ओ विकलांग, तुम प्रेम न करना

a wheelchair user man sitting on a roadside alone in night

हीर-रांझा, सस्सी-पुन्नू, लैला-मजनू — सबकी अलग प्रेम कहानी — सबका अलग दर्द — सबने अपनी प्रीत निभाने के लिए दुनिया से बगावत की। महज़ बगावत ही नहीं, बल्कि मौत को भी गले लगा लिया।

इन सब कहानियों में एक बात तो कॉमन थी — इनमें से कोई भी विकलांग नहीं था। ज़रा सोचिये क्या होता अगर हीर विकलांग होती तो?

क्या तब भी रांझा मुफ़्त में बारह साल तक हीर की भैंसें चराता रहता?

कहते हैं सस्सी ने एक राजमहल के बगीचे में पुन्नू की पेंटिंग देखी थी और उस नौजवान राजकुमार पर उसका दिल आ गया, क्या होता अगर वहाँ एक नौजवान विकलांग लड़के की पेंटिंग होती?

अगर लैला विकलांग होती तो क्या मजनू लोगों के पत्थर और दर-दर की ठोकरें खाता हुआ अपनी जान देता?

हम इस लेख में किसी भी ऐतिहासिक प्रेम कहानी का मज़ाक नहीं उड़ा रहे हैं, महज़ एक बात रख रहे हैं कि क्यों प्रेम हमेशा ख़ूबसूरती से ही होता है?

कहते हैं प्रेम की कोई सीमा नहीं होती, प्रेम में सब जायज़ होता है

फिर प्रेम किसी विकलांग से क्यों नहीं होता?

आप इतिहास की कोई भी किताब कुरेद कर देख लीजिये, नार्मल लोगों की लव स्टोरी के सिवा और कुछ नहीं होगा

किसी भी लव स्टोरी में कोई विकलांग नहीं है।

विकलांग के लिए किसी ने भी ज़हर नहीं खाया, किसी ने भी चेनाब पार नहीं,

कोई दर-दर नहीं भटका, कोई दुनिया से नहीं लड़ा।

किसी काल्पनिक कहानी में भी किसी विकलांग का नाम नहीं, बड़े-बड़े शायरों ने बड़ी-बड़ी रचनाएँ गढ़ी पर कहीं भी विकलांग का ज़िक्र नहीं हुआ।

ऐसा नहीं है की विकलांग से कोई प्रेम नहीं करता, उनकी भी प्रेम कहानियाँ होती हैं, वे भी आमजन की तरह ही भावनाएँ रखते हैं, कुछ प्रतिशत लोग उनके लिए भी संवेदनशील होते हैं, उन्हें अपनाते हैं उन्हें प्रेम करते हैं परंतु आम समाज उन्हें वो प्यार, वो सम्मान देता ही नहीं,

वो स्वीकार ही नहीं करना चाहता की परियों की शहजादी व्हीलचेयर पर भी हो सकती है या सपनों का राजकुमार बैसाखी के सहारे भी आ सकता है।

अगर एक सामान्य लड़के को विकलांग लड़की से प्रेम हो भी जाए तो उस नार्मल लड़के के घर वाले उस प्रेम प्रसंग को आगे नहीं बढ़ने देते।

कारण – समाज का डर, लोग रिश्तेदार क्या कहेंगे?

सब मज़ाक उड़ाएँगे की क्या ले आया आपका बेटा?

सबका डर जायज़ भी है, क्यूंकि इस दुनिया ने एक परफ़ेक्ट समाज की जो फ़्रेम बनाई है, विकलांग उसमें कहीं भी नज़र नहीं आते,

भला आएँगे भी कैसे इस परफेक्ट समाज की फ़्रेम में वही फ़िट होता है जिससे इस परफेक्ट समाज को कोई फ़ायदा होता हो और विकलांग तो किसी के भी काम के नहीं होते – ऐसा ये परफेक्ट समाज सोचता है।

ऐसा ही उस सामान्य लड़की के साथ भी होता है जिसे अगर विकलांग लड़के से प्यार हो जाए तो उसके भी घर वाले उस रिश्ते को वहीं दबा देते हैं, क्यूंकि उन्हें अपनी बेटी का भविष्य उस विकलांग लड़के के साथ सुरक्षित नहीं लगता, चाहे वो विकलांग लड़का एक सामान्य लड़के से बेहतर ही क्यों न हो (बेहतर यानी बेहतर एजुकेशन, बेहतर नौकरी, बेहतर घर, बेहतर समझ इत्यादि)

पर कोई भी यह सब नहीं देखना चाहते, समाज बस ढूँढ़ता है एक नार्मल लड़का, फिर वो चाहे वह ग़लत आदतों वाला ही क्यों न हो।

