कुछ लोग चंद्रमा से होते हैं जो रोशनी को परिवर्तित कर चमकते हैं। झूठी चमक और रोशनी से वे खुद को और समाज को धोखा देते रहते हैं। वहीं कुछ लोग स्वयं प्रकाश पुंज होते हैं जिनकी रोशनी से न जाने कितने जीवन रोशन हुआ करते हैं। ऐसे ही एक प्रकाश पुंज हैं विकलांगता.कॉम के सयोंजक, मालिक, या वेबडिजाइनर जो चाहे कह सकते हैं ‘ललित कुमार’ जी।
अब तक जितने भी लोगों के बारे लिखा वो या तो सुना-सुनाया था या फिर कहीं पढ़ा था। इस बार ललित कुमार जी का एक संक्षिप्त सा व्हाट्सएप साक्षात्कार लिया। यह एक प्रयोग है जिसे करते हुए हमेशा यही महसूस हुआ कि किसी सशक्त व्यक्तित्व से बातचीत हो रही है। विकलांगता पर भी वे इस सहजता से बात कर जाते हैं कि लगता ही नहीं कि विकलांगता कोई समस्या है। उनकी उस ऊर्जा और सकारात्मकता को आप सब भी महसूस कीजिए। तो चलते हैं ललित कुमार जी के व्हाट्सएप इंटरव्यू पर:
नमस्कार ललित जी तो सबसे पहले अपने जन्म, परिवार और विकलांगता के बारे में बताएं?
ललित – नमस्कार, मेरा जन्म दिल्ली के एक ग्रामीण क्षेत्र महरौली में रहने वाले एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। चार वर्ष की आयु में मुझे पोलियो हो गया और इस कारण मेरे दोनों पैरों की माँसपेशियाँ निष्क्रिय हो गयीं।
आपकी विकलांगता को विस्तार से बताएं, जैसे इसमें क्या होता है? इसका कोई इलाज संभव है?
ललित – पोलियो वायरस से होने वाली एक बीमारी है। ज़्यादातर मामलों में यह बीमारी बच्चों को ही होती है। पोलियोवायरस प्रभावित व्यक्ति के शरीर में केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र हमला करता है। अधिकतर मामलों में प्रभावित व्यक्ति के हाथ-पैरों की माँसपेशियाँ कमज़ोर या निष्क्रिय हो जाती हैं। कुछ मामलों में व्यक्ति के फेफड़ों पर भी असर होता है और इस कारण साँस लेने में कठिनाई होती है। पोलियो का पूरे विश्व में कोई इलाज नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इस बीमारी को ठीक नहीं किया जा सकता। इसलिये बीमारी के प्रभावों को कम-से-कम करने पर ही ज़ोर दिया है।
आपकी शिक्षा कैसे हुई? जिस समय विकलांग विद्यार्थियों के लिए बहुत कम सुविधाएं हुआ करती थीं?
ललित – मेरी स्कूली शिक्षा स्थानीय नगर निगम के स्कूलों में हुई। हमारे परिवार में पढ़ाई-लिखाई को कम महत्त्व दिया जाता था लेकिन मेरे माता-पिता व दादा-दादी ने इस बात को सुनिश्चित किया कि मेरी पढ़ाई नहीं रुके। पोलियो के बाद मैंने कई वर्ष मेहनत करके बैसाखियों पर चलना सीखा और इन्हीं नन्हीं बैसाखियों ने मुझे स्कूल तक पहुँचाया। इस बीमारी के कारण मेरी पढ़ाई के रास्ते में नित नयी बाधाएँ आती थीं लेकिन अपने परिवार की सहायता से मैंने इन सभी समस्याओं को पार करते हुए अपनी शिक्षा को जारी रखा। जिन स्कूलों में मेरी पढ़ाई हुई वहाँ विकलांग विद्यार्थियों के लिये अलग से कोई सुविधा मौजूद नहीं थी। सहपाठियों और शिक्षकों का विकलांग विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार भी संवेदनशील नहीं था।
आपके जीवन के बारे में बताएं जैसे कैसी चल रही है जिंदगी, क्या कर रहे हैं आजकल, क्या-क्या हासिल किया क्या-क्या करना बाकी रहा?
