विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है और न ही विकलांगता का मतलब यह है कि हमें जीवन भर संकट, दुख और हताशा का ही सामना करना पड़ेगा। यदि कुछ चीजों का ध्यान रखा जाए तो विकलांगता से आने वाली चुनौतियों का सही ढंग से सामना किया जा सकता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण चीज़ है – हमारा भोजन। हर इंसान के लिए भोजन मूलभूत ज़रूरत है, और उसकी सेहत व जीवन की गुणवत्ता भोजन पर ही टिकी होती है। विकलांगता की स्थिति में भोजन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि शरीर का जो भाग काम कर रहा है उसे ठीक रखने, शरीर के ज़रूरी अंगों को यथासंभव सेहतमंद रखने और विकलांगता के कारण आने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियों का उचित प्रकार से सामना करने में भोजन की भूमिका सबसे अधिक होती है।
विकलांगता के दौरान भोजन का निर्धारण करते समय हमको निम्नलिखित बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना होता है:
सही कैलोरी
अधिकांश प्रकार की विकलांगता के कारण व्यक्ति की सक्रियता सीमित रहती है, व्यायाम करना आसान नहीं होता और कैलोरी कम खर्च होती हैं, जिससे विकलांग व्यक्ति का वज़न बहुत आसानी से बढ़ जाता है। वज़न बढ़ना समस्याओं को और बढ़ा देता है, चलना-फिरना या हिलना-डुलना और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। शरीर के भीतरी अंगों पर जोर पड़ने लगता है और डायबिटीज़, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) व अन्य हृदय रोगों, पाचन तंत्र, फेफड़ों, जोड़ों आदि की समस्याओं के होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। इसलिए भोजन इस तरह से संतुलित होना चाहिए कि कैलोरी उतनी ही मिले जितनी आवश्यकता है लेकिन बाकी पोषक तत्वों की किसी भी तरह कमी न हो।
पोषक तत्वों की उचित मात्रा
हमारे शरीर को सही तरह से काम करने के लिए अनेक प्रकार के पोषक तत्वों की जरूरत होती है। जिसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फ़ैट, और पानी जैसे मेक्रो-न्यूट्रीएंट और विटामिन व खनिज जैसे माइक्रो-न्यूट्रीएंट की जरूरत होती है। इनके अलावा फ़ाइबर भी हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। भोजन में इनकी संतुलित मात्रा बनाए रखने के लिए हमारे भोजन में विभिन्नता और सही मेल होना चाहिए। उचित मात्रा में साबुत अनाज व दालें, बीन्स, हेल्दी फ़ैट, फल व सब्ज़ियों का सेवन हमारे भोजन को संतुलित बनाता है।
पैकेटबंद और प्रोसेस किए भोजन से परहेज
पैकेटबंद भोजन में अक्सर पोषण कम मिलता है और हानिकारक केमिकल और कैलोरी ज़्यादा होते हैं। आमतौर पर मिलने वाले बिस्किट, ब्रेड, रस्क, केक, नमकीन, मैगी, डिब्बाबंद जूस और सॉफ़्ट ड्रिंक आदि हमारी सेहत के लिए संकट ही खड़ा करते हैं। ज़्यादातर स्ट्रीट फ़ूड के साथ भी यही समस्या है। इसलिए कभी-कभार स्वाद बदलने या मजबूरी होने पर इनका सेवन किया जा सकता है लेकिन उससे अधिक उनका सेवन करना मुसीबत को दावत देने जैसा है।
सप्लीमेंट
कई बार सही भोजन न मिलने, बीमारी के कारण, विकलांगता के कारण धूप आदि न मिलने से या किसी अन्य कारण से शरीर में कुछ पोषक तत्वों की इतनी कमी हो जाती है कि उसे सिर्फ सही भोजन से ठीक नहीं किया जा सकता और हमें उनको सप्लीमेंट के रूप में लेना जरूरी हो जाता है। हमको कुछ पोषक तत्वों का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उनकी कमी न हो। कुछ तत्व जिनकी सबसे ज्यादा कमी होती है वे इस प्रकार हैं:
