मेरी विकलांगता को लेकर मैंने कभी भी रैना को असहज होते नहीं देखा। उसने हमेशा मेरी विकलांगता और मेरे वास्तविक व्यक्तित्व को जानने-समझने का प्रयास किया। इसके लिए उसने अपने व्यवहार को मेरे लिए सुगम “Accessible” बनाया।
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नर्क
पिछले किसी जन्म में तुम भी इसके (विकलांग) किए गुनाहों में सहभागी थे इसलिए तुम भी सज़ा के बराबर हकदार हो। तुमने इसके किए गुनाह में ऐसे साथ दिया इसलिए तुम इसकी माँ बनी, तुम फलां तरीके से जुर्म में शामिल थे इसलिए तुम इसके पिता हो। इसकी सेवा तुम्हारे हिस्से आई है तुम्हारा जन्म सफल हुआ समझो।
न देव न दैत्य
अब जब भी कोई कहीं इस शब्द से संबोधित करता है तो मन करता है कि उससे कहूँ कि अगर इसे दिव्यता कहते हैं तो आइये आप भी इस दिव्यता को जी कर देखिए।
किसकी “क्षमता का आकलन”? मेरी या ख़ुद की?
एक विकलांग व्यक्ति को ही क्यों जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी क्षमता साबित करने के लिए जद्द-ओ-ज़हद करनी पड़ती है? क्या सिर्फ़ इसलिए कि उनकी विकलांगता दिखाई दे रही है?
क्या मुसीबत है यार…
खुद पर खुद का बोझ ज़ब नहीं होता। आवाज़ सुनकर जवाब देना मुश्किल लगता है तो जीवन भर के सन्नाटों को जीने वालों से क्या कहेंगे? किसी आवाज़ को आवाज़ से जवाब दे सकना इतना भी मुश्किल नहीं होता।
शर्त इतनी है…
विकृतियों पर हँसने वाले या उन पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले और विकृतियों को देख उन पर अपने ‘ओह्ह बेचारे’ रूपी तेज़ाब छिड़कने वाले इस समाज पर तरस नहीं हँसी आनी चाहिए
हर समस्या अपने साथ समाधान लेकर आती है
उस वक़्त स्कूटी लाने के विचार से लेकर स्कूटी से अकेले बाहर जाने तक मैंने जिन-जिन समस्याओं का सामना किया उन समस्याओं के कुछ समाधान मेरे मन में बनते और बिगड़ते रहते थे। उन्हीं समाधानो में से एक समाधान के विचार को यहाँ साझा कर रही हूँ।
सुविधाजनक-लीपापोती
सुविधाओं के नाम जितनी लीपापोती हमारे साथ की जा रही है शायद ही कहीं और होती हो। एक-दो जगहों को छोड़ कर बड़ी तस्वीर में देखें तो सुविधाओं के नाम पर बस लीपापोती ही मिलती है विकलांगजन को।
मेरे मन ये बता दे तू किस ओर चला है तू?
जीवन में कुछ न कर पाने और असफल रह जाने की शंकाओं पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय अच्छा होगा कि हम अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करें।