“लंगड़ा बनाया गर्लफ़्रेंड”
लगभग मुफ़्त में बनने और प्रसारित होने वाला यह कंटेंट हर तरह की ज़िम्मेदारी से रिक्त होता है। मोबाइल कैमरा इन युवाओं के हाथों में उसी तरह है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा।
लगभग मुफ़्त में बनने और प्रसारित होने वाला यह कंटेंट हर तरह की ज़िम्मेदारी से रिक्त होता है। मोबाइल कैमरा इन युवाओं के हाथों में उसी तरह है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा।
विकलांग व्यक्तियों के साथ ऐसा होते बहुत ज्यादा देखा जाता है। इलाज के नाम पर किए जाने वाले झाड़-फूँक, टोने-टोटके फ़िल्म में काल की तरह असंभव को संभव करने की हमारी सनक नहीं तो और क्या है?
सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में बहुत अंतर होता है। प्राइवेट नौकरी एक बहती नदी की तरह होती है, आज आप इस कम्पनी में तो कल किसी दूसरी कंपनी में लेकिन सरकारी नौकरी एक समुद्र की तरह होती है, सालो-साल एक ही जगह, एक ही टेबल पर, वही रोज के लोगो के साथ काम करते समय निकल जाता है।
अपने लिये व्हीलचेयर वे तभी ख़रीद पाये जब उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली। उन्होनें विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में अनेक वर्षों तक अध्यापन कार्य किया।
अफसोस कि दुनिया में रहकर भी वह चारों तरफ अजनबी-सा तकता है। तुम्हारे इस कुशाग्र बुद्धि जीव को तुम्हारी भी कोई खबर नहीं। क्या तुम भी भूल गए हो उसे? इतनी भी क्या बेखबरी? कहलाते तो सर्वज्ञाता हो।
विकलांग व्यक्ति अपनी विकलांगता के कारण पीछे नहीं रहते बल्कि सही सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
भारत के खिलाड़ियों ने पैरिस पैरालंपिक 2024 में एथलेटिक्स, शूटिंग, जूड़ो, तीरंदाज़ी और बैडमिंटन में पदक जीते। भारत के प्रदर्शन पर लोकेन्द्र सिंह की रिपोर्ट
शायद, एक दिन, मैं इन बीमारियों पर विजय पाकर अपनी ज़िंदगी में कुछ अर्थपूर्ण कर पाऊँ जिससे मैं अपनी और अपने जैसे अन्य लोगों की कुछ मदद कर पाऊं ताकि हम सब मिलकर इस कठिन यात्रा को थोड़ा आसान बना सकें और एक-दूसरे को सहारा दे सकें।
उन्होंने अपंग व्यक्तियों की भावनाओं को समझा. अपने जैसे ही और शारीरिक विकलांगता, अपंगता वाले व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश का उजियारा भरने की दिशा में आज वो अपना पहला कदम आगे बढ़ाने को तत्पर है।
एक-एक कर उनकी सेवा समिति की 6 एम्बुलेंस शहर भर में घूमने लगी हादसों में गिरे लोगों को तुरंत हस्पताल पहुँचाने के लिए। उनके द्वारा स्थापित भाई कन्हैया जी सेवा समिति (अब जो भाई कन्हैया जी मानव सेवा ट्रस्ट है) द्वारा आश्रम चला दिए जहाँ लावारिस बेसहाराओं को रिहायश, दवाएं, भोजन और कपड़े मुहैया कराए जाते।
आदत रूपी विकलांगता बहुत व्यापक असर रखती है। अक्सर इसका निदान अपने ही पास होता है जैसे कि समय-समय खुद ही खुद को जाँचते रहना कि कहीं हमारी आदतें लत तो नहीं बन रही।
युवराज सिंह, हरभजन सिंह और सुरेश रैना का वायरल “तौबा तौबा” वीडियो विकलांगता और विकलांगजन का मज़ाक बनाता है। इन खिलाड़ियों और अधिक ज़िम्मेदार होने की आवश्यकता है
जाने क्यों लोग विकलांग व्यक्तियों को हमेशा दीन-हीन ही मानते हैं या दीन-हीन रूप में ही देखना चाहते हैं!? उनके प्रति झूठी हमदर्दी और तरस दिखाते हैं! पता नहीं कब वे जानेंगे और मानेंगे कि विकलांग लोगों को उनकी झूठी तो छोड़ो सच्ची हमदर्दी और तरस भी नहीं चाहिए। यदि कुछ चाहिए तो वह है सिर्फ़ –“समानता का नज़रिया”।
संजीव अक्सर अपने भाग्य को कोसता और सोचता कि आखिर उसकी शादी एक अपाहिज महिला से क्यों की गई? कुछ रिश्तेदारों ने तो यह नसीहत दे डाली की इस अपाहिज को छोड़ कर दूसरी शादी कर लो।