इस बात में कोई दो राय नहीं कि हमारा समाज विकलांगता को सही ढंग से नहीं समझता। इस मुद्दे को लेकर लोगों में जागरूकता की बहुत कमी है। यही कारण है कि विकलांगता से हमने कई मिथकों और रुढ़िवादी व असत्य बातों को जोड़ दिया है। इन मिथकों और रूढियों का अस्तित्व में होना केवल विकलांगजन ही नहीं अपितु पूरे समाज के लिए हानिकारक है। हम चाहते हैं कि हम एक समाज के रूप में जागरूक व समावेशी बनें इसीलिए हम आज यह आलेख प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें हम विकलांगता से जुड़े कुछ अति-प्रचलित मिथकों की बात की गई है।
इस आलेख को केवल पढ़ें नहीं बल्कि ध्यान से सोचें कि क्या अनजाने में आप भी इन मिथकों और रूढियों को सच तो नहीं मानते?
मिथक: विकलांगता पूर्व जन्म के बुरे कर्मों (पापों) का फल होती है।
हमारा देश एक धार्मिक देश है जहाँ अधिकांश लोग पूर्वजन्म में विश्वास रखते हैं। हमारे समाज में यह रूढ़ि काफ़ी गहरे तक बैठी हुई है कि विकलांगता पूर्व जन्म के किसी पाप के फलस्वरूप मिलती है। यह सोच कई लोगों पर इतनी हावी है कि वे विकलांग व्यक्तियों को घृणा भाव से भी देखते हैं। कोई भी उत्कृष्ट सोच रखने वाला समाज इस बेबुनियाद बात को स्वीकार नहीं कर सकता। विकलांगता एक प्राकृतिक और सामाजिक स्थिति है जो कभी भी, कहीं भी, किसी की भी ज़िन्दगी का हिस्सा बन सकती है। इसका पाप पुण्य से कोई सरोकार नहीं है।
विकलांग व्यक्ति को ईश्वर/प्रकृति कोई अन्य दिव्य शक्ति देकर उनकी विकलांगता की क्षतिपूर्ति कर देते/देती हैं।
‘दिव्यांग’ शब्द का आधार भी यही रुढ़िवादी सोच है। वैसे मज़े की बात है कि जो समाज यह मानता है कि विकलांगता पाप-कर्मों का फल है वही यह भी मानता है कि ईश्वर विकलांगता देते हैं तो किसी अन्य शक्ति से उसकी क्षतिपूर्ति भी कर देते हैं। आपको समझना चाहिए कि एक विकलांग व्यक्ति भी किसी आम इंसान की तरह ही होता है; उसकी सफलताओं के पीछे उसकी मेहनत और लगन होती है न कि कोई दिव्य शक्ति।
दृष्टिबाधित व्यक्ति सुन भी नहीं सकता।
हाँ, यह आपने किसी को कहते हुए नहीं सुना होगा लेकिन आप गौर करेंगे तो पायेंगे कई लोग किसी दृष्टिबाधित व्यक्ति से बात करते समय काफ़ी ऊँची आवाज़ में बात करते हैं जैसे कि वह व्यक्ति सामान्य आवाज़ में बात करने पर सुन ही नहीं पाएगा। यदि कोई व्यक्ति देख नहीं सकता तो आपको ऐसे व्यवहार नहीं करना चाहिए जैसे वह सुन भी नहीं सकता।
बधिर व्यक्ति बोल भी नहीं सकते।
मूक और बधिर शब्द अक्सर साथ में ही प्रयोग किये जाते हैं। इससे हम कहीं-न-कहीं यह मान लेते हैं कि यदि कोई व्यक्ति सुन नहीं सकता तो वह बोल भी नहीं पाएगा। आमतौर पर बधिरता का असर व्यक्ति के वोकल कॉर्ड पर नहीं होता। यह ज़रूर है कि जब कोई बधिर व्यक्ति कुछ बोले तो वह अपनी आवाज़ ना सुन पाने के कारण अपनी बातचीत के लहले और सुर को साध न सके — इसलिए वह न बोलने का निर्णय ले ले। यह भी संभव है कि कोई व्यक्ति बोलना सीखने के बाद अपनी सुनने की क्षमता खो दे और वह न सुन पाने के बावजूद भी बोले। अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग स्थितियाँ हो सकती हैं। आपको यह नहीं मान नहीं लेना चाहिए कि जो सुन नहीं सकता वह बोल भी नहीं पाएगा।
यदि हम किसी विकलांग व्यक्ति की सहायता करेंगे तो ईश्वर हमारी सहायता करेंगे।
