म हंमं हंमं।” उसने मेरे गाये गीत को हम्बिंग करके कहा।

दूसरे ने कहा “कौन? डॉली? ये तो यहीं बैठी हैं, इन्होंने ही गाया था ये गीत।”

तीसरे ने कहा “डॉली जी इनसे मिलिये, ये है तनु राज (बदला हुआ नाम), ये बहुत देर से आपको ढूँढ़ रहे थे।” मुझे ढूँढ़ने वाला ये लड़का कोई और नहीं, वही गिटार वाला लड़का था।

“बैठिये।” कुर्सियों की ओर इशारा करके मैंने उन सभी से कहा। उन लड़कों को बैठता देख जसपाल सर उठकर चले गये और मैंने महसूस किया कि जैसे दरवाज़ा खुला हो, मुझे ताजी हवा मिली और मैं ताजी हो गई। मैंने सुकून की एक लम्बी साँस ली और उन लड़कों की ओर उन्मुख हुई। तभी एक लड़की टेबल पर हम सभी लोगों के लिए खाने के डिब्बे दे गई।

आपस में जान-पहचान और कुछ औपचारिक बातों के बाद तनु ने मुझसे कहा “आप गाती बहुत अच्छा हैं।”

“आपसे कम।” मैंने तपाक से कहा। “आप गा भी लेते हैं, डांस भी कर लेते हैं और गिटार भी बजा लेते हैं। वह भी इतनी-सी उम्र में।” मैंने आगे कहा तो वह शरमाते हुए थोड़ा झेंप गया।

तनु ने बातों-बातों में बताया “मैं भी ब्लाइंड हूँ।” सुनकर मैं फिर आश्चर्य में पड़ गई। वह इसलिए, क्योंकि माना यहाँ सभी ब्लाइंड्स थे लेकिन, अधिकतर लोग अपनी चाल-ढाल और हाव-भाव से ब्लाइंड नहीं लग रहे थे, तनु भी नहीं। उसने अपनी आँखों पर चश्मा पहन रखा था, मैंने चुपके से चश्मे के पार उसकी आँखों में झाँकना चाहा लेकिन फिर संकोचवश नहीं देखा।

“एक बात कहना चाहता हूँ, जो आप बुरा न मानें तो।” तनु ने कहा।

“जी कहिये न!” मैंने कहा।

“आप बहुत खूबसूरत हैं।”

उसकी इस बात पर मैंने सवालिया नज़रों से उसे देखा और चुप रही। मेरी खामोशी का अर्थ वह शायद समझ गया था, इसलिए उसने आगे कहा। “आप सोच रही होंगी, मुझे कैसे पता? दरअसल, मुझे दिखता है।”

उसकी इस बात से मैं फिर आश्चर्य में पड़ गई, उसने फिर मेरे चेहरे के भाव देखे और बोला दरअसल, मुझे दिखना कम होने लगा है। इसलिए, दूर का नहीं दिखता है लेकिन बेहद करीब का कुछ धुंधला-सा दिखता है। इसीलिए, मैं आपको देख पाया।” कहकर वह मुस्कुरा दिया, मैं भी मुस्कुरा दी।

उसने आगे कहा “डॉक्टर कहते हैं कि अभी कुछ सालों तक मुझे ऐसे ही धुंधला-सा दिखता रहेगा लेकिन जब मैं 40 (उम्र) तक पहुँचुंगा तब तक पूरा दिखना बंद हो जायेगा।”

उसकी बात सुनकर मैं उदास हो गई और सोचने लगी ‘ये चॉकलेटी लड़का, जो आमिर खान-सा दिखता है, इसे अगले बीस सालों में दिखना बंद हो जायेगा?’

“लेकिन, अगले बीस सालों में जबतक मुझे दिखना बंद होयेगा, तब तक मैं अंधों वाली ज़िंदगी जीने का अभ्यस्त हो जाऊँगा।” उसने ज़ोर से हँसते हुए कहा लेकिन मुझे हँसी नहीं आई, मैं ख़ामोश ही बिरयानी खाती रही।

माहौल में कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई, सिर्फ़ सभी के खाने की आवाज़ आती रही। तभी पापा आ गये, उन्होंने मुझसे पूछा “क्या तुम चलने के लिए तैयार हो?” सभी लड़कों ने एक-दूसरे को देखा और फिर तनु के बगल में बैठा दिवाकर पापा से बोला “अंकल! डॉली को और कुछ देर यहाँ रहने दीजिए न! हम पहली बार मिल रहे हैं तो, हम थोड़ी देर और बात करलें, यूँ भी हम रोज-रोज कहाँ मिलेंगे?” पापा ने कहा “ठीक है” और चले गये।

