दिव्यांग: सम्मान या उपहास

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संयुक्त राष्ट्र संगठन ने विश्व भर के देशों की सरकारों से बात करके 3 दिसंबर को वर्ल्ड डिसएबिलिटी डे के रूप में घोषित किया था। इसका मकसद विकलांग व्यक्तियों की उपलब्धियों का जश्न मनाना और उन्हें भी मुख्यधारा का हिस्सा बनाना था। इसी मुहिम को आगे बढ़ाने के प्रयास में भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक भाषण में विकलांग की जगह दिव्यांग शब्द का इस्तेमाल किया। बाद में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने विकलांग शब्द को समाप्त करके उसकी जगह दिव्यांग शब्द रखने का निर्णय लिया।

भले ही भाषण में और उसके बाद सरकार के इस कदम का मकसद विकलांग व्यक्तियों को सम्मान देना रहा हो लेकिन दिव्यांग शब्द सम्मान से अधिक विकलांगजन की विकृतियों और उनके अंगों का उपहास अधिक प्रतीत होता है। इसलिए विकलांगता क्षेत्र का बड़ा वर्ग इस बदलाव के खिलाफ विरोध दर्ज करा रहा है। विरोध होना लाज़मी भी है। आखिर कोई विकृति भव्य और अलौकिक कैसे हो सकती है? दिव्य के यही अर्थ हैं। यह शब्द (दिव्य+अंग= दिव्यांग) ऐसे ही बना है। अब प्रश्न यह उठता है कि कोई शारीरिक या मानसिक विकृति या किसी हादसे या बीमारी के चलते किसी का कोई अंग विच्छेद हो जाना दिव्यता को पा जाना हुआ? एक बार को अगर मान भी लिया जाए कि कोई विकलांग अपनी सीमाओं को तोड़ कर सामान्य रूप से कुछ कर पा रहा है तो वैसा तो बहुत से नॉर्मल लोग पहले से ही कर रहे हैं तो क्या वे सब भी दिव्यांग कहे जाने चाहिए? उदाहरणत के लिये सुमित अंतिल भाला फेंकने में चैंपियन हैं तो नीरज चोपड़ा भी दिव्यांग होने चाहिए क्योंकि वे भी भाला फेंकने में चैंपियन हैं। सुमित अंतिल केवल अपने खराब पैर के कारण दिव्य कैसे हो सकते हैं? क्या पैर में दिक्कत दिव्यता है सुमित अंतिल की? चैंपियन्स तो बड़े लोग हुए उन्हें तो वैसे भी बहुत सम्मान से देखा व संबोधित किया जाता है।

अगर बात आम लोगों की करें तो दिव्यांग तो दूर कोई विकलांग कहकर भी संबोधित नहीं करता है विकलांगजन को। लंगड़ा, अंधा, काणा, बहरा, पगलैट, टुंडा, गूंगा, हकला, जैसे उपहासजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है विकलांगों के लिए। ये सब शब्द अपमानजनक तभी लगते हैं जब इन्हें उस प्रकार इस्तेमाल किया जाता है। मगर दिव्यांग शब्द तो सरासर कटाक्ष-सा लगता है। जैसे कोई आप को सामूहिक ताना दे रहा हो।

जब चारों तरफ दिव्यांग, दिव्यांग, दिव्यांग गूँज रहा था तब नज़र इस साइट विकलांगता.कॉम पर पड़ती है सब तरफ जब दिव्यांग की गूँज थी तब भी यह साइट विकलांगता.कॉम थी। इसके लिए इसके संचालक ललित कुमार जी को अनेक शुभकामनाएँ और बधाई देता हूँ कि सब तरफ के भारी दबाव के बाद भी आपने साइट का नाम न बदलकर दिव्यांग शब्द के खिलाफ एक आवाज़ बुलंद की है। वैसे दिव्यांगता.कॉम नाम जंचता भी नहीं। किसी और का तो पता नहीं लेकिन अपने लिए जब भी दिव्यांग सुनता हूँ तो ध्यान सीधा अपने अकड़े हुए अंगों और जोर लगाकर निकली आवाज़ पर आकर रुक जाता है और उनमें दिव्यता खोजने लगता हूँ।

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NEELAM PAREEK
NEELAM PAREEK
4 months ago

🌹🌻🌷💐

Anil Kumar
Anil Kumar
4 months ago

सत्य वचन..जिस पर बीतती है..वही जानता है..बन्धु

Ranjodh Singh
Ranjodh Singh
4 months ago

वाह! बहुत गहरी बात कहीं किसी का खराब या टूटा हुआ अंग दिव्य कैसे हो सकता है। जैसे बहुत से लोग अनजाने ही बेटी को बेटा कहकर उसे दूसरी श्रेणी में खड़ा कर देते है। ठीक वैसे ही विकलांग को दिव्यांग कहना उसका उपहास उड़ाने जैसा ही है।

Vijendra
Vijendra
3 months ago

भाई प्रदीप आप कमाल हैं
वाक़ई एक दिव्य ज्योति है आप में
आप हमारी ताक़त और हिम्मत हैं

Vijendra
Vijendra
3 months ago

हो जाएगा ठीक सब , सब समझावे मोय !

जिसको लगती चोट है , दर्द उसी को होय

विजेंद्र ✍️

देवेन्द्र पाण्डेय।
देवेन्द्र पाण्डेय।
3 months ago

सहमत

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