अब इसके बारे में क्या कहा जाए? किसी भी सभी समाज में हर नागरिक की ज़िम्मेदारी होती है कि वह एक-दूसरे की मदद करे (और ज़रूरत पड़ने पर मदद माँग भी ले)। किसी की मदद इसलिए करना कि ईश्वर आपकी मदद करेंगे — यह बहुत अजीब बात है। यदि आप किसी की मदद कर सकने की स्थिति में हैं तो बग़ैर किसी लेन-देन के भाव से आपको मदद करनी चाहिए, भले वह व्यक्ति विकलांग हो या न हो। एक समाज तभी आगे बढ़ता है जब उसके सदस्य एक-दूसरे की मदद करते हैं।
दृष्टिबाधित व्यक्तियों की सुनने की क्षमता बहुत तेज़ होती है।
आपने यह बात तो कई लोगों को कहते हुए सुना होगा कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों के सुनने की क्षमता बहुत तेज़ होती है; लेकिन वैज्ञानिक-तौर पर यह बात बिल्कुल ग़लत है। एक दृष्टिबाधित व्यक्ति की सुनने की क्षमता भी किसी आम इंसान की तरह ही होती है। चूँकि दृष्टिबाधित व्यक्ति आसपास के माहौल की जानकारी के लिए अपनी श्रवण शक्ति पर अधिक निर्भर करते हैं इसलिए वे ध्वनियों पर ध्यान ज़्यादा देते हैं। दृष्टिवान व्यक्ति जिन ध्वनियों को अक्सर नज़रंदाज़ कर देते हैं; एक दृष्टिबाधित व्यक्ति उन्हें अधिक ग़ौर से सुनता है। इसके अलावा उनके सुनने की क्षमता में कुछ अलग नहीं होता।
श्रवण यंत्र किसी के श्रवण दोष को पूरी तरह ठीक कर देते हैं।
कम सुनने वाले किसी व्यक्ति को कान में मशीन लगाये देख कर बहुत लोग यह मानते हैं कि अब यह व्यक्ति ठीक प्रकार सुन सकता है। श्रवण यंत्र, जिन्हें हम आम भाषा में सुनने की मशीन कहते हैं, कुछ ही मामलों में प्रभावी ढंग से काम करते हैं।
दृष्टिबाधित व्यक्ति कुछ भी नहीं देख सकते।
दृष्टिबाधिता अलग-अलग डिग्री की हो सकती है। कुछ लोगों की देखने की क्षमता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी होती है तो कुछ लोगों को चीज़ें धुंधली-सी नज़र आ सकती है। कुछ पूर्णत: नेत्रहीन व्यक्ति प्रकाश के होने या न होने को समझ सकते हैं और प्रकाश की अधिकता उनके लिए कष्टकर भी हो सकती है।
सुगम्यता केवल विकलांग व्यक्तियों के कारण ही चिंता/चर्चा का विषय है।
सुगम्यता बेशक विकलांग व्यक्तियों के लिए कई चीज़ें ‘मुमकिन’ कर देती है लेकिन यह ग़ैर-विकलांगों के लिए भी चीजें आसान बनाती है। बच्चे, बूढ़े, गर्भवती महिलाएँ और घायल व्यक्ति भले ही विकलांग श्रेणी में न आते हों लेकिन सुगम्यता इनकी भी ज़रूरत होती है।
विकलांग व्यक्ति सक्षम नहीं हो सकते।
विकलांगता व्यक्ति को किसी एक या एक-से-अधिक कार्यों में अक्षम करती है लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि एक विकलांग व्यक्ति किसी भी प्रकार सक्षम हो ही नहीं हो सकता। अपनी अक्षमता के बावजूद एक विकलांग व्यक्ति जीवन के अधिकांश आयामों में सक्षम हो सकता है।
जब कोई विकलांग व्यक्ति अधिक ख़ुश नज़र आता है तो वह ऐसा अपने दुःखों को छिपाने के लिए कर रहा होता है।
विकलांगता बेशक किसी की भी ज़िन्दगी को ज्यादा मुश्किल और कष्टकर बनाती है; लेकिन, विकलांगता किसी की ज़िन्दगी का केवल एक हिस्सा भर है, पूरी ज़िन्दगी नहीं। अन्य किसी भी इंसान की तरह एक विकलांग व्यक्ति भी ख़ुशी, ग़म और अन्य हर तरह की भावना महसूस करता है। वह पूरे वक़्त विकलांगता के ही दर्द में डूबा नहीं रहता। अपने-आप यह मान लेना कि कोई विकलांग व्यक्ति ग़म छिपाने के लिए हँस रहा है, ग़लत है।
विकलांग व्यक्ति बच्चे पैदा नहीं कर सकते यदि करेंगे तो तो बच्चे भी विकलांग ही होंगे।
विकलांगता का असर ज़्यादातर किसी के प्रजनन स्वास्थ्य पर नहीं पड़ता। यदि माता-पिता दोनों का प्रजनन स्वास्थ्य ठीक है तो विकलांगता का होना या न होना संतान की उत्पत्ति पर कोई असर नहीं डालता। साथ ही यह भी सही है कि अधिकतर विकलांग बच्चों के माता-पिता को स्वयं कोई विकलांगता नहीं होती। ज्यादातर विकलांगता आनुवांशिक भी नहीं होती।
