राही मनवा 03: संतान उत्पत्ति के बारे में सोचने से पहले जाँच करा लें

cover image for Raahi Manvaa, regular column of Samyak Lalit on viklangta.com

8 मई को विश्व रेड क्रॉस दिवस और अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस है।

रेड क्रॉस की महत्ता तो हम सभी जानते हैं — यह संस्था पूरे विश्व में हर वर्ष 16 करोड़ लोगों तक मानवीय सहायता पहुँचाती है। इसे चार बार नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है (1917, 1944, और 1963 में तीन बार संस्था को व 1901 में रेड क्रॉस के संस्थापक हेनरी डुनेन्ट को)।

थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रक्त विकार है और भारत में इसे विकलांगता की श्रेणी में शामिल किया गया है। इससे प्रभावित व्यक्ति के शरीर में कम या असामान्य हीमोग्लोबिन बनता है। इसकी वजह से व्यक्ति एनीमिया से प्रभावित हो जाता है और उसके लिये हल्का-फुल्का काम करना या चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। थैलेसीमिया मेजर से प्रभावित व्यक्ति के शरीर में नियमित-रूप से रक्त चढाया जाता है — फ़िलहाल यही इसका एकमात्र उपाय है। आनुवांशिक होने के कारण थैलेसीमिया का विकार माता-पिता से संतान में जा सकता है।

थैलेसीमिया से प्रभावित बच्चों की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक भारत में ही है। भारत में लगभग 1.5 लाख बच्चे इससे प्रभावित हैं और लगभग 4.2 करोड़ लोगों में थैलेसीमिया बीटा का जीन मौजूद है — अर्थात इन करोड़ों लोगों पर तो थैलेसीमिया का प्रभाव दिखाई नहीं देगा लेकिन इनमें से एक स्त्री और एक पुरुष यदि बच्चे को जन्म देते हैं तो बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने के 25% चांस होते हैं।

हमारे देश में विवाह सम्बंध खूब देखभाल कर बनाए जाते हैं — लेकिन अक्सर इस पड़ताल में नौकरी, पैसा, घर, परिवार, रंग-रूप, कद, नैन-नक्श इत्यादि बातों को आधार बनाया जाता है। देश में कोई भी युगल संतान हेतु शारीरिक सम्बंध बनाने से पहले अपनी जाँच उन बीमारियों के लिये नहीं कराता जो आनुवांशिक हैं। आप सभी प्रकार के आनुवांशिक विकारों की जाँच तो नहीं करा सकते लेकिन थैलेसीमिया, डाउन सिन्ड्रोम, सिकल-सेल जैसे कुछ सामान्य विकारों की जाँच तो कराई ही जा सकती है। हालांकि होता यह है कि लोग जाँच नहीं कराते और नतीजा जन्म लेने वाली संतान को भुगतना पड़ता है। आज तमाम तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं; हम फिर भी बिना किसी जाँच के संतान पैदा कर देते हैं और फिर बड़ी आसानी से पूर्व जन्म के कर्मों को दोष दे देते हैं। यह उस बच्चे के साथ सरासर अन्याय है।

एक सवाल यह भी है कि यदि जाँच में यह पाया जाता है कि युगल द्वारा उत्पन्न संतान के किसी गंभीर रोग/विकार से प्रभावित होने की 50% संभावना है तो वह युगल क्या निर्णय लेगा? क्या वह संतान पैदा नहीं करेगा? या अपने मन और परिवार/समाज के दबाव के कारण वह इस दाँव को खेलेगा कि चलो देखते हैं क्या होगा — क्या पता कि प्रभावित-न-होने की 50% संभावना काम कर जाए! संभावना का संतुलन प्रभावित-न-होने की ओर खिसकाने के लिये हो सकता है धार्मिक रीतियों का सहारा भी लिया जाए। हो सकता है कोई सास या ससुर अपनी बहू पर कुलक्ष्णी होने, बांझ होने या मनहूस होने का ठप्पा लगा दें। बहुत कुछ हो सकता है।

…और संभावना यह है कि इस बहुत कुछ के चक्कर में दाँव खेला जाएगा… पासा फेंका जाएगा… सीधा पड़ा तो ईश्वर का धन्यवाद… उल्टा पड़ा को “होनी को कौन टाल सकता है भला”

इस तरह के मुआमलों में क्या हम होनी को वाकई नहीं टाल सकते? क्या बच्चे पैदा करना इतना अधिक आवश्यक है? क्या इस देश और दुनिया की आबादी पहले ही अत्यधिक नहीं हो चुकी है? बच्चे पैदा करने को हमारे देश में इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि जो युगल किसी भी कारण से संतान पैदा नहीं कर पाता — उसके जीवन पर तो यह समाज कालिख पोत देता है। हमें बच्चे पैदा करने और वंश बढ़ाने जैसी बातों से आगे बढ़ कर सोचना होगा। संतान उत्पत्ति से पहले विभिन्न प्रकार की जाँच अवश्य कराएँ — जहाँ तक हो सके यह सुनिश्चित कर लें कि आप अपनी ओर से संतान को कोई रोग न दें। होना तो यह चाहिये कि सरकार इस तरह के टेस्ट्स को न केवल आवश्यक बनाए बल्कि इन टेस्ट्स का खर्च सरकार को उठाना चाहिये ताकि पैसे की कमी के कारण से टेस्ट्स रुके नहीं।

थोड़े से शारीरिक सुख / मानसिक सुख के फेर में अपने बच्चे को एक दर्द-भरी ज़िन्दगी न दें। न केवल उस बच्चे का ख़ुद का जीवन पीड़ा से भरा होगा बल्कि उसके ज़रिये उसकी संतान भी विकार से प्रभावित हो सकती है। यह चक्र तब तक चलता रहेगा जब तक जीन-थेरेपी इत्यादी के ज़रिये आनुवांशिक बीमारियों का कोई स्थायी इलाज नहीं खोज लिया जाता या फिर जब तक कि प्रभावित लोग संतान उत्पत्ति बंद करके इस चक्र को रोक नहीं लेते।

अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस की तरह के वैश्विक दिवस आते-जाते रहते हैं। अधिकांश की ओर लोग ध्यान भी नहीं देते — लेकिन ये सभी दिवस अति-महत्त्वपूर्ण होते हैं — ये हमारे-आपके जीवन को प्रत्यक्ष या परोक्ष-रूप से प्रभावित करते हैं। हम अपने धार्मिक त्योहारों पर अपने ईष्ट का स्मरण करते हैं — इसी तरह हमें वैश्विक / राष्ट्रीय दिवस पर एक बार उससे जुड़े विषय के बारे में चिंतन-मनन कर लेना चाहिये।

दो मिनट ही सही लेकिन हमें सोचना चाहिये… क्योंकि सोचना ज़रूरी है।

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सुनील थुआ
सुनील कुमार थुआ
1 year ago

बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है आमतौर सभ्य समाज में इनके प्रति चेतना का अभाव है ।

डॉली परिहार
परिहार डॉली
1 year ago

मैंने कहीं पढ़ा था कि गुण, मैत्री कुंडली से ज्यादा जरूरी है हेल्थ कुंडली का मिलान करन। आपने सही लिखा।

हिमांशु+सिंह
हिमांशु+सिंह
1 year ago

मेरे लिए थैलेसीमिया की जानकारी नयी है…इस तरह की जागरूकता के कारण हम कितनों को इससे होने वाले दुष्प्रभाव से बचा सकते हैं…….

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