हम विकलांग व्यक्तियों का जीवन चुनौतियों से भरा पड़ा है। इस बात से तो आप सभी अवगत ज़रूर होंगे। सामान्य व्यक्ति हमारे प्रति क्या सोच रखते हैं या समझ रखते हैं इसका पता कर पाना तो बेहद मुश्किल है; लेकिन हाल ही में मैंने एक ऐसी घटना का अनुभव किया जिसने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि सामान्य लोगों को तो छोड़ो, क्या एक विकलांग व्यक्ति भी दूसरे विकलांग व्यक्ति की मजबूरियों और चुनौतियों को समझता है?
लगभग 1.5 साल की मेहनत के बाद और परीक्षा के तीन चरणों को पास करने के बाद भी उत्तर प्रदेश लेखपाल परीक्षा में मुझे और अन्य सभी OH वर्ग वाले अभ्यर्थियों को मुख्य रिजल्ट से निकाल दिया गया। जिसके जवाब में एक यूट्यूबर महोदय ने कुछ विकलांग भाईयों को इकट्ठा किया और लखनऊ में धरना प्रदर्शन किया। किन्तु समस्या यह थी कि हम में से बहुत अभ्यर्थी जो लखनऊ जाने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति पर आश्रित थे वे उस धरने में उपस्थित न हो सके। अधिकांश वही व्यक्ति धरने पर उपस्थित थे जिनको चलन-सम्बंधी विकलांगता नहीं थी।
जाहिर-सी बात है कि किसी भी धरने में संख्या बल का महत्त्व होता है। कम लोगों के पहुँच पाने के कारण धरना कमजोर पड़ रहा था। इन यूट्यूबर महोदय ने खुन्नस में हम जैसे विकलांग जो व्हीलचेयर प्रयोग करते है या जो कहीं आने-जाने के लिए दूसरे पर आश्रित होते है, को गाली देना शुरू कर दिया और ग्रुप से निकाल दिया। मैं अचंभित था कि एक विकलांग व्यक्ति दूसरे विकलांग व्यक्ति के प्रति इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?
धरने का नेतृत्व करने वाले लोगों के इस व्यहवार ने मेरे मन में ये प्रश्न को पैदा किया कि क्या चलन सम्बंधी विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति एक दृष्टिबाधित विकलांग व्यक्ति के संघर्षों की और उसकी मजबूरियों की कल्पना कर सकता है?
अक्सर हम विकलांग व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक, और शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, हम अपनी मजबूरीयों का सामना करते हुए भी जीवन का अच्छी तरह से निर्वाह करते हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित रहते हैं। सामान्य लोगों द्वारा ऐसा व्यवहार तो आम बात है परंतु विकलांग व्यक्तियों द्वारा इस तरह का व्यावहार क्या उचित है?
विकलांग व्यक्ति अक्सर सामाजिक दृष्टिकोण से अलग होते हैं, जिनके कारण उन्हें सामाजिक अलगाव महसूस होता है इसलिए एक विकलांग व्यक्ति को दूसरे विकलांग व्यक्ति की समस्याओं को समझने में अधिक संवेदनशीलता और धैर्य का प्रयोग करना चाहिये। विकलांगता के सामाजिक और मानसिक पहलुओं को समझते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि एक विकलांग व्यक्ति का जीवन कितना मुश्किल हो सकता है। इसलिए, हमें सदैव एक दूसरे को समर्थन और सहयोग प्रदान करना चाहिए ताकि विकलांगजन समाज में समानता और सामाजिक समावेश का अधिकार प्राप्त कर सकें।
जी आपने सही कहा जब विकलांगजन ही दूसरे विकलांगजन की समस्याओं को नहीं समझेंगे, एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे तब तक हम सामान्यजन से क्या ही अपेक्षा करें! लेकिन मुझे लगता है कि संवेदनशीलता का विकलांगता/गैर विकलांगता से कोई लेना-देना है ही नहीं। संवेदनशील होने के लिए हमें एक अच्छा इंसान होना ज़्यादा ज़रूरी है। फिर चाहे कोई विकलांग हो या फिर गैर विकलांग। यह बात भी अपनी जगह बिल्कुल सही है कि जो व्यक्ति जिस तकलीफ़से गुज़रता है वह दूसरे की तकलीफ़ को बेहतर तरीके से समझ सकता है;लेकिन कुछ लोगों को अपने अलावा कोई और दिखाई ही नहीं देता।