विकलांगता को लेकर को अनेक तरह की भ्रांतियाँ/ मिथक व्याप्त हैं, उनको दूर किया जाना ज़रूरी है। आइए कुछ ऐसे मिथकों या गलतफहमियों पर नज़र डालते हैं।
मिथक – विकलांगता व्यक्ति को दुखी बना देती है।
वास्तविकता – यह सत्य है कि विकलांगता के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जीवन काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन हर विकलांग दुखी ही होगा और जीवन को बोझ समझकर जी रहा होगा यह पूरी तरह असत्य है। कई विकलांग जीवन की चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हैं और जीवन को भरपूर जीते हैं। यह भी तो अक्सर होता है कि ग़ैर-विकलांग भी जीवन की चुनौतियों से परेशान हो जाएँ और अवसाद, निराशा आदि का शिकार हो जाएँ।
मिथक – समाज को विकलांगों के लिए इनक्लूसिव या समावेशी होना चाहिए।
वास्तविकता – किसी भी समाज के लिए सिर्फ़ किसी विशेष समूह के लिए इनक्लूसिव होना लगभग नामुमकिन है। वह या तो सभी वंचित, पीड़ित और कमज़ोर वर्गों के प्रति इनक्लूसिव होगा या किसी के भी प्रति नहीं।
मिथक – विकलांगों की दुरावस्था के लिए सरकार और प्रशासन ज़िम्मेदार है।
वास्तविकता – यह सच है कि सरकार और प्रशासन अक्सर अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते लेकिन वास्तविक समस्या परिवार, रिश्तेदारी और समाज से आती है। यदि परिवार और समाज संवेदनशील हों तो वह अपने बीच के विकलांगों के लिए जीवन को यथासंभव सहज और सरल बनाने के लिए प्रयास करते हैं। वही मानसिकता सरकार और प्रशासन में भी जाती है और हमको बदलाव दिखने लगता है।
मिथक – विकलांग स्वस्थ नहीं होते।
वास्तविकता – अधिकांश मामलों में विकलांगता के अलावा सामान्य स्वास्थ्य उतना ही खराब या अच्छा होता जितना किसी और का और उनके स्वास्थ्य का कोई भी सम्बन्ध विकलांगता से नहीं होता।
मिथक – विकलांगों को बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ता है।
वास्तविकता – यदि समाज में बॉडी शेमिंग की प्रवृत्ति है तो सभी को बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ सकता है, फिर चाहे शेमिंग विकलांगता के लिए हो, शरीर की बनावट को ले कर हो, किसी जाति / धर्म / नस्ल आदि के लिए हो या मुख्य धारा में शामिल न हो पाने को लेकर हो। यह भी हो सकता कि जो विकलांग ख़ुद बॉडी शेमिंग का सामना कर रहा हो वह भी जाने-अनजाने दूसरे की बॉडी शेमिंग कर रहा हो।
मिथक – विकलांगों का यौन जीवन सामान्य नहीं होता।
वास्तविकता – सामान्य यौन जीवन का कोई पैमाना है ही नहीं, यह व्यक्तियों के बीच का प्रयोग / खोजबीन / समझ है कि वे किस तरह से यौन जीवन जीते हैं, फिर चाहे वे विकलांग हों या ग़ैर-विकलांग। किसी तरह की विकलांगता में यौन जीवन आसान हो सकता है और किसी अन्य तरह की विकलांगता में कुछ अनुकूलन आदि की ज़रूरत हो सकती है। लेकिन उससे यह नहीं कह सकते कि यौन जीवन सामान्य नहीं है या यौन जीवन जैसा कुछ है ही नहीं। जहाँ तक यौन सम्बन्धी कुंठाओं, मानसिक समस्याओं आदि का सम्बंध है, वह तो विकलांगों को भी घर-परिवार और समाज से वैसे ही मिलती हैं जैसे और सभी को।
मिथक – प्रकृति कुछ लेती है तो कुछ देती भी है।
वास्तविकता – विकलांगों के पास कोई विलक्षण शक्ति होती है, प्रकृति उनको विकलांग बनाती है तो बदले में कुछ देती भी है, इस तरह की बातें काफ़ी लोकप्रिय हैं। हक़ीक़त यह है कि विकलांगों के पास कोई विलक्षण शक्ति नहीं होती और जिस अनुकूलन की क्षमता से वह अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करते हैं वह सभी के पास होती। साथ ही यदि किसी अंग की अपेक्षा दूसरे अंग का उसके स्थान पर इस्तेमाल किया जाता है तो उसकी क्षमता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है; जैसे पैरों की बजाय हाथों का इस्तेमाल किया जाए या आंखों की बजाय कानों का। यह क्षमता हर एक इंसान में होती है, न कि केवल विकलांगों में; एथलीट और खिलाड़ी भी इसी क्षमता के बल पर अपने प्रदर्शन में सुधार लाते हैं।
मिथक – विकलांगता के लिए ऐसे शब्द प्रयोग करने चाहिए जिनमें कमी का अहसास न हो। इससे विकलांगों को प्रोत्साहन मिलता है।
वास्तविकता – विकलांगता से जुड़े हुए शब्दों के सहज स्वीकार की बजाय उनके लिए लुभावने शब्दों का प्रयोग करना आगे चल कर और समस्या पैदा करता है, क्योंकि यह एक तरह से पलायन है और स्वीकार्यता के अभाव का सूचक है। सीधे, सटीक शब्दों का प्रयोग और उनकी स्वीकार्यता होना वास्तविक आवश्यकता है। ज़रूरत इस बात की है उन शब्दों का उचित इस्तेमाल किया जाए और किसी का अपमान करने के लिए वे शब्द इस्तेमाल न किए जाएँ। साथ ही भी यह भी अवश्य ध्यान रखना चाहिए कहीं हम अपने शब्दों में विकलांगता की बजाय कोई ग़लत जजमेंट तो नहीं कर रहे, जैसे मूक व्यक्ति के लिए डम्ब शब्द का प्रयोग या बौद्धिक विकलांग के लिए बेवकूफ।
आलेख अच्छा है लेकिन आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि हम आज जो भी व्यक्तित्व लिए हुए हैं उसका ज्यादातर हिस्सा हम जिस समाज व परिवेश में रहते हैं उसके प्रभावों की वजह से हैं ज्यादातर विकलांग जन इसकी छाप से गहरे प्रभावित होते हैं