‘विकलांगता विमर्श’ साहित्य के सबसे नवीन विमर्शों में से एक है। यह सच है कि पिछले कुछ दशकों में विकलांग पात्रों के माध्यम से विकलांगजन के जीवन को साहित्य की विभिन्न विधाओं में सामने लाने का प्रयास किया गया है। लेकिन यह अन्य विमर्शों की तुलना में इतना कम हुआ है कि इसे नगण्य भी माना जा सकता है। श्वेतवर्णा प्रकाशन ने यह अनुभव किया कि लोग जब भी विकलांगता की बात करते हैं तो वे महान दार्शनिकों, साहित्यकारों, खिलाड़ियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों आदि ऐसे व्यक्तियों की बात करने लगते हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में आदर्श स्थापित किया है। वे आम विकलांगजन की स्थिति, मूलभूत समस्याओं और निराकरण की तरफ़ उतने चिंतित नज़र नहीं आते हैं। स्थिति तब और भी असमान्य लगती है जब सामान्य कहा जाने वाला समाज विकलांगता या विकलांगता-विमर्श के अर्थ को ही नहीं समझ पाता है।
जहाँ एक तरफ दलित, स्त्री, और यहाँ तक कि पर्यावरण विमर्श में भी हम आमूल परिवर्तन के साथ वातावरण निर्माण पर ज़ोर देते हैं वहीं विकलांगता विमर्श अपवादों की उपलब्धियों में ही अपना सर्वस्व ढूँढता नज़र आता है। शायद यही कारण है कि जहाँ दलितों और स्त्रियों के प्रति समाज व साहित्य की सोच बदली है और वातावरण निर्मित हुआ है वहीं विकलांगता के प्रति ‘बेचारा’ भाव से हम उबर नहीं पाये हैं।
‘श्वेतवर्णा प्रकाशन’ ने यह अनुभव किया है कि इस विमर्श को समझने और विकलांगजन के प्रति एक बेहतर वातावरण बनाने के लिए साहित्य के माध्यम से समाज में संवेदना उत्पन्न करने के साथ-साथ इसकी गंभीरता पर भी ज़ोर देना आवश्यक है।
इस दिशा में श्वेतवर्णा प्रकाशन ने प्रथम प्रयास के रूप में जैसा मैंने देखा तुमको शीर्षक से एक कविता-संग्रह प्रकाशित किया। इस संग्रह में ‘विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार’ के लिये प्राप्त हुई विकलांगता विमर्श आधारित काव्य-रचनाएँ संकलित की गई हैं। सम्यक ललित और स्वप्निल तिवारी द्वारा संपादित इस पुस्तक में विभिन्न आयु वर्ग के रचनाकारों की अनेक विधाओं की रचनाएँ संकलित हैं।
अब श्वेतवर्णा प्रकाशन विकलांगता-विमर्श की पुस्तकों का लगातार प्रकाशन करता है और इस क्षेत्र में अग्रणी प्रकाशन संस्थान माना जाता है। विकलांगता-विमर्श सम्बंधी निम्नलिखित पुस्तकों का प्रकाशन श्वेतवर्णा द्वारा किया जा चुका है:
- अधेड़ हो आयी गोले / भारतेन्दु मिश्र (काव्य संग्रह)
- बा-वज़ूद / संपादक: सम्यक ललित (कहानी संग्रह)
- विटामिन ज़िन्दगी (मैथिली) / लेखक: ललित कुमार, मैथिली अनुवाद: आदित्य भूषण मिश्रा (संस्मरण)
- Disabled Lives Matter: An Anthology of Articles On Disability / Abha khetrapal
- Intellectual Disability: Impact On Family / Dr. Meeta Mukherjee
- इनबॉक्स / गीता पंडित (उपन्यास)
- लकीर के उस पार / आलोकिता (उपन्यास)
- मुड़ के देखो मुझे / डॉ. गीता शर्मा (कहानी संग्रह)
- मैं तुम्हारी तरह / सम्पादक: सम्यक ललित (कहानी संग्रह)
सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि श्वेतवर्णा प्रकाशन के लिए विकलांगता विमर्श केवल विकलांगजन को प्रेरित करने की पहल नहीं है बल्कि समाज को इस ओर जाग्रत करने, उनकी समस्याओं से अवगत कराने और उन्हें बेचारा भाव की जगह समानता का अधिकार दिलाना ही इसका ध्येय है।