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हिन्दू पौराणिक ग्रंथो से विकलांग पात्र

सामाजिक दृष्टिकोण से जब भी विकलांगता की बात होती है तो सबसे पहले यही सामने आता है कि समाज में किस प्रकार विकलांग व्यक्तियों को हाशिए पर रखा जाता है। हम अक्सर यह बात करते हैं कि विकलांग व्यक्तियों को समाज बिलकुल नज़रंदाज़ करता हुआ चलता है। लेकिन, भारतीय (विशेषतः हिन्दू) पौराणिक कथाओं को देखें तो ऐसे कई विकलांग पात्र मिलेंगे जिन्होंने उन कथाओं में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन पात्रों के न होने से उन कथाओं का पूरा प्रारूप ही बदल जाता।

आइये आज हम बात करते हैं हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में उल्लेखित कुछ ऐसे ही विकलांग पात्रों के विषय में…

अष्टावक्र: आठ शारीरिक विकृतियों से प्रभावित महान वैदिक ऋषि

किवंदंतियों में कहा जाता है कि अष्टावक्र जब अपनी माता के गर्भ में थे तभी उन्होंने अपने नाना, जो कि उनके माता-पिता के गुरु भी थे, द्वारा सिखाए जा रहे वैदिक मन्त्रों का उच्चारण सटीकता से करना सीख लिया था। एक दिन जब उनके पिता उन्हीं वेद मन्त्रों का अभ्यास कर रहे थे तो उन्होंने उच्चारण में आठ ग़लतियाँ कर दीं। गर्भस्थ शिशु ने यह सुना और अपने पिता को उन ग़लतियों को सुधारने की सलाह दे दी। पिता का अहंकार इस बात को बर्दाश्त न कर सका और आठ ग़लतियों को गिनवाने के कारण उन्होंने शिशु को आठ विकृतियों के साथ जन्म लेने का श्राप दे दिया। इसी कारण वह शिशु आठ विकृतियों के साथ जन्मा और उसे अष्टावक्र नाम मिला।

इन आठ शारीरिक विकृतियों के बावजूद अष्टावक्र समाज में एक सम्मानित ऋषि के दर्जे पर पहुँचे। उनके जीवन में ऐसे कई अवसर आये जब उन्हें समाज के लोगों द्वारा अपमानित किया गया। लेकिन अष्टावक्र ने अपनी बुद्धि और ज्ञान से ब्रह्मर्षि (एक ऋषि के लिए सर्वोच्च पद) का पद प्राप्त किया। वे माता सीता के पिता विदेह जनक के आधिकारिक गुरु थे। उन्होंने अपने अर्जित ज्ञान के सार के रूप में अष्टावक्र संहिता की रचना की ताकि वे उस ज्ञान को जन-जन तक पहुँचा सकें।

धृतराष्ट्र: कुरु वंश के दृष्टिहीन राजा (प्रतिनिधि)

महाकाव्य महाभारत की कथा के प्रमुख पात्रों में से एक धृतराष्ट्र जन्मांध थे। किवंदंतियों में कहा गया है कि राजा विचित्रवीर्य की मृत्यु हो चुकी थी और उनके सिंहासन का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। उनकी माता सत्यवती ने इसी कारण अपने दूसरे पुत्र ऋषि व्यास को आमंत्रित किया ताकि वे नियोग क्रिया से विचित्रवीर्य की पत्नियों को गर्भधारण कराएँ। राजा की पहली पत्नी अम्बिका ने ऋषि से डरकर आँखें बंद कर लीं और इसी कारण से उन्होंने एक दृष्टिहीन शिशु को जन्म दिया जिसका नाम धृतराष्ट्र रखा गया।

कहते हैं कि दृष्टिहीनता के बावजूद धृतराष्ट्र एक बलशाली पुरुष थे जो एक बार में 100 हाथियों से लड़ने का दम रखता था। कई लोग धृतराष्ट्र को महाभारत कथा का मुख्य खलनायक मानते हैं क्योंकि वह चाहता तो अपने पूरे परिवार, सगे-सम्बन्धियों और देश को महाभारत जैसी विकराल युद्ध विभीषिका में झुलसने से बचा सकता था। कुछ लोगों का यह तर्क भी होता है कि उसकी विकलांगता के कारण समाज ने उसके साथ भेदभाव किया। आप चाहें धृतराष्ट्र को खलनायक के रूप में देखें या उसके प्रति संवेदना रखें लेकिन वह महाभारत कथा का इतना प्रमुख और केन्द्रीय पात्र है कि उसे नज़रंअदाज़ तो बिलकुल भी नहीं किया जा सकता।