विकलांग व्यक्तियों का कोई यौन जीवन नहीं होता।
हर व्यक्ति अपने अलग ढंग से यौन सम्बन्ध बनाता है। एक विकलांग व्यक्ति का यौन जीवन काफ़ी सक्रीय हो सकता है। संभव है कि एक विकलांग व्यक्ति एल.जी.बी.टी.क्यू समुदाय का हिस्सा हो। यह पूर्णतः व्यक्ति का निजी चुनाव है। विकलांगता व्यक्ति को ‘अलैंगिक’ या ‘अयौनिक’ नहीं बनाती है।
दृष्टिबाधित व्यक्तियों के पास छठी इन्द्री होती है।
हो सकता है कि अपनी आँखों की कमी को पूरा करने के लिए कोई दृष्टिबाधित व्यक्ति दूसरी इन्द्रियों का इस्तेमाल ज्यादा बेहतर तरीके से करने की आदत बना ले लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उनके पास छठी इन्द्री जैसी कोई चमत्कारी चीज़ हो।
श्रवणबाधित लोग होंठो को पढ़ कर आपकी बात समझ लेते हैं।
होंठो को पढ़ना एक कला होती है जिसे कुछ बधिर व्यक्ति प्रयास करके सीख लेते हैं। कुछ इस कला में पारंगत भी हो जाते हैं लेकिन बधिर लोगों को ऐसा कोई ईश्वरीय वरदान नहीं होता कि वे इस कला में निपुण होंगे ही। बहुत सारे ऐसे बधिर लोग हैं जो होंठों को पढ़ कर बात समझने की कला नहीं जानते। सुन सकने में सक्षम लोग भी इस कला को सीख सकते हैं और सीखते भी हैं। होंठों को पढ़ने वाले लोग सामने वाले की बात शत-प्रतिशत समझ लें यह बिलकुल ज़रूरी नहीं है।
सेरिब्रल पाल्सी वाले लोग मानसिक विकलांग भी होते हैं या उनकी बौद्धिक क्षमता आम लोगों से कम होती है।
सेरिब्रल पाल्सी की स्थिति में व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता बाधित नहीं होती है। हो सकता है कि इसके कारण कुछ लोग बोलने में हकलाए या उनकी बात आपको समझ में न आए लेकिन ऐसा उनकी बौद्धिक क्षमता कम होने के कारण नहीं होता।
स्थाई रूप से व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले लोग लम्बे समय से बीमार होते हैं।
कई लोग स्थाई रूप से व्हीलचेयर इसलिये प्रयोग करते हैं क्योंकि उन्हें किसी प्रकार की विकलांगता हेती है। विकलांगता कोई बीमारी नहीं है। संभव है कि व्हीलचेयर पर बैठा व्यक्ति, जो केवल चल नहीं सकता, वह पूर्णतः स्वस्थ और तंदरुस्त हो।
मानसिक रूप से विकलांग लोग हिंसक होते हैं और वे कब क्या कर दें यह किसी को मालूम नहीं होता।
अधिकतर मामलों में मानसिक रोग से प्रभावित व्यक्ति इतना शांत और चुप हो सकता है कि आपको उसके मानसिक बीमार होने का पता ही न चले। सच्चाई तो यह है कि हमारे आस-पास मानसिक-रूप से बीमार लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। इस बारे में जागरूकता की इतनी अधिक कमी है कि हम अपने और अपने आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं देते।
विकलांग लोगों को हमेशा मदद की ज़रूरत होती है और हर ग़ैर-विकलांग व्यक्ति उनकी मदद के लिए बाध्य है।
अधिकतर विकलांग व्यक्ति चाहते हैं कि वे अपने काम स्वयं करें। उनके काम करने का तरीका अलग हो सकता है लेकिन वे अपने रोज़मर्रा के काम स्वयं कर सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की मदद कर सकता है तो यह अच्छी बात है — लेकिन किसी भी विकलांग व्यक्ति की मदद के लिए हमेशा जोश में रहना भी सही नहीं है। हो सकता है बैसाखियों से सीढ़ियाँ चढ़ते समय किसी व्यक्ति की मदद के लिए आप उसे सहारा दें और इस कारण वह संतुलन खो कर गिर ही जाए। इसलिए जब भी आप किसी विकलांग व्यक्ति की मदद करना चाहें तो उनसे पूछें कि क्या उन्हें मदद की आवश्यकता है। यदि जवाब ‘न’ में हो तो यह मान लें कि उस व्यक्ति को वाकई आपकी मदद की आवश्यकता नहीं है।