ललित – जीवन अच्छा चल है, मैं संतुष्ट हूँ। आजकल कई नए आइडियाज़ पर काम जारी है और कोशिश है कि 2025 में इन्हें साकार किया जा सके। अन्य कार्यों के अलावा इनमें लेखन भी है और विकलांगजन के हितार्थ परियोजनाओं का कार्यान्वयन भी शामिल है। कोशिश है कि इस वर्ष कुछ शुरु की जा चुकी पुस्तकों को पूरा कर प्रकाशित कर पाऊँ। मैं इस बारे में अधिक नहीं सोचता कि आज तक क्या हासिल किया। आगे क्या करना है इस पर मेरा अधिक फ़ोकस रहता है।
निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों में अक्सर विकलांगता को आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता भिन्न-भिन्न प्रकार के इलाज, झाड़फूंक, टोन-टोटके, तंत्र-मंत्र तक का सहारा लिया जाता है कि कहीं से या कैसे भी बच्चा ठीक हो जाए, आप के परिवार में ऐसा कुछ था या महानगर होने का कुछ फर्क था?
ललित – गाँव-देहात हो या महानगर, हर जगह माता-पिता एक-से ही होते हैं। वे सभी इस बात का पूरा प्रयास करते हैं कि उनका बीमार बच्चा किसी भी तरह से ठीक हो जाये। इस मिशन की शुरुआत वे उन तरीकों से करते हैं जिनमें उनका विश्वास है। यदि ये तरीके कारगर सिद्ध नहीं होते तो वे उन तमाम उपायों को भी अपनाते हैं जिनमें उनका ख़ुद का विश्वास नहीं है। जब डॉक्टरों ने बता दिया कि मुझे पोलियो हुआ है और इसका कोई इलाज नहीं — तो मेरे माता-पिता भी मुझे विभिन्न वैद्यों, गुरुओं इत्यादि के पास ले गये थे।
अपने प्रोफेशन के बारे बताएं? यहाँ तक का सफर कैसा रहा? क्या मुश्किलें आई? क्या आसान रहा?
ललित – मेरा कोई एक प्रोफ़ेशन नहीं है। मैं नई-नई चीज़ें सीखता रहता हूँ और सीखी गई चीज़ों को किसी-न-किसी रूप में अपने जीवन से जोड़ता जाता हूँ। ये नई सीखी गई चीज़ें कभी मेरा प्रोफ़ेशन बन जाती हैं और कभी हॉबीज़ की सूची में जुड़ जाती हैं। मैं सॉफ़्टवेयर डेवलपमेंट, वेब डेवलपमेंट, कंटेंट राइटिंग, वीडियो निर्माण, लेखन, प्रकाशन, बिज़नेस, शेयर मार्केट में ट्रेडिंग इत्यादि के अलावा दो एन.जी.ओ. चलाता हूँ और विकलांगजन के हितार्थ कार्य करने की कोशिश करता हूँ।
आपके लेखों और फोटोज़ से पता चलता है कि आप कई जगहों की यात्रा करते रहते हैं। तो सबसे सरल और डिसएबल फ्रेंडली यात्रा कौन-सी रही और क्यों?
ललित – अभी तक ब्रिटेन और कैनेडा मुझे सबसे अधिक डिसएबल्ड-फ़्रेंडली लगे। इन जगहों पर विकलांगजन की आवश्यकताओं का पूरा ख़्याल रखा जाता है और विकलांगजन को घर से बाहर निकलते वक़्त सुगम्यता की कोई चिंता नहीं होती। सभी सार्वजनिक स्थान और पब्लिक ट्रांस्पोर्ट ऐसे बनाये जाते हैं कि विकलांगजन भी उनका आसानी से प्रयोग कर सकें।
भारत में अधिकतर जगहें विकलांगजन के लिये सुगम्य नहीं होतीं। हाँ, यह ज़रूर है कि हाल के वर्षों में अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों को व्हीलचेयर प्रयोग करने वाले लोगों के लिये आंशिक-रूप से सुगम्य बना दिया गया है। जैसे कि ताजमहल, खजुराहो, कुतुब मीनार जैसी जगहें अब काफ़ी हद तक व्हीलचेयर-फ़्रेंडली हैं।
साहित्य में रुचि कैसे जगी?
