समाज कई वर्गों से मिलकर बना होता है। इन सभी वर्गों की एक-दूसरे से कुछ-न-कुछ अपेक्षाएँ होती हैं। ये अपेक्षाएँ अच्छी-बुरी, सही-गलत हो सकती हैं — लेकिन समाज चाहता है कि कोई वर्ग-विशेष हर परिस्थिति में इन अपेक्षाओं पर खरा उतरे। विकलांग व्यक्ति भी समाज का एक वर्ग है — इसलिये समाज के अन्य वर्गों को विकलांगजन से भी कुछ अपेक्षाएँ रहती हैं। हम आज इन्हीं अपेक्षाओं की बात करने जा रहे हैं, जो अधिकतर समाज के अन्य वर्गों को विकलांगजन से रहती हैं।
अधिकतर देखा गया है कि लोगों द्वारा विकलांगजन से अपेक्षा की जाती है कि वे समझदार, सभ्य, शालीन, शांत स्वभाव वाले हो। देखा जाए तो किसी से यह अपेक्षा करना ग़लत नहीं है; लेकिन इस अपेक्षा का भार विशेष रूप से विकलांगजन के कन्धों पर डालना कितना सही है? यदि कोई विकलांगजन थोड़ा नासमझ, असभ्य, थोड़ा गुस्सैल स्वभाव वाला हो तो अक्सर उसे कहा जाता है कि अपनी स्थिति (विकलांगता) को ध्यान में रखकर व्यवहार करो। यदि इस स्थिति (विकलांगता) में तुम्हारा व्यवहार सभ्य, शांत नहीं होगा तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा। यदि ऐसा ही व्यवहार कोई सामान्यजन करे तो क्या यह (व्यवहार) मान्य हो जायेगा? सामान्यजन के ग़लत व्यवहार करने के बावजूद भी क्या लोग उसका साथ देगें? नहीं न …
ग़लत व्यवहार किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाए, वह व्यवहार हमेशा ग़लत ही रहेगा। किसी व्यक्ति की शारीरिक / मानसिक स्थिति को देखते हुए उस व्यक्ति से किसी विशेष व्यवहार की अपेक्षा करना सही नहीं है। यदि एक विकलांगजन ग़लत व्यवहार कर रहा है तो उसे समझाना ज़रूरी है; लेकिन समझाने की प्रक्रिया में उसकी स्थिति (विकलांगता) को निशाना बनाना हरगिज़ सही नहीं है।
हम विकलांगजन के ग़लत व्यवहार का समर्थन बिल्कुल भी नहीं कर रहें हैं — लेकिन किसी की विकलांगता को आधार बनाकर उसको नसीहत देना कहाँ तक सही है?
हमनें कई बार देखा-सुना हैं कि जब एक विकलांग व्यक्ति कोई लक्ष्य निर्धारित करता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति में यदि वह कई बार विफल होता है, तो कुछ लोग अक्सर उसे कहते हैं कि सामान्यजन तो यह लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते; तुम लोग (विकलांगजन) कैसे कर पाओगे? लोगों के इन कटाक्ष भरे शब्दों से उनकी यही अपेक्षा स्पष्ट होती है कि विकलांग व्यक्ति को अपने इरादों को नहीं बल्कि केवल अपनी विकलांगता को ही बड़ा मानना चाहिए। विकलांगजन को अपने लिए ऐसा कोई भी लक्ष्य निर्धारित नहीं करना चाहिए जिसे प्राप्त करना सामान्यजन के लिए भी कठिन होता है। समाज के कुछ लोग सोचते हैं कि उन्हें विकलांगजन की क्षमता और अक्षमता का आकलन करने और विकलांगजन को अपने लिए कितने बड़े लक्ष्य निर्धारित करने चाहिये यह निर्णय लेने का अधिकार है। जबकि अपनी क्षमता और अक्षमता का आकलन करने और उस आकलन के आधार पर अपने लिए कोई लक्ष्य निर्धारित करने का अधिकार केवल व्यक्ति विशेष का निजी अधिकार होता है — फिर चाहे वह व्यक्ति एक सामान्यजन हो या कोई विकलांगजन हो।
समाज के कुछ लोग चाहते हैं कि एक विकलांगजन पूरी तरह से एक मर्यादित जीवन जीये। यदि कोई विकलांग व्यक्ति उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाता तो लोग अनेक तरह के कटाक्ष कर उसको बताते हैं कि उसे कैसे रहना चाहिए। उदाहरण के लिये कि विकलांगजन को कहा जाता है कि पिछले जन्म के कर्मों का फल तो इस जन्म में भोग ही रहे हो कुछ अच्छे कर्म कर लो ताकि अगला जन्म तो सुधार सको।
