निस्वार्थ भाव का एक रिश्ता जो मुझे सदा याद रहेगा

wheelchair user enjoying view in the hills

इस आलेख को राशि ने लिखा है। आप ऑस्टोजेनेसिस इम्परफ़ेक्टा नामक एक स्थिति से प्रभावित हैं। इस स्थिति से प्रभावित व्यक्ति की हड्डियाँ बहुत कमज़ोर रहती हैं और हल्के से दबाव में भी चोटग्रस्त हो जाती हैं।

हाल ही में, मैं अपने परिवार संग हिमाचल भ्रमण पर गई थी। यह अनुभवों से भरी यात्रा रही। यूँ तो हम अक्सर किसी भी यात्रा पर स्वयं योजना बना कर जाते हैं, किन्तु इस बार हमने कुछ नया प्रयोग करने का सोचा। इस बार ट्रैवल एजेंसी द्वारा सब कुछ बुक कराया जिसमें उनके द्वारा सुविधा कुछ इस प्रकार थी कि दिल्ली से शाम को उनकी बस सभी यात्रियों को लेगी। दिल्ली से हिमाचल की कुछ जगह जो योजना में सम्मिलित थीं, और रुकने के स्थान से लेकर सुबह-शाम के खाना तक और वापिस दिल्ली तक लाने की जिम्मेदारी ट्रैवल एजेंसी की थी।

मेरी विकलांगता बचपन में ज़्यादा गंभीर थी पर बढ़ती उम्र के साथ अब जीवन पहले से काफ़ी आसान है। अब मैं बिना सहारे के समतल सतह पर आसानी से चल लेती हूँ, पर कहीं पर उतार-चढ़ाव हो तो थोड़ा सहारे की ज़रूरत होती है। पहाड़ों पर भी मुझे सहारे की ज़रूरत लगती है – ऐसे में पहाड़ों पर मेरे माता-पिता मेरा हाथ थामे रहते हैं।

मई की गर्मी से तो कोई अछूता नहीं है। वैसे तो हर साल ही गर्मी की मार बहुत ज्यादा होती है, फिर भी हर साल लोग यही कहते हैं कि इस बार गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यात्रा में ऐसा लगा कि गर्मी से बचने हर कोई मानो हिमाचल ही आ गया हो। वहाँ इस कदर भीड़ थी। अनगिनत गाड़ियों की लंबी-लंबी लाइन थी, घंटों लम्बा ट्रैफ़िक जाम था।

हिमाचल में हमारा पहला दिन मनाली भ्रमण का था। यहाँ हमें हिडिंबा देवी का मंदिर और मॉल रोड जाना था जिस पर हमारी बस के ड्राइवर ने हमें बहुत पहले उतार दिया और कहा कि यहाँ से पैदल जाना है। हमने वहाँ से पैदल चलना शुरू किया, थोड़ा आगे आकर देखा कि बहुत-सी बसें थीं जो बहुत आगे तक आ रही थीं। मुझे बहुत ख़राब लगा कि सिर्फ़ हमारी बस ने हमें इतना पहले उतार दिया जबकि बाकी बड़े वाहन तो इतना आगे तक आए। ख़ैर, हिडिंबा मंदिर अभी भी बहुत आगे था और खड़ी चढ़ाई थी। फिर बहुत मुश्किल से एक ऑटो वाले भैया माने ले जाने को। सामान्य से अधिक रुपए लिए पर हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था। तब तक मैं ये सोचती जा रही थी कि वापिस आके बस वाले ड्राइवर भैया पर बहुत गुस्सा करूँगी। जब सभी बसें उधर तक जा रही थीं तो आपने मेरी समस्या देखते हुए भी, इतनी पहले क्यों उतार दिया। और वो भी ऐसी जगह जहाँ से कोई ऑटो नहीं मिल रहा था। मैंने ठान लिया था कि वापस आ कर यह बात ज़रूर सामने रखनी है। हमने वहाँ सब घूमा और वापस बस तक आ गए। मेरे मन में तो था कि जो भी आज मुझ पर बीती उन्हें बता दूँ – लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन नहीं किया उन्हें कुछ कहने का। घूम कर मेरा मन भी अच्छा हो गया था और दूसरे यह भी कि मेरा स्वभाव शांत है। अंदर कितना गुस्सा आ जाए पर किसी पर निकालने की बारी आए तो मैं कुछ कह नहीं पाती, जो कभी-कभी सही भी रहता है और कभी ग़लत भी। इस बार मेरा चुप रहना कैसा रहा ये आपको आगे पता लगेगा।