ललित – बचपन से ही मुझे पुस्तकें पढ़ने की आदत रही है। मैं हर विषय पर पुस्तकें पढ़ता हूँ — बस इसी सिलसिले में हिन्दी साहित्य भी काफ़ी पढ़ा। मुझे लगता है कि पुस्तकें पढ़ना किसी भी व्यक्ति के विकास के लिये एक अत्यंत ज़रूरी आदत है। हर व्यक्ति को इसे अपनाना चाहिये।
कोई किताब भी आई?
ललित – पोलियो के साथ अपने संघर्ष को केन्द्र में रखते हुए मैंने एक संस्मरणात्मक पुस्तक “विटामिन ज़िन्दगी” लिखी है। यह पुस्तक कई भाषाओ में अनूदित भी हो चुकी है। इसके अलावा मैंने कुछ पुस्तकों का सम्पादन भी किया है।
विकलांगता संबधित साइट्स बनाने का कैसे सूझा?
ललित – सूचना प्रौद्योगिकी और वेब डेवलपमेंट मेरी ट्रेनिंग का हिस्सा रहे हैं। इसलिये वेबसाइट्स का निर्माण करना मेरे लिये स्वाभाविक ही है। मैंने देखा कि भारत में विकलांगता विषय पर अच्छी वेबसाइट्स उपलब्ध नहीं हैं। इसी कमी को पूरा करने के लिये मैं सबसे पहले WeCapable.com, फिर दशमलव यूट्यूब चैनल और इसके बाद viklangta.com की शुरुआत की। इन सभी प्रयासों को भरपूर समर्थन मिला है। ये माध्यम आवश्यक जानकारी लाखों लोगों तक पहुँचाने में सफल रहे हैं।
हाल-फिलहाल में आपकी शादी हुई बहुत-बहुत मुबारक आप दोनों को, यह सब कैसे संभव हुआ? अगर साझा करना चाहें तो…
ललित – बहुत धन्यवाद! हाँ, मैंने हाल ही में मधुरम् अपराजिता को अपनी जीवनसंगिनी बनाया है। मधुरम् को कोई विकलांगता नहीं है। वे एक कॉरपोरेट लॉयर हैं और आजकल ओड़ीशा स्थित वेदांता लिमिटेड में कार्य कर रही हैं। मैं और मधुरम् पिछले दस वर्ष से मित्र रहे हैं। पिछले कई वर्ष से हम विवाह की योजना बना रहे थे। नवम्बर 2024 में हमने आख़िरकार विवाह कर लिया।
विकलांग और नॉर्मल लोगों को कुछ कहना चाहेंगे?
ललित – मैं यही कहना चाहूँगा कि विकलांगता हर जीव के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। कोई भी जीव परफ़ेक्ट नहीं होता – कहीं कुछ तो कहीं और कुछ कमी रह ही जाती है। इसलिये विकलांगता को सहज-रूप से स्वीकार करना चाहिये। विकलांगजन के प्रति ग़लत धारणाएँ और असंवेदनशील व्यवहार किसी भी प्रकार से अच्छी बात नहीं है।
अंत में अपने अब तक के जीवन को किसी शे’र या quote के जरिए कहना चाहें तो?
ललित – इस संदर्भ में मैं मजाज़ साहब का एक शे’र कहना चाहूँगा:
इश्क़ ही इश्क़ है दुनिया मेरी, फ़ित्ना-ए-अक़्ल से बेज़ार हूँ मैं
मेरी बातों में मसीहाई है, लोग कहते हैं कि बीमार हूँ मैं
वाह बहुत खूब… अपनी व्यस्तता में से समय देने का बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे बात करके आपको थोड़ा और अधिक जानकर अच्छा लगा। उम्मीद करता हूँ आपकी ऊर्जा और सकारात्मकता किसी हताश हो चुके ह्रदय में नए उत्साह का संचार करेगी।
Excellent work बहुत ही सुंदर लिखा गया है🙏🙏
Excellent Interview and write up.
Very encouraging and motivating
बहुत ही सुंदर साक्षात्कार और सकारात्मक से भरा हुआ, प्रेरित करने वाला, बहुत-बहुत बधाई।
बहुत सकरात्मक विचार और आलेख