डियर भगवान
कैसे हो?
कहाँ हो आजकल?
मतलब किस ब्रह्मांड के किस कोने पर अपनी कृपा बरसा रहे हो? तुम्हारे पास तो सहूलियत है ब्रह्मांड के एक छोर से दूसरे छोर तक क्षण मात्र में पहुँच सकने की। भगवान जो ठहरे। पर्वतों, घाटियों, वनों, ऊँचे-नीचे, उबड़-खाबड़ संकरे रास्तों की क्या परवाह तुम्हें? तुम्हारे पास कोई व्हीलचेयर थोड़े है जिसके अगले पहिए सड़क की छोटी-सी दरार में भी फँस जाते हैं। कहीं-कहीं तो व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति का सारा जीवन एक जगह बैठे हुए ही निकल जाता है। साथ देने को कोई कुशल सारथी मिलता ही नहीं तुम्हारे कृष्णावतार-सा। तुम तो कण-कण में समाए हो, तो बताओ, व्हीलचेयर पर बैठे मनुष्य की मजबूरी कैसी लगती है तुम्हें? चलती व्हीलचेयर के सड़क की दरार में अटकने से अचानक लगे झटके से बेजान-सी देह को गिरने से बचाने में कितनी जान लगती है? संकटमोचक भी तो तुम ही हो न? तुम यह बेहद खूबसूरत दृश्य जो अपनी कुदरत में रमकर बनाया करते हो, क्या कभी तुमने उस दृष्टि से भी उन खूबसूरत दृश्यों को देखने का यत्न किया है जिस दृष्टि में तुमने सारे ब्रह्मांड का अंधकार भर दिया है? कभी उस अंतहीन अंधकार में भी डूबकर देखना। महसूस करना कभी कि दिन के उजाले में खुले आसमान तले चलते हुए अथाह अंधकार भरी आँखों से डग-भर की दूरी कितने ब्रह्मांड नापने के बराबर होती है! अथाह प्रकाश देह से निकलता है न तुम्हारे? तुम्हारे संगीत की धुन पर झूमते चलते कल-कल करते नदियाँ, झरने, तुम्हारे गढ़े सुरों को आवाज़ देते हर तरह के जीव। तुम भी किसी संगीत मास्टर से इशारा करते होओगे कहीं से, कि अब यह गीत बजेगा या यह संगीत गूँजेगा फिज़ाओं में। मगर कभी उसकी चुप्पी और सन्नाटे को महसूस किया है जिसके सुरों से डरे तुमने उसकी सुनने और बोल सकने की ताकत भी छीन ली थी? हो सके तो कभी उस खामोशी और सन्नाटे को भी महसूस करना। तुम तो सबकी पीड़ा जानते हो न? सब में रमे राम जो ठहरे। उस बेखबर की भी कोई खबर है तुम्हें, जिसे अपनी भी सुधबुध नहीं! अफसोस कि दुनिया में रहकर भी वह चारों तरफ अजनबी-सा तकता है। तुम्हारे इस कुशाग्र बुद्धि जीव को तुम्हारी भी कोई खबर नहीं। क्या तुम भी भूल गए हो उसे? इतनी भी क्या बेखबरी? कहलाते तो सर्वज्ञाता हो।
हो सके तो इस ब्रह्मांड के मजबूर इंसानों की ओर भी दृष्टि डालना। जाने किस ब्रह्मांड में अपनी आरतियों पर प्रसन्न हो रहे हो तुम?
बाकी सब कुछ तो तय कर ही रखा तुमने।
तुम्हारे क्रियाकलापों से हैरान-परेशान
तुम्हारे अनगिनत ब्रह्मांडों का,
एक कण मात्र।
बहुत ही सुंदर अरदास मेरी सतगुर, पास कभी तो पुकार सुनो रखो गरीब की लाज मेरे भगवंन 🙏🙏
निःशब्द…क्या दोष दे किसी को…जब अपने कर्म ही खोटे..
बहुत गहरी बात कही है! हम में से कई लोग ऐसे संघर्षों से गुजरते हैं जिनकी शायद कोई खबर नहीं लेता। भगवान से उम्मीद है कि वे भी हमारी मजबूरियों और संघर्षों पर ध्यान दें, अगर सच में भगवान है तो?
Speechless,
संवेदनाओ से उपजी मार्मिक अभिव्यक्ति.
Commendable
दिल को छू जाने वाले विचार, बहुत ही सुंदर
Bahut hi achha likha dear bete Pradeep Singh.Bhagwan tumari jaroor sunege.God bless you.Keep it up.Tumari likhi stories bahut toughing hai.
अपना दिल निकाल कर रख दिया है सर
प्रदीप भाई, खूब स्नेह पहुंचे आप तक। जिंदा रहा तो कभी मिलेंगे जरुर।
Tumhare shabdo mai bahut takat hai pradeep,God bless.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति…🌹🙏