पोस्ट पोलियो सिंड्रोम: कारण, इलाज और प्रबंधन

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एक समाज के रूप में यह हमारी उपलब्धि है कि हमने पोलियो टीकाकरण जैसे एक बड़े अभियान को सफल बनाया। इसी का नतीजा है कि आज हमें छोटे-छोटे बच्चों को पोलियो जैसी गंभीर बीमारी के कारण लकवाग्रस्त होते नहीं देखना पड़ता; लेकिन, उन लोगों का क्या जो इस अभियान की पूर्ण सफलता के पूर्व ही पोलियो वायरस की चपेट में आ चुके थे? इनमें से लाखों लोग अब पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम की समस्या से जूझ रहे हैं।

आँकड़ों के अनुसार पोलियो से प्रभावित क़रीब 50% से 70% व्यक्ति पोस्ट पोलियो सिंड्रोम से भी प्रभावित होते हैं।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम (पी.पी.एस.) क्या है?

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम (पी.पी.एस.) पोलियो के प्रारंभिक आक्रमण के लगभग 15-30 वर्ष बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर की माँसपेशियाँ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती जाती हैं। यह सिंड्रोम उन माँसपेशियों को तो कमज़ोर करता ही है जो पोलियो के आक्रमण में प्रभावित हुई थीं — साथ ही उन माँसपेशियों को भी प्रभावित करने लगता है जो पहले पोलियो के प्रभाव से बच गयी थीं।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम छुप कर हमला करने वाले किसी दुश्मन की तरह होता है जिसे तुरंत पहचान पाना मुश्किल होता है। यह व्यक्ति की शारीरिक क्षमता को धीरे-धीरे घटाता जाता है और कई बार यह प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि व्यक्ति तुरंत अपनी घटती क्षमता को भाँप भी नहीं पाता। पी.पी.एस. का प्रभाव व्यक्ति के रोज़मर्रा के कार्यों में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है। अपने सबसे विकट रूप में यह व्यक्ति के निगलने और साँस लेने की क्षमता तक को प्रभावित कर सकता है। यह व्यक्ति की ज़िन्दगी को अति-कठिन बना सकता है किन्तु पी.पी.एस. के कारण मृत्यु बहुत ही कम होती है।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का कारण

वास्तव में चिकित्सा और विज्ञान जगत पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के सटीक कारण को खोज पाने में अभी तक असफल रहा है। कुछ वैज्ञानिकों ने इसके विषय में अपना सिद्धांत गढ़ने की कोशिश तो की है किन्तु वे प्रामाणिक तौर पर अपने सिद्धांतों को सिद्ध करने में असफल रहे हैं। यही कारण है कि पी.पी.एस. का वास्तविक कारण अब तक अज्ञात ही है।

वैज्ञानिकों द्वारा दिए गए विभिन्न सिद्धांतों में से एक प्रचलित सिद्धांत के अनुसार पोस्ट पोलियो सिंड्रोम में माँसपेशियों की घटती ताकत के पीछे का कारण पोलियो के प्रभाव से बची रह गयी तंत्रिकाओं का अपघटन हो सकता है। साथ ही पोलियो के कारण बेकार हो गयी तंत्रिकाओं का भार आस-पास की तंत्रिकाएँ ले लेती हैं जो कि बाद में अति-प्रयोग के कारण अपघटित होने लगती हैं।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का पता कैसे चलता है?

आपको शायद अब तक यह अनुमान लग गया होगा कि चिकित्सा विज्ञान के पास पी.पी.एस. से जुड़ी बहुत कम सवालों का जवाब मौजूद है। उन्हें न तो इसके कारणों का पता है ना ही ऐसी कोई जाँच उपलब्ध है जो पी.पी.एस. का सटीक पता लगा सके।

ऐसे में कोई व्यक्ति यह कैसे पता कर सकता है कि वह पोस्ट पोलियो सिंड्रोम से प्रभावित है या नहीं? दुर्भाग्यवश ज्यादातर चिकित्सक इस बात का पता लगाने में असमर्थ हैं और जो पता करते भी हैं वे भी हिट एंड ट्रायल तरीके का ही प्रयोग करते हैं।

इस तरीके में चिकित्सक सबसे पहले विस्तार में सवाल-जवाब के ज़रिये इस बात की पुष्टि करते हैं कि व्यक्ति पहले से पोलियो प्रभावित था। इसके बाद प्रभावित व्यक्ति को नसों और माँसपेशियों से जुड़ी कई जाँच प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यक्ति को हो रही परेशानियों के लक्षण किसी और बीमारी या विकार के कारण तो नहीं हो रही। उदाहरण के तौर पर चिकित्सक यह जाँच करेंगे कि व्यक्ति अवसाद का शिकार है या नहीं क्योंकि अवसाद में भी थकान के वैसे ही लक्षण उभर  सकते हैं जो पोस्ट पोलियो सिंड्रोम में होते हैं। इसी तरह एक-एक कर विभिन्न बीमारियों की संभावना को निष्कासित करते हुए चिकित्सक इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि व्यक्ति की परेशानियाँ पोस्ट पोलियो सिंड्रोम की वजह से हैं या नहीं।