शकुनि (मामा): चौसर का महारथी

महाभारत की बात हो रही हो तो सबसे बड़े खलनायक शकुनी मामा को कैसे भूला जा सकता है? वह धृतराष्ट्र का साला था जो अपनी बहन गांधारी से अत्यंत प्रेम करता था। उसकी बेहद खूबसूरत बहन गांधारी का विवाह एक दृष्टिहीन राजकुमार से होने के कारण वह इतने गुस्से में था कि उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी धृतराष्ट्र और उसके वंश को बर्बाद करने की कोशिशों में झोंक दी।

इस दुष्ट व्यक्ति, जिसने अपना बदला लेने के लिए एक तरह से पूरे महाभारत की ही साजिश रची, को अक्सर हल्का लंगड़ा कर चलते दिखाया जाता है जो यह दर्शाता है कि उसे किसी तरह की अस्थि विकलांगता थी। कई जगह उसकी एक आँख को भी विकृत रूप में दर्शाया जाता है।

कालिदास: बौद्धिक रूप से अक्षम एक महान लेखक

कालिदास ऐतिहासिक भारत के महान कवियों और लेखकों में गिने जाते हैं जिन्होंने कई कालजयी कविताएँ और नाटक लिखे हैं। हालाँकि हम कभी भी इनकी विकलांगता के बारे में नहीं सुनते हैं। ऐसा शायद इसलिए है कि बौद्धिक विकलांगता एक आधुनिक अवधारणा है जो हाल के समय में ही प्रचलित हुई है। लेकिन, कालिदास के जीवन की कई घटनाएँ इस और इंगित करती हैं कि उन्हें बौद्धिक  विकलांगता थी।

एक बेहद बुद्धिमान और शिक्षित राजकुमारी थी जिसने यह ठान रखा था कि वह ऐसे ही किसी पुरुष से विवाह करेगी जो बौद्धिक रूप से उससे बेहतर हो और उसे शास्त्रार्थ में पराजित कर सके। उससे विवाह करने की इच्छा से बहुत से पुरुष आते और शास्त्रार्थ में हार जाते। राजकुमारी ऐसे पुरुषों से न सिर्फ़ विवाह करने से मना करती बल्कि वह उनका अपमान भी करने लगी थी। कुछ अपमानित पुरुषों ने मिलकर राजकुमारी से उसके अहंकारी व्यवहार का बदला लेने की योजना बनाई। अपनी योजना को क्रियान्वयित करने के लिए वे लोग किसी ऐसे पुरुष की तलाश में निकले जो अत्यंत मूढ़ बुद्धि का हो। उन्हें एक व्यक्ति नज़र आया जो उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह बैठा था। यह व्यक्ति कालिदास ही था जिसका विवाह उन पराजित पुरुषों की चाल के कारण अंततः उसी विदूषी राजकुमारी से हुआ। शादी की पहली रात ही राजकुमारी ने इस व्यक्ति की मूर्खता को जान कर उसे अपने महल से बाहर फेंक दिया। इस अपमान और उसके बाद किये अथक प्रयास ने कालिदास को एक कालजयी कवि व लेखक बना दिया।

मंथरा: कुबड़ी दासी जिसे शायद दृष्टि दोष भी था

प्रभु श्री राम के वनवास का मार्ग प्रशस्त करने वाली दासी मंथरा को आख़िर कौन नहीं जानता? हालाँकि भगवान राम के मन में मंथरा के विरुद्ध कभी कोई दुर्भावना नहीं आई लेकिन लोग आज भी मंथरा को उस दुष्टा के रूप में याद करते हैं जिसके कारण श्री राम को माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा था। यही वह दासी थी जिसने रानी कैकयी को भड़का कर राजा दशरथ को भरत को राजसिंहासन और युवराज घोषित हो चुके राम को वनवास देने के लिए विवश किया था।

मंथरा को कूबड़ था। विकलांगता के बावजूद उसे राजकर्मचारियों के बीच अच्छा पद प्राप्त था। वह रानी कैकेयी की मुख्य दासी थी। इससे इस बात का अंदाज़ लगाया जा सकता है कि उस समय विकलांग व्यक्ति भी मुख्यधारा का हिस्सा थे और समाज में उनकी हिस्सेदारी थी।

शुक्राचार्य: असुरों के गुरु जो एक आँख से दृष्टिहीन थे

ऋषि भृगु के पुत्र शुक्र एक महान ऋषि माने जाते थे। वे एक विद्वान व्यक्ति थे और उन्हें ऐसा लगता था कि देवताओं के गुरु बनने के लिए वे सबसे योग्य उम्मीदवार थे। लेकिन, जब चुनाव की बारी आई तो बृहस्पति को देवताओं के गुरु का पद मिल गया। शुक्र ने इसे अपने अपमान की तरह देखा और देवताओं से बदला लेने के लिए असुरों से मिल गए और उनके गुरु बन गए। राजा बलि से लेकर रावण के पुत्र मेघनाद जैसे कई महान असुरों के वे आचार्य रहे।

