वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता

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वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में सूचीबद्ध गयी 21 विकलांगताओं में शामिल है। यह तो हम सब जानते हैं कि वाणी और भाषा हमारे संचार-व्यवहार का एक बहुत महत्त्वपूर्ण अंग है। जिन व्यक्तियों को वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता हो उनका सामाजिक जीवन इससे काफ़ी हद तक प्रभावित होता है। यह विकलांगता न सिर्फ़ व्यक्ति को अकेलेपन का एहसास करा सकती है बल्कि मानसिक तनाव का भी बड़ा कारण बन सकती है।

आइये देखते हैं कि वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता क्या है और यह व्यक्ति के जीवन को कैसे प्रभावित करती है।

वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता क्या है?

वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति के बोलने की क्षमता और भाषा का कौशल दोनों प्रभावित होते हैं। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम में दी गयी परिभाषा के अनुसार यह किन्हीं कारणों से हुई स्थाई विकलांगता है जो व्यक्ति की वाणी/भाषण या भाषा के विभिन्न घटकों में से एक या अधिक के प्रभावित होने के कारण होती है।

इसके अंतर्गत आने वाले विकार कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कि हकलाना, शब्दों का सही उच्चारण न कर पाना, भाषा या आवाज़ में कोई परेशानी आदि।

हम कुछ भी बोलने के लिए अपने मुँह से जो आवाज़ निकालते हैं उसे ही वाणी कहते हैं। वाणी सम्बन्धी विकार से प्रभावित व्यक्ति को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है:

  • आवाज़ का साफ़ न होना
  • कर्कश या अस्पष्ट आवाज़ होना
  • बोलते वक़्त एक ही आवाज़ का दोहराव होना
  • बोलते वक़्त अनैच्छिक जगहों पर रुक जाना

भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपनी बात कह पाते हैं और दूसरों की बातें समझ पाते हैं। भाषा-सम्बन्धी विकार से प्रभावित व्यक्ति को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है:

  • लोगों की कही बात का अर्थ न समझ पाना
  • बोलने के लिए शब्दों को जोड़ कर उचित वाक्य बना पाने में परेशानी
  • भाषा को पढ़ने व लिखने में परेशानी

जब बच्चा बोलना और दूसरों से बतियाना सिख रहा हो तब ही वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता के लक्षण स्पष्ट हो जाते हैं। विशेषज्ञों की सहायता से बच्चे की वास्तविक परेशानी और उसके कारण का पता लगाया जा सकता है।

सही वक़्त पर बच्चे को सही सहायता मिल जाए तो कई मामलों में वे इस परेशानी से उबर सकते हैं और उनकी स्थिति स्थाई विकलांगता तक नहीं पहुँचती। इसलिए यह ज़रूरी है कि माता-पिता और शिक्षक बढ़ते बच्चों की वाणी और भाषा पर ध्यान दें और कोई असामान्यता होने की स्थिति में बच्चे को उचित चिकित्सीय परामर्श दिलाएँ।

विकलांगता प्रमाण पत्र

वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगताएँ विभिन्न कारणों से हो सकती हैं और इन विकलांगताओं का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न भी हो सकता है।

वाणी सम्बन्धी विकलांगताओं के कुछ सामान्य स्वरूप निम्नलिखित हैं:

  • लेरिन्जेक्टॉमी
  • ग्लोसेक्टोमी
  • बाईलैटरल वोकल कॉर्ड पैरालिसिस
  • मैक्सिलोफेशियल अनोमैलिस
  • डिसरथ्रिया
  • अप्राक्सिया ऑफ़ स्पीच

इसी प्रकार भाषा सम्बन्धी विकार जिसके लिए प्रमाण पत्र लिया जा सकता है उसका एक उदाहरण अफेज़िया हो सकता है जिसमें भाषा को समझने या इस्तेमाल करने की क्षमता प्रभावित होती है।

विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने का पहला कदम है अपने नज़दीकी सरकारी अस्पताल में जाना। वहाँ जाकर आपको प्रमाण पत्र बनाने के लिए गठित बोर्ड के बैठने की तारीख़ आदि सभी जानकारियाँ मिल जाएँगी।

चिकित्सा अधीक्षक या मुख्य चिकित्सा अधिकारी या सिविल सर्जन या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य समकक्ष प्राधिकारी ही प्रमाण पत्र जारी करने के लिए गठित बोर्ड के मुख्य सदस्य होते हैं। इनके अलावा बोर्ड में दो और सदस्यों का होना ज़रूरी है:

  • एक ई.एन.टी. विशेषज्ञ
  • बोर्ड के मुख्य सदस्य द्वारा नामित सम्बंधित विशेषज्ञ (ऑडियोलॉजिस्ट/स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट आदि)

प्रमाण पत्र बनाने से पहले कई जाँच की जाएँगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवेदक को स्थाई विकलांगता है। वाणी और भाषा सम्बन्धी विकलांगता प्रमाण पत्र के लिए किये जाने वाली जाँच में निम्नलिखित परीक्षण शामिल हो सकते हैं:

  1. वाक् बोधगम्यता परिक्षण – इससे यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति जो बोल रहा है उसे कोई किस स्तर तक सुन व समझ सकता है।
  2. स्वर परिक्षण – इसमें आवाज़ या स्वर के उत्पादन से जुड़ी सभी बारीकियों की जाँच होती है।
  3. भाषा परिक्षण – इसमें व्यक्ति के भाषा को समझने, ग्रहण करने की क्षमता का परिक्षण होता है।

अंत में…

वाणी और भाषा सम्बन्धी विकार हम जितना सोचते हैं उससे कहीं अधिक सामान्य घटना है। बढ़ती उम्र में कई बच्चों में इन विकारों के लक्षण नज़र आते हैं जो कई बार वक़्त के साथ विलुप्त भी जाते हैं। यह ज़रूरी है कि बढ़ते बच्चों के विकास पर ध्यान दिया जाए और वाणी या भाषा सम्बन्धी विकास में कोई भी परेशानी नज़र आने पर उन्हें सम्बंधित विशेषज्ञ के पास ले जाया जाए। सही वक़्त पर सही परामर्श उनके विकार को स्थाई विकलांगता बनने से रोक सकता है।

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