विकलांग कर्मचारियों के लिए दफ्तर को समायोजित करना काफ़ी महंगा काम है।
दफ़्तर को सुगम्य बनाना महंगा नहीं है और सुगम्यता से अन्य कर्मचारियों के लिए भी सुविधा बढ़ जाती है।
विकलांग व्यक्ति कमज़ोर और बीमार होते हैं। उनको काम पर रखा गया तो वे कार्यस्थल से अनुपस्थित रहेंगे।
विकलांग व्यक्ति की उपस्थिति उनके सहकर्मियों से कम नहीं होती। अधिकतर मामलों में विकलांगता का प्रतिरक्षा प्रणाली या कोई कितनी बार या कितनी जल्दी-जल्दी बीमार पड़ रहा है इससे कोई सम्बंध नहीं होता है।
कुछ नौकरियाँ, जिन्हें विशेष रूप से तैयार किया गया है, विकलांग लोगों के लिए ठीक रहती हैं।
गैर-विकलांग व्यक्तियों की तरह ही विकलांग व्यक्तियों के कौशल अलग-अलग प्रकार और अलग-अलग स्तर के होते हैं। विकलांगता भी अनेक प्रकार की होती है। जो काम एक विकलांग व्यक्ति के लिए सही हो वह किसी दूसरे विकलांग व्यक्ति के लिए असंभव भी हो सकता है। कोई भी ऐसा काम डिज़ाइन नहीं किया जा सकता जो हर विकलांग व्यक्ति के लिए हर तरह से सही हो।
विकलांग व्यक्ति बहुत हिम्मती और प्रेरक होते हैं। वे जो भी करें उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।
विकलांगता के हिसाब से अपने रोज़मर्रा के काम करने के तरीके को ढाल लेना सामान्य जीवन जीने की कला है; यह कोई साहसिक कार्य नहीं है। कोई कुछ बड़ा कार्य करे तो बेशक उसकी तारीफ़ की जानी चाहिए — लेकिन, बस अपनी जीविका कमाना या घर के कुछ काम कर लेने के लिए आप किसी व्यक्ति को प्रेरक और हिम्मती नहीं कह सकते; उन्हें सामान्य व्यक्ति की तरह रहने दें।
विकलांग लोगों की ज़िन्दगी बिलकुल अलग होती है और वे अपने घर के अलावा कहीं और नहीं रह पाते।
विकलांग लोगों का जीवन भी आम लोगों की तरह ही होता है। अपना घर हर व्यक्ति को अधिक आरामदायक लगता है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि विकलांग व्यक्ति कहीं और नहीं रह सकते। बल्कि विकलांगता उन्हें अलग परिस्थितियों में ढलने की कला में ज्यादा पारंगत बना देती है। किसी अन्य जगह रहने के लिये हो सकता है उस जगह में कुछ बदलाव करने पड़ें लेकिन ऐसा नहीं है कि विकलांग व्यक्ति के लिये अपने घर के अलावा कहीं और रहना असंभव है।
जिज्ञासु बच्चों को विकलांग व्यक्तियों से दूर रखना चाहिए। वे अपने सवालों से उन्हें दुखी कर सकते हैं।
हर आम इंसान की तरह ज़्यादातर विकलांग लोगों को बच्चे पसंद होते हैं और वे उनके मासूम सवालों का जवाब देने में दुखी भी नहीं होते। बच्चों को ऐसे मौकों पर विकलांग व्यक्तियों से दूर रखना या उनको सवाल पूछने से रोकना बच्चों के मन में यह बात बिठा सकती है कि विकलांगता एक ऐसी बुरी चीज़ है जिसके बारे में बात भी नहीं होनी चाहिए। यह बात बच्चों को प्रकृति की भिन्नता को समझने से रोकती है।
विकलांग व्यक्तियों की बात केवल उनके घर के सदस्य ही समझते हैं इसलिए विकलांग व्यक्ति से सीधे कुछ पूछने की अपेक्षा उनके साथ वाले व्यक्ति से बात करनी चाहिए।
विकलांग व्यक्ति की जगह उनके बारे में किसी और से बात करने को बुरा ही माना जाएगा। यदि आप किसी विकलांग व्यक्ति से या उनके बारे में बात करना चाहते हैं तो सीधे उनसे ही बात करें। वे अपना निर्णय लेने और अपने विचार व्यक्त करने में सक्षम होते हैं।