शुक्राचार्य को जन्म से कोई विकलांगता नहीं थी। ऐसा कहा जाता है कि शुक्राचार्य ने वामन अवतार में प्रकट हुए भगवान विष्णु को उस रूप में भी पहचान लिया था और वे अपने शिष्य दानवीर राजा बलि को बचाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपना आकार अति-सूक्ष्म कर लिया और उस पात्र में जा घुसे जिससे जल लेकर बलि वामन देवता को तीन पग भूमि देने का प्रण लेने वाला था। शुक्राचार्य ने पात्र में से जल का प्रवाह रोक दिया। इस पर भगवान वामन ने एक तिनका लेकर पात्र में डाला ताकि जल का प्रवाह आरम्भ हो सके। यह तिनका शुक्राचार्य की आँख में जा लगा और उन्होनें अपनी एक आँख खो दी

वामन: भगवान विष्णु का वह अवतार जो बौना था

वामन भगवान विष्णु द्वारा लिए गए दशावतार में से एक है जो असुरों का नाश करने और दुनिया में अच्छाई को स्थापित करने के लिए धारण किया गया था। भगवान विष्णु का यह अवतार एक बौना ब्राह्मण था जो दैत्यराज बलि द्वारा किये जा रहे एक यज्ञ में उनसे भिक्षा लेने पहुँचा था। बलि ने उस वक़्त इंद्र को हराकर तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। एक बौने ब्राह्मण के रूप में वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगा।

वामन के छोटे कद को देखकर बलि तुरंत ही दान देने को तैयार हो गया। इसी वक़्त शुक्राचार्य उस कमंडल में घुसे और अपनी एक आँख खो बैठे। बलि के प्रतिज्ञा करते ही वामन ने अपना आकार बढ़ाया और दो पग में ही पूरी धरती और स्वर्ग को नाप लिया। वामन द्वारा तीसरा पग रखने की जगह माँगने पर बलि ने अपना सर दे दिया और उस पग के भार से वह पाताल लोक में चला गया।

त्रिवक्रा: श्री कृष्ण को प्रेम करने वाली स्त्री जिसके शरीर में तीन विकार थे

त्रिवक्रा को पौराणिक कथाओं में कई जगह कुब्जा नाम से भी संबोधित किया गया है। इस महिला के बारे में कहीं भी अधिक वर्णन मौजूद नहीं है लेकिन वह श्री कृष्ण की कहानी की एक महत्वपूर्ण किरदार है। उसे कुब्जा कहा गया क्योंकि उसे कूबड़ था और उसे त्रिवक्रा कहा गया क्योंकि कूबड़ के कारण उसका शरीर तीन जगहों से विकृत या मुड़ा हुआ था। लेकिन, उसकी सबसे ख़ास बात जिसने उसके नाम को अब तक जीवित रखा है वह था उसका कृष्ण प्रेम।

त्रिवक्रा मथुरा के राजमहल की एक विशेष दासी थी। वह राजा कंस के लिए एक ख़ास उबटन लेकर राजमहल जा रही थी जब बालक कृष्ण ने उससे वह उबटन माँगा। वह इस बात को अच्छे से समझती थी कि ऐसा करने से उसे राजा के हाथों कड़ी सजा मिल सकती थी लेकिन उसने नन्हें कान्हा को फिर भी वह उबटन दे दिया। उसके प्रेम की पवित्रता से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उसका कूबड़ ठीक कर उसे एक सुन्दर स्त्री बना दिया।

अंत में…

उपरोक्त पात्रों के अलावा हिन्दू पौराणिक कथाओं में और भी विकलांग पात्रों का ज़िक्र कहीं न कहीं मिलता है। उदाहरण के लिये सूर्यदेव के सारथी, जिनका ज़िक्र कहीं अरुण के रूप में है तो कहीं उषा के रूप में, एक ऐसे पात्र हैं जिनका जन्म कमर के नीचे के हिस्सों के बगैर ही बताया गया है। बोप देव, जिनका ज़िक्र कई अलग-अलग नामों से हुआ है, वे भी कालिदास की तरह बौद्धिक विकलांगता से प्रभावित थे और कड़ी मेहनत के बाद एक विद्वान बने। च्यवन नाम के एक ऋषि हुए जिन्हें सुकन्या नाम की एक राजकन्या ने ग़लती से दृष्टिहीन बना दिया था और बाद में पश्चाताप के रूप में उनसे विवाह कर लिया ताकि उनकी देखभाल कर सके।

यदि आपको ऐसा कोई और उदाहरण याद आ रहा हो जो हमसे छूट गया हो तो कृपया नीचे कमेंट करके बताइए और इस चर्चा को आगे बढ़ाइये।

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निर्देश निधि
निर्देश निधि
1 month ago

यह बहुत शोधपारक, जानकारी से भरा और सार्थक आलेख है। ये सभी पात्र सामान्य जीवन में इतने घुले-मिले हैं कि अक्सर इन्हें इस तरह से नहीं देखा गया। ललित जी आपको हार्दिक धन्यवाद। साधुवाद।

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