पसंदीदा फिल्में बार-बार देखने की आदत ने पिछले हफ़्ते फिर से ‘कृष-3’ दिखा दी। इस बार देखते हुए ध्यान गया – सबसे ज्यादा ताकतवर नकारात्मक किरदार ‘काल’ पर, जिसे विवेक ओबेरॉय ने निभाया था। काल सबसे ताकतवर इसलिए है क्योंकि वह सिर्फ अपनी उंगलियों से ही दुनिया बदलने की ताकत रखता है। पूरे शरीर में सिर्फ हाथों की दो उंगलियाँ ही हैं जिन्हें काल अपनी मर्ज़ी से हिला सकता है। यह शक्ति उसमें कुदरती है और काल अपने दिमाग की ऊर्जा को नियंत्रित कर अपनी उंगलियों के इशारे से भारी से भारी वजन उठा सकता है। कोई भी काम कर या करवा सकता है। इन्हीं शक्तियों के चलते काल एक कामयाब जीव वैज्ञानिक है जो मेडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है। उसने इंसान और जानवरों के डी.एन.ए. को मिलाकर कुछ अलग तरह के जीव बनाए हैं लैब में टेस्ट-ट्यूब बेबी की तरह, जो न तो जानवर हैं और न इंसान ही हैं। इंसान व जानवर दोनों की ताकत रखने वाले इन जीवों को काल ने ‘मानवर’ नाम दिया और उनका भगवान बन गया।
मगर काल मजबूर है क्योंकि अपने बेजान शरीर के चलते वह व्हीलचेयर पर है, और अपना इलाज खोजने की सनक उसे अमीर और ताकतवर बनाती जा रही है। व्हीलचेयर पर होना काल के मन की कसक और हीन भावना दोनों है। काल अपने इलाज के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उसके बनाए मानवर उसके इलाज का ही प्रयोग हैं। काल का इलाज उसके अनुसार उसके जैसे बोनमैरो से ही संभव है लेकिन उससे मिलता-जुलता इंसान नहीं मालूम होने के कारण उसने कुदरत के नियमों में बदलाव कर नए बोनमैरो बनाने का प्रयास किया और… बन गए उसके मानवर। मानवरों से भी अपने खून से मिलता हुआ बोनमैरो हासिल न होने से काल की हीन भावना और निराशा बढ़ती जाती है। हम देखते हैं कि इतना ताकतवर और दौलतमंद व्यक्ति काल अपनी दुनिया में ही रहना पसंद करता है। अपने मन में बसी हीन भावना के चलते वह दुनिया से तब तक मुखातिब नहीं हुआ जब तक वह व्हीलचेयर पर रहा। अपने इलाज को खोजने के लिए किए जाने काल के प्रयोगों की वित्तीय समस्या को दूर करने के लिए दुनिया के अलग-अलग देशों में वायरस फैला कर फिर उसकी वैक्सीन, जो केवल काल के खून से बनाई जा सकती है, को ऊंचे दामों में बेचकर अरबों कमाता है और अपनी अत्याधुनिक प्रयोगशाला और अपना इलाज खोजने के लिए किए जाने प्रयोगों पर खर्च करता है।
काल शायद फिल्मों में दिखाया गया सबसे ताकतवर और मजबूत विकलांग व्यक्ति है। वह सशक्त है। वह कहीं भी रहम या दया का पात्र नहीं होता। यहाँ तक कि इतने प्रयोगों के बाद भी अपना इलाज नहीं मिल पाने की निराशा में भी उससे कोई सहानभूति महसूस नहीं होती। काल के इर्दगिर्द व्हीलचेयर होकर भी व्हीलचेयर कहीं नहीं दिखती। वरना, आम जीवन की तरह फिल्मों में दिखने वाले ज्यादातर विकलांग लोग दया या मजाक के पात्र ही दर्शाए जाते हैं। काल का किरदार उस सोच को बदलता है।
