दिल्ली विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्रोफ़ेसर जी.एन. साईबाबा का 10 अक्तूबर 2024 को हैदराबाद में निधन हो गया।
प्रो. साईबाबा का जन्म वर्ष 1967 में अमलापुरम, पूर्वी गोदावरी, आंध्रप्रदेश के एक ग़रीब किसान परिवार में हुआ। उन्हें पाँच वर्ष की आयु में ही पोलियो हो गया था। पोलियो के कारण उनके दोनों पैर प्रभावित हुए और उन्हें 90% विकलांगता हो गई। वे हाथों में चप्पलें पहन कर ज़मीन पर घिसट कर चलते थे। धन की कमी के कारण वे इसी तरह स्कूल व कॉलेज जाने को मजबूर रहे। उन्होनें हैदराबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. और दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
अपने लिये व्हीलचेयर वे तभी ख़रीद पाये जब उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली। उन्होनें विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में अनेक वर्षों तक अध्यापन कार्य किया।
प्रो. साईबाबा अपने राजनीतिक विचारों को लेकर मुखर थे। उन्होनें वर्ष 2009 में भारत सरकार द्वारा नक्सलियों के ख़ात्में के लिये शुरु किये गये ऑपरेशन ग्रीन हंट के विरोध-प्रदर्शन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। उनकी इन्हीं गतिविधियों से परेशान सरकार ने 9 मई 2014 को उन्हें माओवादियों से सम्बंधित होने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। 7 मार्च 2017 को उन्हें गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। प्रो. साईबाबा ने माओवादियों से सम्बंध से हमेशा इंकार किया।
नागपुर की सेंट्रल जेल में प्रो. साईबाबा को “अंडा सेल” में रखा गया। 30 अप्रैल 2020 संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग ने भारत सरकार से अपील की कि प्रो. साईबाबा को तेज़ी बिगड़ रहे स्वास्थ्य के कारण तुरंत रिहा किया जाये। उनकी पत्नी वंसत कुमारी ने द हिन्दु अखबार को बताया कि उन्हें अनेक बीमारियाँ हैं। प्रो. साईबाबा को मस्तिष्क में गाँठ के अलावा गॉल ब्लैडर और पैक्रियाज़ से सम्बंधित अनेक समस्याएँ थीं।
28 जुलाई 2020 को बम्बई उच्च न्यायालय ने प्रो. साईबाबा की चिकित्सीय सहायता के लिये लगाई गई 45-दिन की ज़मानत की अर्जी नामंज़ूर कर दी। कैंसर से जूझ रही 74-वर्षीय माँ से मिलने हेतु ज़मानत की अर्जी भी नामंज़ूर कर दी गई और माँ के निधन के बाद उन्हें अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति तक भी नहीं दी गई।
अप्रैल 2021 में रामलाल आनंद कॉलेज ने प्रो. साईबाबा को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया।
15 अक्तूबर 2022 को बम्बई उच्च न्यायालय ने प्रो. साईबाबा पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया। इस पर महाराष्ट्र सरकार ने कुछ ही घंटो के भीतर उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल कर दी। उच्चतम न्यायालय ने प्रो. साईबाबा की रिहाई पर रोक लगा दी।
05 मार्च 2024 में बम्बई उच्च न्यायालय ने कमज़ोर सुबूतों और पुलिस द्वारा केस की जाँच ठीक से न किये जाने के आधार पर एक बार फिर प्रो. साईबाबा को रिहा करने का आदेश दिया। महाराष्ट्र सरकार ने 2022 की तरह एक बार फिर तुरंत उच्चतम न्यायालय में फ़ैसले के ख़िलाफ़ अर्जी दायर कर दी। लेकिन इस बार उच्चतम न्यायालय ने प्रो. साईबाबा की रिहाई पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रो. साईबाबा कानून की अदालत में निर्दोष साबित हो चुके हैं।
दस वर्ष तक जेल में रहने के बाद प्रो. साईबाबा को आखिरकार मार्च 2024 में रिहा कर दिया गया।
10 अक्तूबर 2024 को गॉल ब्लैडर सर्जरी के बाद हुई समस्याओं के कारण प्रो. साईबाबा का देहांत हो गया।
प्रो. साईबाबा का जीवन अद्वितीय संघर्ष, शैक्षणिक उत्कृष्टता और राजनीतिक विचारधारा का मिश्रण था। जेल में दशकों की कठिनाइयों और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद, वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। उनकी कहानी प्रेरणादायक और विचारणीय है।
इन 10 सालों में उन्होंने बहुत कुछ खोया बिना जांच और बिना दोष सिद्ध हुए 10 साल तक जेल में रखना गलत है