दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में सूचीबद्ध 21 प्रकार की विकलांगताओं में सबसे अधिक भ्रमित करने वाली श्रेणियों में से एक है – क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स अर्थात पुराने तंत्रिका सम्बंधी विकार।
आख़िर यह पुराने तंत्रिका सम्बंधी विकार (क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स) क्या है; और इसे विकलांगता की सूची में क्यों रखा गया है? आइये इसे समझने की कोशिश करते हैं।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत पुराने तंत्रिका सम्बंधी विकार
पुराने तंत्रिका सम्बंधी विकार या क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशंस को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है – “ऐसी स्थिति/विकार जिसकी उत्पत्ति व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र के किसी हिस्से में हुई हो और यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रहे या उसकी पुनरावृत्ति होती रहे।”
अधिनियम में तंत्रिका सम्बंधी विकारों के कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- मिर्गी
- अल्जाइमर रोग जैसे मतिभ्रंश (डिमेंशिया)
- स्ट्रोक
- माइग्रेन तथा अन्य सर दर्द से जुड़े विकार
- मल्टीप्ल स्क्लेरोसिस
- पार्किन्संस रोग
- ब्रेन ट्यूमर
जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकार: परिभाषा
जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकार ऐसी विकारों का एक समूह है जिनका सम्बंध केन्द्रीय या परिधीय तंत्रिका तंत्र से है। आपको मालूम होगा कि तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क, रीढ़, तंत्रिकाएँ और उनसे जुड़ी मांसपेशियाँ भी शामिल हैं। तंत्रिका तंत्र सम्बंधी विकार की उत्पत्ति इनमें से कहीं भी हो सकती है।
अब तक के अनुसंधान के मुताबिक़ 600 से अधिक प्रकार के तंत्रिका-सम्बंधी विकारों को मान्यता प्राप्त है जिनकी गंभीरता और लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। इनकी शुरुआत कभी भी हो सकती है और ये किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें से कुछ किसी पोषण की कमी या तंत्रिकाओं को नुक्सान पहुँचाने वाले किसी पदार्थ के संपर्क में आने से होते हैं। वहीं कुछ विकार तपेदिक, मलेरिया, जापानी इन्सेफ़लाइटिस या एच.आई.वी. जैसे रोगों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।
कई तंत्रिका सम्बंधी विकार ऐसे हैं जिनका कोई इलाज नहीं है और ये व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को इस प्रकार प्रभावित करते हैं कि व्यक्ति रोज़मर्रा के अपने कार्य करने में भी असमर्थ हो जाता है। ऐसे मामलों में ये विकार विकलांगता का रूप ले लेते हैं।
तंत्रिका सम्बंधी विकार निम्नलिखित प्रकार की विकलांगताओं का कारण बन सकते हैं –
- चलन सम्बंधी विकलांगता
- अनुभूति और व्यवहार सम्बंधी विकलांगता
- बहु-विकलांगता
जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकार के लिए विकलांगता प्रमाण पत्र
चूँकि जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकार को 21 विकलांगताओं में शामिल किया गया है तो ज़ाहिर है इनसे प्रभावित व्यक्तियों को भी अन्य विकलांगताओं की तरह प्रमाणित किया जाता है। लेकिन, इस मामले में कई भ्रांतियाँ हमें परेशान कर देती हैं।
विकलांगता प्रमाण पत्र लेने के लिए यह ज़रूरी है कि उक्त विकार ठीक होने वाला न हो और वक़्त के साथ उसकी तीव्रता या लक्षण बढ़ते हों। केवल स्थाई विकारों के मामले में ही इस प्रकार का विकलांगता प्रमाण पत्र दिया जा सकता है। किसी ख़ास स्थिति में, ज़रूरत के अनुसार, एक साल के अंतराल पर विकलांगता का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है।
प्रमाण पत्र जारी करने वाले प्राधिकारी
तंत्रिका सम्बंधी विकार से उत्पन्न विकलांगता को प्रमाणित करने के लिए अधिकारियों का एक बोर्ड होता है जिनमें निम्नलिखित अधिकारी होते हैं:
- चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी या सिविल सर्जन या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य समकक्ष प्राधिकारी (ये बोर्ड के प्रमुख होते हैं)। इनके अलावा निम्नलिखित में से किन्हीं दो सदस्यों का होना भी ज़रूरी है –
- बच्चों के जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकारों के लिए बाल रोग विशेषज्ञ / पुरानी मानसिक बीमारियों के लिए मनोचिकित्सक / मानसिक विकार रहित तंत्रिका विकलांगता के लिए न्यूरोलॉजिस्ट
- चलन-सम्बंधी विकलांगता को प्रमाणित करने के लिए विशेषज्ञ
- आई. क्यू. परिक्षण के लिए प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक
अंत में…
जीर्ण तंत्रिका सम्बंधी विकार एक ऐसा विषय है जिसमें कुछ लक्षणों की बात करके सभी विकारों के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। इस वक़्त हम बस इतना कहना चाहेंगे कि किसी भी प्रकार के लक्षण जो आपको सामान्य से अलग बनाते हैं उनके बारे में लापरवाह न रहें। वक़्त पर चिकित्सीय सहायता बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है। जागरूक रहिए और अपने आस-पास भी जागरूकता फैलाइए।