“पहली बार मिले हैं, मिलते ही दिल ने कहा…” समीर ने इस धुन की हम्बिंग की तो दिवाकर ने उस पर एक धौल जमाकर उसे डांट दिया और मुझसे बोला “सॉरी! डॉली, बट डोन्ट माइंड, ये शरारती है।”

“तुम्हें कैसे पता कि मैं…ये डॉली के लिए गा रहा था? हो सकता है कि मैं…ये डॉली की तरफ़ से तुम्हारे लिए गा रहा था।” समीर ने कहा तो हम सभी एक साथ हँस पड़े।

मेरी इच्छा हुई, इन लड़कों से कह दूँ ‘जब भी मिलने का दिल करे, मेरे घर चले आना। मैं नहीं आ सकती तो क्या, तुम तो आ सकते हो न!?’ फिर याद आया ‘ये कैसे आयेंगे? इन्हें तो दिखता नहीं।’ सोचकर मैं चुप ही रही।

“हमने आपके पापा को वापस कर दिया, आपको बुरा तो नहीं लगा?” तनु ने कहा।

“नहीं तो।” मैं मुस्कुराई।

“डॉली जी आप तो आ नहीं सकतीं, इसलिए आपको तो बुला नहीं सकते, हम ख़ुद आपसे मिलने आपके घर आते लेकिन…मैं और तनु परसों ही बैंगलुरू जा रहे हैं, आगे की पढ़ाई के लिए। क्योंकि इस शहर में हमारी कॉलेज की पढ़ाई हो गई।” दिवाकर ने कहा।

“कॉलेज?” मैंने आश्चर्य जताया।

“हाँ कॉलेज, हम इस स्कूल से थोड़े हैं। यहाँ तो हम तब पढ़ते थे, जब बच्चे थे। अभी तो हम कॉलेज में पढ़ रहे थे। लेकिन, इस स्कूल से भी हम लोगों को बहुत मुहब्बत है, इसलिए जब भी यहाँ कोई कार्यक्रम होता है, तो हम यहाँ उसमें शामिल होने आ जाते हैं।” तनु बोला।

यूँ तो टीनएजर्स में बातें बहुत होती हैं लेकिन, सच ये है कि कुछ बातें शब्दों में होती हैं और ज़्यादा भंगिमाओं में। कुछ मुखर होती हैं और ज़्यादा मौन में। फिर भी, हमारे बीच बहुत तरह की बातें हुईँ, हँसी-मजाक हुआ, एक-दूसरे को गीत सुनाये गये, तारीफें की गईं, कमियाँ बताई गईं और एक-दूसरे की समस्याओं को सुलझाने के सुझाव दिये गये। मैं इसके पहले कभी ऐसे दोस्तों से नहीं मिली थी, जो पहली ही मुलाकात में इतने मिलनसार, इतने सरल, सादे और सच्चे हों। मुझे उनके शानदार व्यक्तित्व पर आश्चर्य भी हो रहा था, गर्व भी था और उनसे मिलने की ख़ुशी भी।

पापा फिर आ चुके थे। “हो गईं बातें? अब चलें?” पापा ने कहा।

“हाँ बिल्कुल, वरना हमारी बातें तो ख़त्म होने से रहीं।” दिवाकर बोला।

“अंकल आप इजाज़त दें, तो क्या मैं डॉली से उसका कॉन्टैक्ट नंबर ले सकता हूँ।” तनु ने कहा।

“ले लीजिये, मुझे क्या परेशानी।” पापा बोले। फिर हमलोग एक-दूसरे को अपने-अपने मोबाइल नंबर दिये और फिर मनमीत सर के कमरे में गई। वह अपने काम में व्यस्त थे, मैंने उनसे कहा “सर! चलती हूँ।” और उन्हें अपना मोबाइल नंबर पकड़ा दिया।

“ओह! अच्छा!!! तुम जा रही हो? कैसा लगा तुम्हें यहाँ आकर?” मनमीत सर ने कहा।

“जी बहुत अच्छा।”

“फिर आना।” सर ने कहा तो मैं मुस्कुरा दी। फिर जसपाल सर सहित सभी से विदा ली और चली आई।

— समाप्त —

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