मगर काल की हीन भावना और अपने इलाज को खोजने की ज़िद ने अंदर से उसे भी उसके बनाए मानवरों-सा बना दिया था। इंसान रहा, न ही जानवर।
बर्फ से अटे पहाड़ पर कुत्तों द्वारा खींची जाने वाली स्लेज पर बैठकर अपनी अत्याधुनिक लेबोरेटरी में जाते काल का फ़िल्म में यह पहला और कमाल का दृश्य है। इससे उसकी अमीरी का अंदाजा होता है और जब वह मानवर बनाता है तब उसकी शक्तियों का अंदाजा होता है। पूरी फिल्म में काल अपना इलाज खोजता रहा, छिपकर कुदरत के नियमों को तोड़ता रहा अपने घातक प्रयोगों के नाम पर। लोगों को अपने बनाए वायरस से मौत बाँटता रहा ताकि खुद का इलाज कर सके। महज़ इसलिए कि वह देखना चाहता था कि दो उंगलियों के बल पर वह कितना कुछ कर पा रहा है तो पूरे शरीर की ताकत से वह क्या कुछ नहीं कर सकता। वह भगवान बन जाने की ताकत और मंसूबे लिए अपना इलाज ढूंढ़कर व्हीलचेयर से उठकर व उड़कर शहर आ जाता है और थोड़ी बहुत तोड़-फोड़ करने के बाद फ़िल्म के हीरो कृष के पिता के बनाए यंत्र की शक्ति से मारा जाता है। व्हीलचेयर से उठने के 10-15 मिनट के अंदर ही। यह भी कहा जा सकता है कि काल का इलाज ही उसकी मौत का कारण बना। वैसे, जब वह व्हीलचेयर पर था तो क्या नहीं था उसके पास।
हर किसी को यह अधिकार है कि उसे हर संभव इलाज मुहैया हो। हर तरह से हर संभव मदद मिले। लेकिन काल की तरह इलाज अगर सनक बन जाएगा तो कुछ भी संभव है। इलाज को इलाज की तरह किया जाए तब तक ही इलाज रहता है। सब तरफ से हार कर भी इलाज की ज़िद सनक कहलाती है। विकलांग व्यक्तियों के साथ ऐसा होते बहुत ज्यादा देखा जाता है। इलाज के नाम पर किए जाने वाले झाड़-फूँक, टोने-टोटके फ़िल्म में काल की तरह असंभव को संभव करने की हमारी सनक नहीं तो और क्या है? ऐसा इसलिए है कि विकलांगता स्वीकार्य नहीं है। जहाँ पर भी इलाज की आवाज़ भी सुनने को मिल जाए परिवार विकलांग को वहीं ले जाता है। फिर चाहे उसमें कितना ही कष्ट हो और कितना ही व्यय हो जाए।
वैसे अगर काल जैसा दिमाग, शक्तियाँ और दौलत हो तो इलाज को सनक बनाना ही क्यों है? इलाज हो और ज़रूर हो लेकिन जहाँ कुदरत भी अनुत्तरित हो जाए वहाँ तो ठहरना ही होगा न। अपने ज्ञान का अपनी शक्तियों का उपयोग मानव बनकर मानवता की भलाई के लिए करते हुए जिएं। क्यों अपने अंदर ऐसी हीन भावना और निराशा को स्थान दें कि आप व्हीलचेयर पर हैं? आपको कहीं तो रुकना ही होगा। कम से कम मैं तो काल की गलती से सबक लेता। नहीं तो कोई न कोई कृष ‘काल’ का काल बनेगा ही।
प्रकाशोत्सव दीपावली आनंदमय रहे।
उत्कृष्ट लेख, सकारात्मक सोच 🙏😘
आज की दुनिया में हम सब काल(Kaal) ही तो हैं क्योंकि हमें सबकुछ हासिल करना है और दूसरों को हराना है।
बहुत ही सुंदर रचना है 🙏🙏