युद्ध की आग में विकलांगजन – उपेक्षित और अनदेखी चुनौती

a wheelchair user in war zone

लेखक: अरुण कुमार सिंह : जमशेदपुर, झारखंड के रहने वाले अरुण विकलांगता से प्रभावित हैं और विकलांगजन के अधिकारों हेतु कार्य करते हैं।

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वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते संघर्ष ने एक बार फिर सीमा क्षेत्रों में नागरिकों के लिए एक भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है। कश्मीर, राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे संवेदनशील इलाकों में बमबारी, सैन्य संघर्ष और आतंकवाद के प्रभाव से न केवल सामान्य नागरिकों की सुरक्षा खतरे में है, बल्कि विकलांगजन की स्थिति और भी जटिल हो गई है। युद्ध के दौरान विकलांग व्यक्तियों की सुरक्षा, सहायता और चिकित्सा सेवाओं की उपेक्षा एक गंभीर मानवीय संकट बन कर उभरती है।

विकलांगजन की उपेक्षा

वर्तमान संघर्ष में विकलांग जनों के लिए परिस्थितियाँ और भी कठिन हो गई हैं। बमबारी और हमलों के दौरान उनके पास बुनियादी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं होती। न तो व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षित मार्ग होते हैं, न ही संकेत भाषा जानने वाले स्वयंसेवकों की व्यवस्था होती है, और न ही राहत शिविरों में समुचित सहायक उपकरण की व्यवस्था होती है। कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां विकलांग व्यक्तियों को आपातकालीन परिस्थितियों में सही समय पर राहत नहीं मिल पाई, और उनका जीवन और भी अधिक कठिन हो गया।

हालांकि, किसी ठोस रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि विकलांगजन को उनके घरों में छोड़ दिया गया था, लेकिन यह मान्यता ज़रूर है कि युद्ध के दौरान विकलांगजन की विशेष ज़रूरतों का ध्यान नहीं रखा जाता। जिन स्थानों पर संघर्ष हो रहा है, वहाँ नागरिकों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने में विकलांग व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ नहीं की जातीं। इसके अलावा युद्ध के बाद पुनर्वास योजनाओं में भी विकलांगजन की उपेक्षा की जाती है, जिससे उनका जीवन और भी मुश्किल हो जाता है।

विकलांगजन के लिए तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता

इस संकट से निपटने के लिए जरूरी है कि युद्ध और आपदा प्रबंधन योजनाओं में विकलांगजन के लिए विशेष प्रावधान किए जाएँ। इन प्रावधानों में समावेशी आपदा प्रबंधन, सुलभ राहत शिविरों का निर्माण, सहायक उपकरणों का उपलब्ध कराना, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, और विकलांगजन के लिए विशेष चिकित्सीय सहायता शामिल होनी चाहिए। राहत शिविरों में रैम्प, व्हीलचेयर की सुविधा और संकेत भाषा जानने वाले स्वयंसेवकों की व्यवस्था की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करना कि विकलांगजन को युद्ध के दौरान भी सुरक्षित, स्वस्थ और सक्षम रहने का अवसर मिले, हम सभी की जिम्मेदारी है।

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

युद्ध का वास्तविक चेहरा केवल सैन्य बलों या युद्ध के मैदान में दिखने वाली विजय में नहीं, बल्कि उन अनदेखी आवाज़ों में छिपा है, जो संघर्ष के बीच अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करती हैं। विकलांगजन के अधिकारों की रक्षा करना किसी भी समाज का एकमात्र मापदंड होना चाहिए। यदि हम अपनी नज़र में इन्हें प्राथमिकता नहीं देते, तो हम कभी भी एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण नहीं कर सकते।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का यह कर्तव्य बनता है कि वह इन मुद्दों को उठाए और सरकारों व नीति निर्धारकों को इस ओर जागरूक करे। विकलांगजन को इस संघर्ष के दौरान और उसके बाद मानवीय सहायता और पुनर्वास योजनाओं का हिस्सा बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। अब समय आ गया है कि हम युद्ध के इस संकट के साथ विकलांगजन के लिए भी एक समावेशी और सशक्त समाधान ढूंढें ताकि उनका जीवन भी सुरक्षित और गरिमापूर्ण बना रहे।

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shivani sahu
shivani sahu
1 day ago

👍👍👍👍 युद्ध जैसी स्थिति में इन चीजों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।

Kalaram Rajpurohit
Kalaram Rajpurohit
1 day ago

आजकल मीडिया अपने कर्तव्य के अनुसार काम नहीं करता, सिर्फ टीआरपी के लिए काम करता है और विकलांगता जैसे मुद्दे में टीआरपी कहां है, इसलिए उनसे कोई उम्मीद नहीं है। ये मेरा अपना नज़रिया और अनुभव है।

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