हेलेन केलर एक दृष्टिहीन और बधिर महिला अपनी किताब ‘द ओपन डोर’ में लिखती हैं-
हम अपनी पीड़ा के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर सोचने लगते हैं तो जैसे निरर्थक पीड़ा मोल ले लेते है। आखिर हमीं इस तपन से क्यों बचे रहें, जो हमारे जैसे सभी नश्वर प्राणियों को निखार कर कंचन बनाती है। अपने से ज्यादा सौभाग्यशाली लोगो के भाग्य से अपने भाग्य की तुलना करने के बजाय हमें अपने जैसे बहुसंख्यकों से अपनी तुलना करनी चाहिए। तब हमें लगेगा हमीं मजे में हैं। – हेलेन केलर (‘द ओपन डोर’ के हिंदी अनुवाद मुक्तद्वार पृष्ठ 23 से; अनुवादक – भवानीप्रसाद मिश्र)
एक दृष्टिहीन और बधिर महिला और ऐसा सकारात्मक दृष्टिकोण कि आजकल शायद ही किसी नॉर्मल व्यक्ति के पास हो। इतनी सकारत्मकता शायद ही कहीं देखने को मिलती हो। हेलेन को पढ़ने वाला हर कोई हैरान हुए बिना नहीं रह सकता कि कैसे इतनी मुश्किलों के बावजूद वह बधिर और दृष्टिहीन महिला ईश्वर की शुक्रगुज़ार होकर जीवन को कोसने की बजाय उसका आनंद लेने की बात करती है। वह पीड़ा से बचना नहीं चाहती बल्कि पीड़ा में और निखरने का हुनर जानती है। वह जानती है कि कंचन बनना है तो पिघलना होगा ही और पिघलने के लिए आँच भी सहनी होगी। तो फिर क्या गिला? और शिकायत किससे? ज़िंदगी से या उस ईश्वर से? उनसे शिकायत हो भी क्यों जो हमें निखरने और चमकने का मौका दे रहे हैं। इस दुनिया में न होकर भी हेलेन केलर अपने शब्दों के ज़रिए हमें जीने का सही ढंग बता रही हैं। अपनी मृत्यु के इतने वर्ष बाद भी उनकी लिखी बातें, उनके लेख, उनकी किताबें यही कहती हैं कि ज़िंदगी जीनी है तो खुल कर जियो। अपने अंधकार से दोस्ती करके उसे अपना लें तो जीवन अधिक सरल हो जाएगा।
अमेरिका के टस्कम्बिया में 27 जून 1880 में जन्मी हेलेन केलर जन्म से दृष्टिहीन और बधिर नहीं थीं। लगभग ढाई वर्ष की आयु में एक बीमारी के कारण उनकी देखने और सुनने की शक्ति चली गई। पिता आर्थर हेनले केलर माँ केट एडम्स केलर अपनी फूल-सी बच्ची की ऐसी अवस्था से बेहद दुखी थे लेकिन किया ही क्या जा सकता था। समय के साथ उन्हें हेलेन की शिक्षा की चिंता हुई मगर हेलेन को पढ़ाने व समझने के लिए विशेष तरह के प्रशिक्षक की आवश्यकता थी; जो एनी सुलिवन के रूप पूर्ण हुई। एनी सुलिवन केवल हेलेन की प्रशिक्षिका ही नहीं बनी बल्कि उन्हें समझते हुए जीवन भर उनके साथ रही। हेलेन से उसके 6 वर्ष की उम्र में जुड़ने वाली एनी सुलिवन लगभग 49 सालों, सन 1932 में अपनी मृत्यु, तक हेलेन के साथ रही। हेलेन को पढ़ाना मुश्किल था इसलिए एनी ने मैनुअल अल्फाबेट और ब्रेल लिपि का इस्तेमाल किया। वर्षों के प्रशिक्षण, कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हेलेन केलर “कला-स्नातक” की उपाधि प्राप्त करने वाली पहली दृष्टिहीन-बधिर बनी।
हेलेन केलर की किताब ‘द स्टोरी ऑफ माई लाइफ’ बहुत प्रसिद्ध हुई। पूरे जीवन में 500 से अधिक लेख और 14 किताबें लिखने वाली हेलेन केलर को 1964 में अमरीकी सम्मान ‘प्रेजिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम’ से नवाज़ा गया। 1955 में हेलेन केलर भारत यात्रा पर आईं और उनकी मुलाकात तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से हुई। 1961 में एक गंभीर स्ट्रोक के बाद हेलेन ने अपनी सामाजिक गतिविधियाँ बंद कर दी। 87 वर्ष की आयु में अमेरिका के कनेक्टिकट शहर में 1 जून 1968 को वे ऐसी सोई कि फिर जगी ही नहीं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया लेकिन सम्पूर्ण मानवता को धर्य, जिज्ञासा, अंगों का सही इस्तेमाल, कड़ी मेहनत, समर्पण और लगातार सीखते रहने की सीख हेलेन केलर अपने जीवित शब्दों के माध्यम से आज भी दे रही हैं।
अंत में उन्हीं के कहे कुछ कथन –
‘जीवन एक साहसी रोमांच है या कुछ भी नहीं है।’
‘हम अकेले बहुत कम हासिल कर सकते हैं, लेकिन एक साथ बहुत कुछ।’
‘मैं जिसे खोज रही हूँ वह बाहर नहीं है, वह मुझ में है।’
Excellent work Pardeep Beta beautiful /Remarkable story of Helan Kalar
Nice bhaiya👌
सर.. हेलेन केलर के जीवन की एक झलक दिखाने के लिए आपका बहुत आभार 🙏🙏