अगले दिन हमें रोहतांग पास जाना था। बहुत अधिक जाम होने की वजह से हमारा अटल टनल और सोलंग वैली जाना स्थगित हो गया था। जैसे-तैसे सुबह के निकले शाम पाँच बजे हम रोहतांग पहुँचे। यह कुछ ऐसा था कि खंभा छू के आना। चूंकि शाम हो गई थी तो ज़्यादा देर नहीं रुक सकते थे। इसलिए सबको मज़े करने का थोड़ा-थोड़ा वक्त मिला था। जाम की वजह से ड्राइवर ने सबको बोल दिया थी कि सब एक-एक करके उतर जाओ मुझे जहाँ थोड़ी भी जगह मिलेगी मैं बस खड़ी कर दूँगा। इसके बाद मैं नीचे की ओर उतरूँगा, सबको पैदल आना होगा, गाड़ी दोबारा ऊपर नहीं आएगी। बस के सभी लोग उतर गए। सिर्फ मैं और मेरी वजह से मेरा परिवार बस में रह गया। ड्राइवर भैया ने बस एक ऐसी जगह खड़ी करनी चाही जहाँ से मैं भी बर्फ से खेल पाऊँ और वहाँ खड़े लोगों से उन्होंने मेरे लिए बहुत अनुरोध भी किया कि गाड़ी ले जाने दो। पर कोई नहीं माना तो उन्हें वहाँ से गाड़ी घुमानी पड़ी। नीचे कुछ दूर लाकर उन्होंने जैसे-तैसे गाड़ी खड़ी की जिससे मैं भी कुछ बर्फ में वक्त बिता पाऊँ। हालांकि उस दिन रोहतांग में मैं बहुत ज़्यादा एंजॉय तो नहीं कर सकी और ना मेरी वजह से मेरा परिवार, क्योंकि वहाँ पर बहुत खड़ी चढ़ाई थी, मैं तो उस पर बिल्कुल चल ही नहीं सकती थी, पर मेरी वजह से मेरा परिवार भी कहीं नहीं गया। थोड़ा-बहुत वहाँ बस से उतर कर हमने बर्फ से ढके पहाड़ों का आनंद लिया।

अगले दिन कसोल में भी यही समस्या कई बार आई, पर इस बार ड्राइवर भैया ने मेरी समस्या को देखते हुए हर जगह गाड़ी मंज़िल पर ला कर ही रोकी। आखिरी दिन मणिकर्ण गुरुद्वारा में तो इतना जाम था कि एक पल गाड़ी रोकने का वक्त नहीं था फिर भी उन्होंने मेरे आने तक जैसे-तैसे गाड़ी रोक कर रखी और जैसे ही मैं गाड़ी में चढ़ी, तब तक बस के और लोगों को आने में थोड़ा-सा वक्त था पर जाम की वजह से उन्हें गाड़ी आगे बढ़ानी पड़ी और बाकी लोगों को कम-से-कम 2 किलोमीटर चल कर आना पड़ा क्योंकि गाड़ी रोकने के लिये फिर और कोई जगह ही नहीं मिली। पहले दिन के बाद, मुझे बेवजह बहुत कम चलना पड़ा था। इस कारण मैं यात्रा का आनंद ले पाई।

आखिरी दिन मैंने ड्राइवर भैया को धन्यवाद कहा। इस पर उन्होंने हल्का-सा हक से डाँटते हुए कहा यह कोई अहसान नहीं था, मैं किसी पर कोई अहसान नहीं करता, और बोले “मुझे नहीं पता क्यों पर दिल से तुझे सगी बहन माना है” और अपना नम्बर देते हुए कहा जब ज़रूरत हो अपने भाई से कहना। इतने दिनों मेरी उनसे कोई ख़ास बात तो नहीं हुई थी, पर बिन कहे उन्होंने मेरी समस्या को समझा और हर संभव सहायता करने का प्रयास किया। वह भी जानते हैं और मैं भी कि शायद अब कभी मिलना भी ना हो। पर बिन कहे, निस्वार्थ भाव का एक रिश्ता जो उनसे बना वह मुझे सदा याद रहेगा।

