मार्च 2024 के महीने में मैंने दिल्ली से गोंडा (उत्तर प्रदेश) तक की यात्रा सड़क मार्ग से की। गोंडा जिले में मैं दीपक त्रिपाठी, शेषराम व अन्य विकलांगजन से मिलने गया था और उनकी नमकीन उत्पादन करने वाली छोटी-सी इकाई देखने गया था। यात्रा में मेरे मित्र चरण सिंह और शारदा सुमन भी साथ थे। हम चरण की कार में गए और इस कार को चरण व शारदा ने ड्राइव किया।
मैंने ऐसा सुना था कि नए नियमों के अनुसार अब टोल कर में छूट प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि गाड़ी modified हो या विकलांग व्यक्ति के नाम पर रजिस्टर्ड हो। यदि विकलांग व्यक्ति किसी मित्र या संबंधी की सामान्य गाड़ी में भी यात्रा कर रहा है तो भी उस गाड़ी को केवल UDID Card दिखाने से टोल टैक्स में छूट मिल जाएगी। मैंने सोचा कि क्यों न इस यात्रा में इसकी व्यावहारिक जाँच की जाये। हमने इस यात्रा में करीब 1700 किलोमीटर का रास्ता तय किया और हम उत्तर प्रदेश के 14 टोल नाकों से गुज़रे।
करीब पचास प्रतिशत टोल नाकों पर मेरे UDID Card को स्वीकार कर लिया गया और टोल में छूट प्राप्त हो गई। बाकी के टोल नाकों पर बहस करने के बाद भी छूट नहीं मिल पाई। टोल ऑपरेटर पूछते थे कि गाड़ी modified है या नहीं और गाड़ी की RC दिखाने को कहते थे। यह स्पष्ट था कि इन टोल नाकों पर लोग अभी यह नहीं जानते थे कि अब टोल टैक्स में छूट के लिए गाड़ी का modified होना या विकलांग व्यक्ति के नाम पर होना आवश्यक नहीं है।
जैसा कि अधिकांश लोग करते हैं — चरण ने भी फास्ट टैग को अपनी कार की विंड-स्क्रीन पर चिपकाया हुआ है। इसके कारण एक समस्या यह हुई कि कई टोल नाकों पर ऑपरेटर को UDID Card दिखाने से पहले ही सिस्टम ने फास्ट टैग को पहचान कर टोल टैक्स काट लिया। चूंकि हमारा फास्ट टैग शीशे पर चिपका हुआ था — इसलिए उसे हटाना संभव नहीं था। सिस्टम फास्ट टैग से टोल न काटे इसके लिए हमने कई तरकीब आजमाई। टोल नाके के करीब पहुँचने पर हमने एक मोबाइल फोन फास्ट टैग के ऊपर रख कर देखा — किसी ने बताया था कि ऐसा करने से सिस्टम फास्ट टैग को पहचान नहीं पता — लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। सिस्टम इसके बाद भी फास्ट टैग को पहचान लेता है। हमने गाड़ी को ऑपरेटर की खिड़की से थोड़ा-सा पहले रोकने की तरकीब भी लगाई — लेकिन इसमे भी कामयाबी नहीं मिली।
मेरी सलाह है कि यदि आप इस तरह किसी मित्र की गाड़ी में यात्रा करते हुए UDID Card के आधार पर छूट लेना चाहते हैं तो फास्ट टैग को शीशे पर न चिपकाए। फास्ट टैग को एक एलुमिनिअम फोइल में लपेट कर गाड़ी के अंदर रख लें। ऐसा करने से हो सकता है कि सिस्टम फास्ट टैग को पहचान न पाये और आप ऑपरेटर को अपना UDID Card दिखा कर छूट ले सकें। इस तरकीब को हम टेस्ट नहीं कर पाये थे क्योंकि हमारा फास्ट टैग पहले से ही शीशे पर चिपकाया हुआ था। यदि आप इस तरकीब का प्रयोग करते हैं तो अपने अनुभव अवश्य मुझसे साझा करें।
दूसरा रास्ता तो यह है ही कि आप अपनी ख़ुद की गाड़ी के लिए निशुल्क फास्ट टैग ले लें — लेकिन यह फास्ट टैग केवल वही विकलांगजन ले पाएंगे जिनकी ख़ुद की गाड़ी है।
नई कार लेने पर उसका फास्टैग बनवाने की प्रक्रिया बड़ी लंबी एवं कष्टकारी है। एक विकलांग व्यक्ति अपना फास्टैग बनवाने के लिए लंबी दुविधा में पड़ जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण NHAI वाले फास्टैग बनाने में आना कानी करते हैं । उन्हें 5-6 महीने तक फास्टैग नहीं मिल पाता है। इसलये बिना फास्टैग साथ होने से उन्हें डबल टोल देना पड़ता है। क्या इस समस्या का कोई समाधान है? कि फास्ट्रेक जल्दी से जल्दी मिल जाए।राजस्थान में फास्ट्रेक लेने के लिए विकलांग व्यक्ति को अपनी गाड़ी के साथ जयपुर बुलाया जाता है। चाहे वो राजस्थान के किसी भी कोने में रहता हूं उसे फास्ट्रेग लेने के लिए अपनी गाड़ी सहित जयपुर जाना पड़ेगा एक विकलांग व्यक्ति के लिए यह कैसे संभव है कि वह अपनई विकलांग गाड़ी से लेकर 500 किलोमीटर गाड़ी चलाकर राष्ट्रीय राजमार्ग पर खतरनाक ट्रैफिक के साथ जयपुर जाए और वहां से फास्ट्रेक लेकर आए यह कैसे संभव है? ऐसी स्थिति में हर विकलांग यही चाहता है कि वह फास्टैग की बजाय नगद में टोल चुका दे तो ज्यादा अच्छा है। इस समस्या का उचित समाधान किया जाए और विकलांग को उसकी समस्या से मुक्ति मिल सके। यह तो सरासर विकलांग को सुविधा के नाम से दुविधा पैदा की जा रही है अधिकारी गण इस पर उचित ध्यान देवे ऐसा अपेक्षित है।