एक विकलांग व्यक्ति अपनी विकलांगता के कारण पहले से ही अनेक समस्याओं से जूझ रहा होता है; लेकिन फिर भी अपना जीवन ख़ुशी से जीना चाहता है। जब वह ख़ुद के लिए ऐसे कठोर शब्द सुनता है तो क्या उसका मन आहत नहीं होता होगा? सभी विकलांगजन मानसिक रूप से मज़बूत नहीं होते हैं। कुछ विकलांगजन अपनी विकलांगता के कारण पहले से ही मानसिक तनाव से गुज़र रहे होते हैं। वे इस तरह के कटाक्ष सहन नहीं कर पाते। वे कहीं-न-कहीं समाज द्वारा कहे गए इन शब्दों को सच मान बैठते हैं और हीनभावना का शिकार हो जाते हैं।
कई अपेक्षाएँ तो बड़ी अज़ीबो-ग़रीब होती हैं। उदाहरण के लिये, विकलांगजन को गंभीर जीवन जीना चाहिए। अपनी विकलांगता को ध्यान में रखकर ही कोई शौक रखना चाहिए और क्रिया-कलाप करने चाहिये। कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे कि वे हँसी के पात्र बनें। मान लीजिये कि एक विकलांग व्यक्ति है जो ठीक से खड़ा नहीं हो पाता लेकिन उसे डांस करने का शौक है। इस स्थिति में लोग उससे यही अपेक्षा करेगें कि वह कभी भी डांस न करे। अगर वह फिर भी अपना शौक पूरा करता है तो कुछ लोग उसका मज़ाक बनाते हैं और कहते हैं कि पहले ठीक से खड़ा होना तो सीख लो डांस बाद में ही कर लेना। इसी प्रकार कोई विकलांग लड़की (जिसका शरीर विकलांगता के कारण विकृत हो चुका हो) जिसे सजने-सँवरने का शौक हो। उसके लिए लोग बोलते हैं कि देखो अब ये भी सँवरेगी! एक विकलांग व्यक्ति को अपने जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसका निर्धारण भी अन्य लोग करते हैं!
समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो यह अपेक्षा करता है कि विकलांगजन को अपनी सारी समस्याओं के बावजूद एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जिससे लोग उस विकलांग व्यक्ति से प्रेरणा ले सकें और लोगों को अपने जीवन की समस्याओं का सामना करने का साहस मिल सकें। यह ‘अपेक्षा’ करने में वैसे तो कोई बुराई नहीं है; लेकिन हम फिर यही बात कहेगें कि क्या केवल विकलांगजन से ही यह अपेक्षा की जानी चाहिए?
यह ‘अपेक्षा’ तो विकलांगजन व सामान्यजन सभी से की जानी चाहिए। हम सभी को ऐसा जीवन जीना चाहिए जिससे कि न सिर्फ़ हम अपनी स्थिति को सुधार सकें; अपितु दूसरों को भी उनकी समस्याओं के बावजूद बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सकें।
हम यह बिल्कुल नहीं कहते कि विकलांगजन से अपेक्षाएँ न रखी जाएँ। अपेक्षाएँ करना बहुत ज़रूरी होता है। यें अपेक्षाएँ ही होती हैं जो व्यक्ति को आगे बढ़ने, अपनी कमियों को सुधार कर बेहतर व्यक्ति बनने में मदद करती हैं; लेकिन किसी पर उसकी क्षमता के परे अपेक्षाओं का भार डाल देना या फिर ऐसी अपेक्षाएँ करना कि व्यक्ति सामान्य जीवन ही न जी सके, यह ग़लत है।
क्या समाज में कोई ऐसा वर्ग भी है जो विकलांगजन से एक ‘सामान्यजन’ होने की अपेक्षा करें, विकलांगता की सीमाओं को समझते हुए सकारात्मक अपेक्षाएँ करें, विकलांग होने के बावजूद भी एक व्यक्ति मन से, भावनाओं से, स्वभाव से, विचारों से सामान्य व्यक्ति ही है; यह समझकर अपेक्षाएँ करें? हम चाहते हैं कि ऐसा केवल एक वर्ग नहीं अपितु पूरा समाज होना चाहिए। जहाँ विकलांगता और विकलांगता के पीछे के एक सामान्य व्यक्ति को समझकर अपेक्षाएँ की जाएँ।
Very nice
Well done sister. viklangta par good article
यही बात है न! कि विकलांगजनों को लोग सिर्फ़ विकलांग ही समझते हैं, व्यक्ति नहीं। अच्छा लिखा आपने।
Heart touching….❤️
अच्छा लिखा है। इसका दूसरा पक्ष भी है कि विकलांग जन जिन्हें आजकल दिव्यांग कह कर पुकारा जाता है वे भी सभ्य समाज से क्या अपेक्षाएं रखते हैं। उन्हें हमेशा ही बेचारगी या सहानुभूति नहीं चाहिए होती है। वे भी समान रूप से मुख्य धारा में शामिल किया जाना और अच्छे काम के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहते हैं। इस पक्ष पर भी लिखो।
जी सर मार्ग दर्शन करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार🙏🙏 मैं इस दिशा में भी ज़रूर लिखुँगी।
Very nice