इस बिंदु पर आकर आप को यह संशय हो सकता है कि यदि पी.पी.एस. का कोई निदान है ही नहीं तो इसके लक्षणों के लिए हम किसी चिकित्सक के पास जाएँ ही क्यों? इसका जवाब काफ़ी सरल है।

पी.पी.एस. से मिलते-जुलते लक्षणों वाली बीमारियों का उमूमन इलाज संभव है तो यदि आपके लक्षण पी.पी.एस. की बजाए किन्हीं और कारण से हुए तो संभव है कि आपका इलाज हो जाए।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के लक्षण

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का सबसे प्रमुख लक्षण है – थकान। प्रभावित व्यक्ति बिना कोई मेहनत का काम किये भी थकान महसूस करने लगता है। इसके अलावा निम्नलिखित लक्षण भी पोस्ट पोलियो सिंड्रोम की तरफ इशारा करते हैं:

  • माँसपेशियों और जोड़ों में बढ़ती हुई कमज़ोरी
  • शरीर और जोड़ों में दर्द
  • स्कोलियोसिस जैसे अस्थि ढाँचे के विकार
  • साँस लेने और निगलने में बढ़ती हुई परेशानी
  • माँसपेशियों का क्षय
  • नींद की तकलीफ़ और सोने के दौरान साँस लेने में परेशानी
  • ठंडे तापमान को सहन करने की शक्ति कम होना

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का ख़तरा किसे सबसे अधिक होता है?

तकनीकी रूप से कहें तो पोलियो से प्रभावित हर व्यक्ति को पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का ख़तरा होता है। लेकिन, निःसंदेह कुछ लोगों के लिए यह ख़तरा औरों की अपेक्षा ज्यादा होता है।

पहली चीज़ जो पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के ख़तरे को निर्धारित करती है वह है शुरूआती पोलियो की तीव्रता। शुरुआती पोलियो का प्रभाव जितना अधिक तीव्र होता है – पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का ख़तरा भी उतना ही अधिक होता है। शुरुआती पोलियो के बाद हुआ अत्यधिक स्वास्थ लाभ भी पी.पी.एस. के ख़तरे को बढ़ाता है।

कुछ आँकड़े यह भी दिखाते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ पोस्ट पोलियो सिंड्रोम से अधिक प्रभावित होती हैं।

ऊपर दिए गए सभी कारण व्यक्ति के नियंत्रण से बाहर की बातें हैं किन्तु व्यक्ति के रहन-सहन का असर भी पी.पी.एस. के ख़तरे या तीव्रता पर असर डालता है। पोलियो प्रभावित व्यक्ति द्वारा अत्यधिक शारीरिक श्रम पी.पी.एस. के ख़तरे को बढ़ाता है। लेकिन इसका यह आशय नहीं कि शारीरिक श्रम को बिलकुल रोक दिया जाए। पोलियो से प्रभावित व्यक्ति द्वारा शरीर का कम प्रयोग उतना ही ख़तरनाक है जितना उसका अत्यधिक इस्तेमाल।

पी.पी.एस. के ख़तरे को कम करने के लिए शारीरिक श्रम और आराम दोनों में एक संतुलन बनाए रखना ज़रूरी है।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम का इलाज

आपने एक कहावत सुनी होगी – “इलाज से बेहतर है रोकथाम”। यह कहावत पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के मामले में बिलकुल सही बैठती है क्योंकि इसका कोई इलाज है ही नहीं। वैज्ञानिक काफ़ी कोशिशों के बाद भी इसके लिए कोई दवा खोज पाने में असफल रहे हैं। वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का मानना है कि पी.पी.एस. के लिए सबसे बेहतर विकल्प है जीवनशैली का प्रबंधन।

किसी भी शारीरिक बीमारी की तरह पोस्ट पोलियो सिंड्रोम में भी कसरत से लाभ होता है लेकिन इसमें कसरत का चुनाव बहुत ध्यान से किया जाना चाहिए। शरीर पर अत्यधिक बल पड़ने से अनेक व्यायाम पी.पी.एस. के लक्षणों से बचाव की जगह उसे बढ़ा भी सकते हैं। ऐसे में माँसपेशीयाँ मज़बूत होने के बजाए जल्दी कमज़ोर भी हो सकती हैं।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम में जीवनशैली के प्रबंधन का क्या अर्थ है?

