दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में मान्यता-प्राप्त 21 विकलांगताओं में तीन रक्त विकार शामिल हैं: थैलेसीमिया, हीमोफ़ीलिया और सिकेल सेल रोग। इस आलेख में हम थैलेसीमिया के बारे में बात करेंगे। यह वंशानुगत रक्त विकार है जो इलाज और देखभाल के अभाव में कई बार जानलेवा भी साबित हो सकता है। चूँकि यह रोग एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाता है इसलिए इसके बारे में जागरूकता फैलाना बहुत ही आवश्यक है।
थैलेसीमिया के वंशानुगत होने से भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अक्सर माता-पिता को यह पता ही नहीं होता कि वे थैलेसीमिया जैसे रोग के संवाहक हैं और अनजाने में वे अपने बच्चे तक यह रोग पहुँचा देते हैं। थैलेसीमिया उन रोगों में से एक है जिनकी रोकथाम आसानी से की जा सकती है। संतान उत्पन्न करने की योजना बनाने से पहले हर दंपत्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वे इसके संवाहक न हों।
थैलेसीमिया क्या है?
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रक्त विकार है जिसमें रक्त में हीमोग्लोबिन की उत्पादकता कम या असामान्य हो जाती है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (आर.बी.सी.) में पाया जाने वाला प्रोटीन है जिसका काम पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाना होता है।
थैलेसीमिया के कारण कई लाल रक्त कोशिकाएँ नष्ट या विकृत हो जाती हैं जिसके कारण व्यक्ति को एनीमिया अर्थात रक्त की कमी हो जाती है। यही कारण है कि थैलेसीमिया से प्रभावित व्यक्ति की त्वचा पीली पड़ जाती है, वह थकान महसूस करता है और उसके मूत्र का रंग गहरा हो जाता है।
थैलेसीमिया की आनुवंशिकी
हीमोग्लोबिन ‘अल्फ़ा ग्लोबिन’ और ‘बीटा ग्लोबिन’ नामक दो छोटे प्रोटीन कणों से बनता है। मनुष्यों में अल्फ़ा ग्लोबिन को कोड करने के लिए चार और बीटा ग्लोबिन को कोड करने के लिए दो जीन ज़िम्मेदार होते हैं।
अल्फ़ा ग्लोबिन को कोड करने वाले चार में से एक भी जीन यदि अनुपस्थित हो या उत्परिवर्तित हो गया हो तो अल्फ़ा ग्लोबिन का उत्पादन असामान्य हो जाता है। इसके कारण व्यक्ति में अल्फ़ा थैलेसीमिया विकार उत्पन्न हो जाता है।
ठीक इसी तरह बीटा ग्लोबिन बनाने वाला कोई जीन यदि न हो या उत्परिवर्तित हो जाये तो असामान्य बीटा ग्लोबिन का उत्पादन होता है और व्यक्ति बीटा थैलेसीमिया विकार से पीड़ित हो जाता है।
थैलेसीमिया में आनुवांशिक वंशानुक्रम ऑटोसोमल रिसेसिव पैटर्न का अनुसरण करता है। इसका अर्थ यह है कि यदि माता-पिता दोनों ही थैलेसीमिया के संवाहक हैं तो इस बात की 25% संभावना है है कि बच्चा सामान्य होगा, 25% संभावना है कि बच्चे में थैलेसीमिया विकसित हो जाए और 50% इस बात की संभावना है कि बच्चा भी अपने माता-पिता की तरह थैलेसीमिया का संवाहक बन जाए। (संवाहक होने का अर्थ है कि उस व्यक्ति में थैलेसीमिया के लक्षण नहीं या तो होंगे नहीं या फिर न के बराबर होंगे लेकिन वह इस रोग को अगली पीढ़ी तक पहुँचा सकता है।)
थैलेसीमिया दो प्रकार के होते हैं –
- थैलेसीमिया मेजर – किसी बच्चे को थैलेसीमिया मेजर उस स्थिति में होता है जब उसे माता और पिता दोनों से एक-एक उत्परिवर्तित जीन प्राप्त हुए हों। इस स्थिति में थैलेसीमिया के सारे लक्षण प्रकट होते हैं और व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य तरीके से नहीं बन पाता। ख़ून की कमी के कारण व्यक्ति हमेशा थकान महसूस करता है।
- थैलेसीमिया माईनर – यदि बच्चे को माता या पिता में किसी एक से उत्परिवर्तित और एक से सामान्य जीन प्राप्त हुआ हो तो उस बच्चे को थैलेसीमिया माईनर होता है। ऐसे में व्यक्ति के शरीर पर कोई ख़ास लक्षण तो नज़र नहीं आते लेकिन वह अगली पीढ़ी के लिए थैलेसीमिया का संवाहक होता है।
थैलेसीमिया के लक्षण
हमने यह समझ लिया है कि थैलेसीमिया के कारण व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो जाती है। इस कमी के कारण व्यक्ति को अनेक समस्याएँ हो सकती हैं; जिनमें शामिल हैं:
- थकान और कमज़ोरी
- चक्कर
- साँस लेने में कठिनाई
- तेज़ धड़कन
- सिर दर्द
- पैरों में ऐंठन
- ध्यान एकाग्र करने में परेशानी
- त्वचा का पीला पड़ जाना
इनके अलावा थैलेसीमिया प्रभावित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी सामान्य लोगों से काफ़ी कम हो जाती है जिसके कारण इन्हें किसी भी संक्रमण का ख़तरा अधिक होता है। एक लम्बे समय तक थैलेसीमिया के साथ जीवन जी रहे व्यक्ति की हड्डियाँ भी कमज़ोर हो जाती हैं।
थैलेसीमिया से जुड़े कुछ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या थैलेसीमिया एक विकलांगता है?
भारत में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 विकलांगता की परिभाषा और अन्य मानदंड तय करता है। इस अधिनियम के अनुसार थैलेसीमिया को विकलांगता के एक प्रकार के रूप में उल्लिखित किया गया है। थैलेसीमिया प्रभावित व्यक्ति विकलांगता प्रमाण पत्र बना कर सरकार द्वारा विकलांगजन को दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।
क्या थैलेसीमिया का कोई इलाज है?
गंभीर थैलेसीमिया का इलाज बस यही है कि प्रभावित व्यक्ति को नियमित रूप से रक्त चढ़ाया जाता रहे और आयरन केलेषण की प्रक्रिया से शरीर में आयरन की मात्रा को संतुलित किया जाता रहे।
थैलेसीमिया की जाँच कैसे होती है?
थैलेसीमिया का पता लगाने के लिए हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस नाम की एक सरल रक्त जाँच होती है। इससे यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति थैलेसीमिया का वाहक है या नहीं।