विकलांगता और अपराध एक संवेदनशील और जटिल विषय है जो समाज में व्याप्त कमज़ोरियों और न्याय व्यवस्था की सीमाओं को उजागर करता है। जब हम विकलांगता के बारे में बात करते हैं तो अधिकतर लोग इसे शारीरिक, मानसिक या संज्ञानात्मक कमज़ोरियों के रूप में देखते हैं, लेकिन यह समझना भी उतना ही ज़रूरी है कि विकलांग व्यक्तियों के साथ अपराधों की घटनाएँ अक्सर उनके समाज में उपेक्षित और हाशिए पर रहने के कारण होती हैं। इसके साथ ही कुछ मामलों में विकलांग व्यक्ति ख़ुद भी अपराध में संलिप्त पाए जाते हैं। यह इस विषय को और जटिल बना देता है। हाल ही में ओडिशा की रहने वाली मानसिक रूप से कमज़ोर एक युवती के साथ हुए गैंगरेप का मामला इस जटिलता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इस घटना ने विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के साथ होने वाले अपराधों पर एक बार फिर गंभीर चर्चा छेड़ दी है।
घटना की पृष्ठभूमि
11 अक्तूबर 2024 की तड़के दिल्ली के सनलाइट कॉलोनी में पुलिस को एक पीसीआर कॉल मिली, जिसमें एक गंभीर रूप से घायल युवती के बारे में जानकारी दी गई। इस पीसीआर कॉल ने एक भयावह अपराध का खुलासा किया, जिसमें तीन व्यक्तियों ने मानसिक रूप से कमज़ोर एक युवती के साथ बलात्कार किया था। पीड़िता की स्थिति इतनी गंभीर थी कि उसे तुरंत एम्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करना पड़ा। प्रारंभिक जाँच में पीड़िता ने तीन आरोपियों के नाम बताए, जिन्हें 700 से अधिक सीसीटीवी फुटेज और 150 से अधिक ऑटो रिक्शाओं की जाँच के बाद गिरफ्तार किया गया। इस घटना में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि आरोपियों में से एक, मोहम्द शमसुल, ख़ुद शारीरिक विकलांगता से प्रभावित था। अन्य दो आरोपी प्रमोद बाबू और प्रभु महतो हैं। शमसुल एक भिखारी है, प्रमोद एक दुकानदार है और प्रभु महतो ऑटो-रिक्शा चलाता है।
इस भयावह घटना ने न केवल समाज में विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के साथ हो रहे अपराधों की ओर ध्यान आकर्षित किया है बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति न केवल शिकार बल्कि अपराधी भी हो सकते हैं।
विकलांगता और अपराध: शिकार और अपराधी दोनों की भूमिका
समाज में अक्सर विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को कमज़ोर और असुरक्षित माना जाता है। यह सही भी है कि वे शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से कमज़ोर होते हैं। इस कारण वे अपराधियों के लिए आसान लक्ष्य बन जाते हैं। विकलांग व्यक्ति, विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चे, यौन शोषण, घरेलू हिंसा और आर्थिक शोषण जैसी घटनाओं का शिकार होते हैं। हालाँकि, कुछ दुर्लभ मामलों में विकलांग व्यक्ति खुद भी अपराध में संलिप्त हो सकते हैं, जैसा कि दिल्ली की इस घटना में देखा गया, जहाँ शमसुल नामक विकलांग व्यक्ति भी अपराधी के रूप में शामिल था।
यह एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है, जिसमें यह समझने की जरूरत है कि विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति किसी अपराध में क्यों संलिप्त हो सकते हैं, और क्या इसके पीछे कोई सामाजिक, आर्थिक या मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कारण हो सकते हैं?
विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के अपराधी बनने के कारण
1. आर्थिक और सामाजिक संघर्ष
विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसरों की कमी, ग़रीबी, और समाज में उपेक्षित होना आम बात है। समाज में उनकी भागीदारी सीमित होती है, जिसके कारण वे आर्थिक तंगी का सामना करते हैं। जब किसी व्यक्ति के पास आजीविका के साधन नहीं होते या उसे रोज़गार नहीं मिलता तो वह असामाजिक गतिविधियों की ओर खिंच सकता है। कई बार ऐसे व्यक्ति चोरी, धोखाधड़ी, या अन्य अपराधों में संलिप्त हो सकते हैं ताकि वे अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा कर सकें।
2. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ
मानसिक विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति अक्सर अपराधों में संलिप्त पाए जाते हैं, खासकर तब जब उनकी मानसिक समस्याओं का सही ढंग से इलाज नहीं हो पाता। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे वह सही और गलत के बीच भेद नहीं कर पाता। इस तरह के व्यक्ति आसानी से आपराधिक तत्वों का शिकार बन सकते हैं, या मानसिक अस्थिरता के कारण खुद भी अपराध कर सकते हैं।
3. दुरुपयोग और शोषण
विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को अपराध में शामिल करने के पीछे कई बार उनके शोषण का हाथ होता है। ऐसे व्यक्तियों को अपराधी गुट आसानी से अपने जाल में फँसा सकते हैं क्योंकि वे शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति का समाज में सीमित संपर्क होने के कारण अपराधी उन्हें अपने लिए साधन के रूप में उपयोग करते हैं, और कभी-कभी उन्हें जबरदस्ती आपराधिक गतिविधियों में धकेल देते हैं।
विकलांग व्यक्तियों के साथ होने वाले अपराध
विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति अपराधियों के लिए अक्सर आसान लक्ष्य होते हैं, खासकर यौन शोषण और शारीरिक हिंसा के मामलों में। महिलाओं और बच्चों के मामले में यह स्थिति और भी अधिक गंभीर हो जाती है। दिल्ली की इस घटना में पीड़िता मानसिक रूप से कमजोर थी, और अपराधियों ने उसकी इस कमजोरी का फायदा उठाया। यह समाज की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है जिसमें विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर होते हैं। अगर उन्हें उचित सुरक्षा और सहयोग नहीं मिलता, तो वे अपराधियों का शिकार बन जाते हैं।
इस घटना में पीड़िता के साथ बलात्कार एक गंभीर अपराध है लेकिन यह केवल इस घटना तक सीमित नहीं है। देशभर में विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के साथ ऐसे अपराध रोज़ाना हो रहे हैं। ये अपराध समाज में व्याप्त असमानता, उपेक्षा और अज्ञानता का परिणाम हैं, जहाँ विकलांग व्यक्ति अपनी कमज़ोरियों के कारण दूसरों के हाथों शोषित होते हैं।
न्याय और सुधार की आवश्यकता
विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के साथ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए न्याय प्रणाली और समाज दोनों में सुधार की आवश्यकता है। ये सुधार न केवल विकलांग व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि एक समावेशी और संवेदनशील समाज की नींव रखने में भी सहायक होंगे।
1. कानूनी सुरक्षा
विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के लिए न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि उन्हें उचित कानूनी सहायता और सुरक्षा मिल सके। उनके लिए विशेष कानूनी सेवाएँ, अनुवादक, और अन्य आवश्यक साधनों की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वे अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें और न्याय प्राप्त कर सकें।
2. सामाजिक जागरूकता
विकलांगता और अपराध के विषय पर समाज को और अधिक संवेदनशील और जागरूक बनाना आवश्यक है। समाज में विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए जागरूकता अभियानों और शिक्षा का सहारा लिया जा सकता है ताकि लोग विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण और समावेशी रवैया अपना सकें।
3. मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे विकलांग व्यक्तियों के लिए समुचित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और पुनर्वास कार्यक्रमों की आवश्यकता है। यह न केवल उन्हें अपराध से बचने में मदद करेगा, बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास में भी सहायक होगा। समाज में विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिलना चाहिए, ताकि वे अपराध की स्थिति से बाहर निकल सकें और एक सम्मानजनक जीवन जी सकें।
ओडिशा की युवती के साथ हुए गैंगरेप का यह मामला विकलांगता और अपराध के बीच के संबंध को उजागर करता है। विकलांगता से प्रभावित व्यक्ति न केवल अपराध का शिकार होते हैं, बल्कि कुछ दुर्लभ मामलों में अपराधी भी बन सकते हैं। ऐसे मामलों में न्यायिक प्रणाली और समाज की जिम्मेदारी बनती है कि वह विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करे और उन्हें अपराध के जाल से बचाए। विकलांगता और अपराध के इस जटिल संबंध को समझने और इसे हल करने के लिए हमें संवेदनशीलता, शिक्षा, और कानून के सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
बहुत ही संवेदनशील मुद्दा उठाया है हिमांशु, एक एक पहलू पर अपनी बात सटीकता से रखी है। पहले कारणों और फिर उनके निराकरणों को बखूबी अपने लेख में प्रस्तुत किया है। शानदार लेख।