पर होना नार्मल ही चाहिए, फिर चाहे रिश्ता कुछ ही साल क्यों न टिके और विकलांग में भले लाख गुण क्यों न हो, उसे फिर भी स्वीकार नहीं किया जाता।

घर वालों और दोस्तों रिश्तेदारों के समझाने पर नार्मल लड़का/लड़की अपनी भावनाएँ उस विकलांग के लिए छुपा कर या भुला कर बड़ी आसानी से आगे बढ़ सकते हैं या यूँ कहें की आगे बढ़ जाते हैं।

पर वो विकलांग जो पहले ही अंदर से टूटा हुआ हो; समाज की बेरुख़ी के बावजूद वो कैसे आगे बढ़ पाता होगा? क्यूंकि उसके लिए तो किसी का प्रेम उस सूखे-बेजान फूल की तरह होगा जो बरसों से बंजर ज़मीन पर था और बारिश की कुछ ही बूंदे उसे नए जीवन की उम्मीद दे जाती हैं।

कुदरत और समाज का एक ही दस्तूर है कि उसे ही मारो जो पहले से ही मरा हुआ हो।

विकलांग व्यक्ति दूसरे विकलांग से भी प्रेम करने के लिए आज़ाद नहीं होता क्यूंकि यहाँ भी घर-परिवार का दखल होता है क्यूंकि घर वालों का ख़्याल होता है कि एक पहले से बोझ पड़ा है हम पर अब कहीं एक और न आ जाए (यह सोचना भी वैसे गलत तो नहीं है)

पर बात यहाँ विकलांग व्यक्ति के प्रेम और समाज के उसके प्रति सम्मान की हो रही है और उसकी भावनाओं की हो रही है जिसे वह न चाहते हुए भी मारता है।

पर क्या सच में मारने से भावनाएँ मर जाती हैं? क्या उनमें जज़्बात नहीं उमड़ते?

क्या उनका दिल नहीं चाहता किसी से ये कहने का की आज मैं उदास हूँ या आज मैं ख़ुश हूँ, क्या विकलांगजन में हार्मोन्स नहीं होते? क्या उनके अंदर प्रेम की ज्वाला नहीं उठती?

इन सब सवालों का आसान जवाब है कि हाँ! विकलांगजन में भी प्रेम की चाह होती है, उनमें भी नार्मल लोगों की ही तरह हार्मोन्स होते हैं, इस का सबूत है विकलांग लड़कियों के पीरियड्स, अब जब कुदरत ही भेदभाव नहीं करती नार्मल और विकलांग में तो इस समाज को भी भेदभाव नहीं करना चाहिए।

अगर हम कुछ रोज़ किसी सूखे पेड़-पौधे से भी प्यार से बातें करें तो वो भी हरा-भरा हो जाता है, फिर विकलांग तो हज़ारों गुणों से भरा इंसान है, वह क्यों न खिलेगा?

हम यह नहीं कहते कि विकलांग के लिए भी कोई प्रेम में ताजमहल बना दे या जान लुटा दे, बस उनकी भी भावनाओं को आम लोगों जैसा सम्मान दिया जाए

क्यूंकि विकलांग सिर्फ़ पेंशन के नहीं; प्रेम के भी हक़दार हैं।

Notify of
guest

4 Comments
Oldest
Newest
Inline Feedbacks
View all comments
विजय तिवारी
विजय तिवारी
1 year ago

रचना सुंदर है, पर मै एक अपवाद हो सकता हूँ। मेरी पत्नी ने परिवार से विरोध कर के मुझसे विवाह किया। उस समय मै बैसाखी के सहारे चलता था। (अब व्हीलचेयर में हूँ) वे एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग की अंतिम वर्ष की छात्रा थी।

Pardeep Singh
Pardeep Singh
1 year ago

बहुत बड़ी बात उठाई और खूबसूरती से कही गई है।

काव्या ma’am को बहुत बधाई और शुभकामनाएं

Raka koul
Raka koul
1 year ago
Reply to  Pardeep Singh

Nicely expressed, more discrimination for girls in this regard. However the physically fit having married handicapped person is very less percentage. I feel financial independence is the most important thing for handicapped. Society has to go a long way still in giving equal status for partnership purpose. Government is also not doing much because of low vote bank. These grievances need to be shared at a big platform and handicapped persons should be made economically more powerful.

Vidyanidhi Chhabra
Vidyanidhi Chhabra
3 months ago

सही कहा तुमने। पर अपवाद भी हैं। चाहे बहुत कम। मेने ऐसे couple भी देखे है जिन्होंने स्वेच्छा से ऐसे जीवन साथी चुने हैं। पर आम लोगों की आम दुनिया मे तुम्हारी बात सच है।

4
0
आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा है!x
()
x