युद्ध की आग में विकलांगजन – उपेक्षित और अनदेखी चुनौती
युद्ध का वास्तविक चेहरा केवल सैन्य बलों या युद्ध के मैदान में दिखने वाली विजय में नहीं, बल्कि उन अनदेखी आवाज़ों में छिपा है, जो संघर्ष के बीच अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करती हैं।
युद्ध का वास्तविक चेहरा केवल सैन्य बलों या युद्ध के मैदान में दिखने वाली विजय में नहीं, बल्कि उन अनदेखी आवाज़ों में छिपा है, जो संघर्ष के बीच अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करती हैं।
शायद, एक दिन, मैं इन बीमारियों पर विजय पाकर अपनी ज़िंदगी में कुछ अर्थपूर्ण कर पाऊँ जिससे मैं अपनी और अपने जैसे अन्य लोगों की कुछ मदद कर पाऊं ताकि हम सब मिलकर इस कठिन यात्रा को थोड़ा आसान बना सकें और एक-दूसरे को सहारा दे सकें।
हीन भावना को जन्म न लेने दे। ऐसे दोस्त बनाये जो आपको मानसिक रूप से दृढ़ बनाये, आपका मनोबल बढ़ाएँ और आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
इस समय जो भी दोस्त, रिश्तेदार भावना से मिलने आते थे वे उसके परिवार वालों से यही कहते थे कि लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई है। अब एक पैर न होने की वजह से उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आएगा
डॉक्टर अयान की इतनी सारी खूबियों को ऑटिज्म का नाम देते हैं। पर अयान दुनिया के दिए नामों से अनजान अपनी ही दुनिया में ख़ुश है। और सही मायने में जीवन वही सार्थक है जब व्यक्ति अंदर से ख़ुश हो।
मैं कहीं भी आने-जाने के लिए हमेशा दूसरों पर निर्भर रहती थी। चाहे विद्यार्थी जीवन रहा, कॉलेज के दिन या ट्रेनिंग के दिन, मुझे आने-जाने के लिए हमेशा किसी के साथ की ज़रूरत पडती थी। जहाँ शादी से पहले यह साथ मेरे पापा ने दिया, वहीं शादी के बाद यह ज़िम्मेदारी मेरे पति के कंधों पर आ गयी।
इस यात्रा पर इतने अनजान लोगों के बीच रहते हुए भी मुझे यह अहसास हुआ कि विकलांगता पर थोड़ी-सी ही सही पर मैंने शायद कुछ विजय प्राप्त कर ली है।
आपने कई स्थानों पर देखा होगा कि यदि कोई किसी अनजान व्यक्ति से ग़लती से टकरा जाये तो सामने वाला गाली के रूप में कहता है “अँधा है क्या?” या किसी साधारण से कार्य को करने में ग़लती हो जाये तब सामने वाला गाली के रूप में कहता है “पागल है क्या?”
समाज अपनी सोच में थोड़ा बदलाव करे अपनी व्यवस्थाओं को थोड़ा-सा हमारे हिसाब से भी बदले तो पूरी दुनिया ही बहुत खूबसूरत हो सकती है और विकलांगों के संघर्ष बहुत हद तक कम किए जा सकते हैं।
मैं पिछले 13-14 साल से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का एक पेशेंट हूँ। फ़िलहाल मैं दो वर्ष पहले हुई मेरी स्पाइन सर्जरी के वक़्त दोस्तों द्वारा की गई मदद के बारे मे बताना चाहूँगा।
विवाह के पश्चात जहाँ सबकी परिस्थितियाँ बदल जाती है, वहीं विकलांगजन को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ख़ासकर तब अगर वह एक लड़की है। विवाह के बाद नये घर में जाना, वहाँ सबके साथ तालमेल बिठाना, नए माहौल में सामंजस्य बिठाना उसके लिए किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं होता। जाने अनजाने में किये गए कटाक्ष उसके हृदय को चीर देते हैं।
लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। ग्राम विकास अधिकारी के पद पर रहते हुए 8 माह के कार्यकाल के बाद विभाग द्वारा पुनः जाँच हुई जिसमें एक आँख को 6/24 और दूसरी को 6/18 बता कर मेरी विकलांगता 40% से घटाकर 10% कर दी गई और मुझे अपात्र घोषित करते हुए नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।
उस वक़्त स्कूटी लाने के विचार से लेकर स्कूटी से अकेले बाहर जाने तक मैंने जिन-जिन समस्याओं का सामना किया उन समस्याओं के कुछ समाधान मेरे मन में बनते और बिगड़ते रहते थे। उन्हीं समाधानो में से एक समाधान के विचार को यहाँ साझा कर रही हूँ।
सुमित्रा महरोल द्वारा लिखित “टूटे पंखों से परवाज तक” नामक पुस्तक भारतीय समाज में दलित समुदाय से आने वाली एक विकलांग स्त्री की आत्मकथा है।
ऑस्टोजेनेसिस इम्परफ़ेक्टा से प्रभावित बरेली की राशि सक्सेना दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुए अपने एक अनुभव के बारे में बता रही हैं।