यूँ तो यात्रा में शामिल सभी लोग अनजान थे, सभी का स्वभाव अलग था; पर पहली बार मैंने अपने आत्मविश्वास के लिए प्रत्येक व्यक्ति से कुछ न कुछ बातचीत की और महसूस किया कि मेरी विकलांगता कहीं पर भी मुझे कमतर या महान बनाने के लिए वजह नहीं बनी। इस यात्रा पर इतने अनजान लोगों के बीच रहते हुए भी मुझे यह अहसास हुआ कि विकलांगता पर थोड़ी-सी ही सही पर मैंने शायद कुछ विजय प्राप्त कर ली है।

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Shivani
Shivani
3 months ago

बहुत खूब ! इतना बेहतरीन वर्णन था ऐसा लगा कि हिमाचल के दर्शन हो गए और आपके लेख को पढ़कर मुझे भी यह विश्वास आया कि मैं अभी ऐसी जगह पर घूम सकती हूं।

Nupur Sharma
Nupur Sharma
3 months ago

राशि सबसे पहले तो इतना सुन्दर लेख लिखने और हिमाचल भ्रमण के लिए आपको बधाई।🌷🌷
इसके बाद आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, हिमाचल के दर्शनीय स्थलों का इतना सजीव वर्णन करने के लिए।
आपने मेरे मन में भी इच्छा जगा दी कि मैं भी हिमाचल जाऊँ।
यह बिल्कुल सही है – कई बार हमें अनजाने सफर पर कुछ नि:स्वार्थ भाव से परिपूर्ण अनमोल रिश्ते मिल जाते हैं। आपको-हम सभी को ऐसे रिश्ते मिलते रहें।

Lokendra Singh
Lokendra Singh
3 months ago

आपका लेख पढ़कर मुझे मेरी मनाली ट्रिप कि याद आ गई, ऐसा लगा एक बार फिर से पूरा ट्रिप हो गया। आपने बहुत अच्छा लिखा है राशि जी, एक पूरी ट्रिप का वर्णन बड़ी सजीवता के साथ किया है। आपको बहुत शुभकामनायें।

AGNA
AGNA
3 months ago

मनाली सच में बोहोत खूबसूरत है। वैसे मेरा भी ऐसा ही एक बड़ा भाई है जो मेरी दार्जिलिंग यात्रा में बना था। दुर्भाग्य से उसका एक एक्सीडेंट हो गया था और आधा रास्ता बस को मैने और हमारे ट्रैवल एजेंट ने चलाया था। आपका लेख पढ़ कर मुझे आज उसकी याद आ गयी।

AGNA
AGNA
3 months ago

आपने बोहोत अच्छा लिखा है मैम। जिस प्रकार से आपने अपनी यात्रा वृतांत कही है ऐसा लगा मानो कल की ही बात है। माल रोड के सामने बड़े बड़े हिडिंब के पेड़, व्यास नदी के पानी का वो शोर, हिडिंबा मंदिर जाने के लिए वो चढ़ाई, मंदिर के पास बड़े बड़े खरगोश, इत्यादि सभी यादें ताजा हो गईं। आपका बोहोत धन्यवाद।

Bharti
Bharti
3 months ago

राशि, आपका आलेख बहुत ही अच्छा है। मुझे भी घूमने फिरने का बहुत शौक है। हिमाचल कई बार जा चुकी हूँ पर परिवार के साथ हमेशा अपने व्हीकल से ही गयी हूँ। इसका एक कारण शायद विकलांगता ही है। आपका आलेख पढ़ कर ऐसा लगा मानो मैं दोबारा पहाड़ों में ही पहुंच गयी हो।पुरानी यादें तरोताजा हो गयी। आपने बहुत अच्छा लिखा। 👍🏻

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