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम से बचने या जूझने के लिए जीवन-प्रबंधन को समझने का सिर्फ़ एक ही मंत्र है – ‘संतुलन’। आप अपने शरीर और माँसपेशियों को आराम करने के लिए नहीं छोड़ सकते और ना ही आप उनका अत्यधिक प्रयोग कर सकते हैं। आप बहुत अधिक नहीं खा सकते क्योंकि आपको आपके वज़न का ध्यान रखना होगा (आप भारी कसरत भी नहीं कर सकते) और आप बहुत कम भी नहीं खा सकते क्योंकि आपको शरीर के लिए पर्याप्त पोषण (विशेषकर प्रोटीन) की आवश्यकता है। आपको हर चीज़ में संतुलन रखने की पड़ेगी।

पोस्ट पोलियो सिंड्रोम में जीवन शैली

  • व्यायाम को नियमित रूप से अपनी दिनचर्या में शामिल करें लेकिन उन्हें कम तीव्रता पर रखें तथा साथ ही बीच-बीच में रुक कर शरीर को आराम भी दें। नियमित रूप का अर्थ हर रोज़ ज़रूरी नहीं है; आप बीच में एक दिन छोड़ कर भी व्यायाम कर सकते हैं।
  • कसरत करते वक़्त ऐसी माँसपेशियों पर ध्यान केन्द्रित करें जो पोलियो से प्रभावित न हों। पोलियो से प्रभावित माँसपेशियों में ताकत वापस नहीं आती बल्कि ज्यादा बल देने पर आस-पास की सहयोगी माँसपेशियाँ अधिक कमज़ोर हो सकती हैं।
  • ऐसा कोई भी कार्य करने से बचें जिसे करने में शरीर में दर्द हो या दस मिनट से अधिक देर तक थकान महसूस होती रहे।
  • किसी भी शारीरिक कार्य को करते वक़्त बीच में आराम के लिए रुक कर उर्जा बचाएँ।
  • अपनी माँसपेशियों को सहारा देने और उर्जा बचाने के लिए व्हीलचेयर, बैसाखी, कैलिपर, वॉकर आदि का इस्तेमाल करें। कई लोग इन चीजों के इस्तेमाल में हिचकिचाते हैं लेकिन आपको समझना चाहिए कि ये चीजें आपकी सहायता के लिए हैं; इनका इस्तेमाल करके आप अपनी विकलांगता के आगे घुटने नहीं टेक रहे बल्कि समझदारी से अपने जीवन का प्रबंधन कर रहे हैं।
  • ऐसी जीवनशैली का चुनाव करें जिसमें आप शारीरिक श्रम कम करें। उदाहरण के तौर पर हर रोज़ भारतीय तरीके के टॉयलेट में उठने-बैठने में मेहनत करने करने की अपेक्षा वाशरूम में कमोड लगवा लेना बेहतर उपाय है।
  • पीठ के बल सोने से परहेज करें। करवट होकर सोने से आप कम उर्जा का इस्तेमाल करते हुए अपने शरीर को अतिरिक्त तनाव से बचा सकते हैं। यदि आपके कमर या पीठ के निचले हिस्से में दर्द रहता है तो आपको थोड़ी देर पेट के बल सोने का प्रयत्न करना चाहिए। लेकिन कभी भी पीठ या पेट के बल देर तक नहीं सोना चाहिए; दोनों ही शरीर पर अतिरिक्त तनाव डालते हैं।
  • यदि पोस्ट पोलियो सिंड्रोम आपके साँस पर असर डाल रहा हो तो आपको जितनी ज़रूरत हो बस उतनी ही बातें कर के उर्जा बचाने का प्रयास करना चाहिए। और हाँ साँसो के व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करना न भूलें।
  • ठंडे मौसम में ख़ुद को गर्म रखने के लिए लेयर्स में कपड़े पहने। चूँकि ठंड से माँसपेशियों में थकान बढ़ती है इसलिये आपको ठंड से बचना चाहिए। थकान के लिए दवाई लेने का कोई फायदा नहीं है।
  • दिन में थोड़ी देर के लिए सो जाना आपकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए।
  • एक स्वस्थ दिनचर्या के लिए पौष्टिक खाना खाएँ और निकोटिन, कैफ़ीन और शराब जैसी हानिकारक चीजों के सेवन से बचें। आप इस तरह की अस्वस्थ करने वाली दिनचर्या का जोख़िम नहीं उठा सकते।

अपनी शारीरिक अवस्था और उस पर आपकी दिनचर्या के पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सजग रहें। अपनी दिनचर्या का प्रबंधन सचेत होकर करें।

साथ ही यह ज़रूरी है कि आप ख़ुश रहें। तनाव में रहना आपकी स्थिति को और ख़राब कर सकता है।

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Bharti
Bharti
1 year ago

बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी… P. P. S. के बारे में बहुत कम ही लोगों को पता होता है जो पोलियो प्रभावित है… अगर इसके बारे में पहले से ही जानकारी हो तो लक्षण को पहचान कर जीवन शैली में बदलाव लाया जा सकता है।

कलाराम राजपुरोहित
कलाराम राजपुरोहित
1 year ago

मैं पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के बारे में ज्यादा नहीं जानता लेकिन मेरे पास पहले से ही कुछ जानकारी है। मैं यह भी जानता हूं कि मेरे शरीर में विकार के कारण मुझे भविष्य में कुछ अजीब समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जिसके लिए मैं शायद तैयार नहीं हूं। हाँ, जैसा कि आपने कहा, मुझे भी दूसरों की तुलना में अधिक ठंड लगती है। मुझे ऐसे माहौल में ठंड लगती है जहां लोग सहज महसूस करते हैं। पहले मुझे लगा कि यह सामान्य है लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि यह मेरे पोस्ट पोलियो सिंड्रोम के कारण है।

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