विटामिन डी
इस विटामिन की कमी काफ़ी आम है। आज के जीवन में धूप पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती और विकलांगों के लिए तो धूप लेना और भी मुश्किल होता है और हम इस विटामिन की कमी के शिकार हो जाते हैं। इस विटामिन की कमी का पता रक्त की जाँच से लगता है। इसकी कमी से थकावट, इम्यूनिटी में गिरावट, जोड़ो में दर्द, हड्डियों व मांसपेशियों में कमजोरी आदि कई तरह की समस्याएँ हो सकती हैं और शरीर केल्शियम का उपयोग नहीं कर पाता। यदि हम पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं ले पा रहे तो किसी विशेषज्ञ की सलाह से इसके सप्लीमेंट का नियमित सेवन करें।
विटामिन बी12
विटामिन बी12 की पूर्ति भी अक्सर भोजन से नहीं हो पाती और लोगों में इसकी कमी हो जाती है। यह विटामिन स्नायु तंत्र और खून को सही बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है। खून में इसके स्तर की जाँच करना ज़रूरी है और यदि इसकी शरीर में कमी हो तो विशेषज्ञ की सलाह से इसके सप्लीमेंट को भी नियमित रूप से खाना चाहिए।
आयरन
यह भारत में सबसे ज्यादा होने वाली कमी है और महिलाओं में इसकी कमी पुरुषों से भी ज़्यादा होती है। इसकी कमी से पूरे शरीर पर प्रभाव पड़ता है और खून में हीमोग्लोबिन कम हो जाता। कमज़ोरी, घबराहट, चक्कर, साँस फूलना आदि इसकी कमी के प्रमुख लक्षण हैं। इसके लिए भी बाज़ार में काफी प्रभावी सप्लीमेंट उपलब्ध हैं जो किसी विशेषज्ञ की सलाह से लिए जा सकते हैं।
कैल्शियम
यह भी एक ऐसा मिनरल है जिसकी लोगों को अक्सर कमी हो जाती है। कभी इसका कारण भोजन में इसकी कमी होना होता है तो कभी विटामिन डी की कमी के कारण शरीर इसका सही से उपयोग नहीं कर पाता। कई बार उम्र बढ़ने के साथ भी शरीर में इसका अवशोषण कम हो जाता है। इसकी कमी से मांसपेशियों और हड्डियों में कमजोरी आने लगती हैं और पूरी सेहत ही बिगड़ने लगती है। इसके सप्लीमेंट काफी लोकप्रिय हैं और ओवर-द-काउंटर ड्रग के रूप में यह बहुत सारे नामों से मिलते हैं लेकिन इनका सेवन विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए और जितनी मात्रा में बताया जाए उतनी मात्रा में नियमित रूप से लिया जाना चाहिए।
विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप भोजन
कई बार कुछ प्रकार की विकलांगता में हमको विशेष प्रकार के भोजन की ज़रूरत होती है, जैसे:
- कुछ विकलांग जिनके लिये चलना-फिरना बहुत सीमित है, या वे बेड-रिडन हैं,
- किसी कारण से पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर पाता, ठोस भोजन निगलने में कठिनाई है,
- संक्रमण होने की ज़्यादा संभावना है,
- मल त्याग के लिए स्टोमा बैग लगा है या मल-मूत्र पर नियंत्रण न होने के कारण डायपर इस्तेमाल करते हैं या मूत्र के लिए नली लगी है,
- विकलांगता के साथ-साथ कोई अन्य बीमारी भी है जैसे दमा, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दों की बीमारी, लीवर की समस्या आदि।
इस तरह की स्थितियों में हमको सावधानी से भोजन का चुनाव करना चाहिए और जहाँ तक संभव हो किसी डायटीशियन की सलाह लेनी चाहिए। यदि भोजन सही होगा तो समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और जटिलताएँ नहीं बढ़ेंगी।
कुल मिलाकर विकलांगता से आने वाली चुनौतियों का सकारात्मकता से सामना करने के लिए हमारा जागरूक होना बहुत ज़रूरी है और भोजन संबंधी जागरूकता और जानकारी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
मुझे भी ऑस्टोपोरोसिस हो गया था, अभी ठीक है।