मानसिक विकारों से जुड़ी भ्रांतियाँ, सामाजिक कलंक और भेदभाव

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“मानसिक विकार (बीमारी) से प्रभावित आधे से अधिक लोगों को चिकित्सीय सहायता नहीं मिल पाती है” यह दावा करता है अमेरिकी साईकिआट्रिक एसोसिएशन। रिपोर्ट के मुताबिक चिकित्सीय सहायता न मिलने का सबसे बड़ा कारण यह है कि मानसिक विकारों के साथ जुड़े सामाजिक कलंक के कारण लोग अपनी स्थिति को छिपाते रहते हैं। अपनी स्थिति स्वीकार कर ये लोग किसी तरह के भेदभाव से नहीं गुज़रना चाहते।

यह तो स्थिति है अमेरिका जैसे विकसित देश की, जहाँ मानसिक बीमारियों को लेकर खुली चर्चा होती है और उनके विषय में जागरूकता फैलाने के निरंतर प्रयास होते रहते हैं।

अब ज़रा सोचिये कि भारत में रह रहे मानसिक विकारों से प्रभावित लोगों की क्या स्थिति होगी? यहाँ तो फ़िलहाल एक बहुत बड़ा तबका मानसिक विकारों के अस्तित्व को ही नकारता है। जहाँ एक ओर अति-पिछड़े इलाकों में मानसिक बीमारियों को भूत-प्रेत का साया मानकर अजीबो-ग़रीब अनुष्ठान किये जाते हैं वहीं शहरों में रहने वाले पढ़े-लिखे वर्ग में भी एक बहुत बड़ा हिस्सा है जो मानसिक विकार को ‘अमीरों के चोंचले’ या ‘ड्रामा’ जैसे नाम देकर उनके अस्तित्व को मानने से इनकार कर देता है।

मनोचिकित्सक की सहायता लेने को हमारे देश में फ़िज़ूलखर्ची, विलासिता या लक्ज़री की तरह देखा जाता है; जबकि यह भी किसी शारीरिक तकलीफ़ के होने पर चिकित्सक के पास जाने जैसा ही है।

इस आलेख में आज मैं बता रहा हूँ मानसिक विकारों से जुड़ी कुछ भ्रांतियों और भेदभाव के बारे में… यह लेख ज़रूरी है क्योंकि इस विषय पर चर्चा ज़रूरी है।

आगे बढ़ें उससे पहले यह ज़रूरी है कि आप भली-भाँती इस बात को समझें कि मानसिक विकार कहते किसे हैं। यदि आपको इस विषय में कोई संदेह है तो कृपया पहले मानसिक विकार की परिभाषा और प्रकार से जुड़े हमारे आलेख को पढ़ जाइए।

मानसिक विकारों से जुड़े सामाजिक कलंक एवं भ्रांतियाँ

“कलंक” का आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें किसी व्यक्ति को समाज द्वारा नकारात्मक भाव से देखा जाता है। हमारे देश सहित विश्व के लगभग हर हिस्से में मानसिक रोगियों के साथ कुछ न कुछ कलंक जोड़ ही दिया जाता है। बग़ैर व्यक्ति या उसकी स्थिति को जाने ही लोग मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति को नकारात्मक भाव से देखने लगते हैं। कई बार इसका कारण मानसिक रोग से जुड़ी भ्रांतियाँ या गलत जानकारियाँ भी होती हैं।

इन्हीं कलंक और भ्रांतियों के कारण मानसिक रोगियों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। हालाँकि इस विषय के जानकारों की मानें तो ये कलंक एक ही स्रोत से नहीं आते। उनके अनुसार मानसिक रोगों के लिए कलंक के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं –

  • समाज – हर व्यक्ति इस बात से प्रभावित होता है कि समाज उसे कैसी नज़रों से देखता है। एक समाज के रूप में यदि हम मनोरोगियों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखेंगे तो वे ख़ुद की स्थिति को स्वीकारने या चिकित्सीय मदद लेने में अवश्य ही हिचकिचाएंगे।
  • स्वयं – मनोरोगों के विषय में सही जानकारी न होने पर अक्सर प्रभावित व्यक्ति स्वयं को एक दोषी के रूप में देखने लगता है।
  • संस्थाएँ – संस्थाओं में देश के कानून, सरकार, मीडिया आदि को शामिल किया जाता है। कई देशों में तो कानून भी मनोरोगियों को नीची नज़रों से देखता है, सरकारों का भी उनके उत्थान पर कोई ध्यान नहीं होता और ना ही मीडिया इस बारे में कोई सकारात्मक भूमिका निभाता है।

हम अपने देश में आस-पास के माहौल को देखें तो हम पाएँगे कि इन सभी स्रोतों से आने वाली नकारात्मकता मनोरोगियों की स्थिति पर बुरा असर डालती है। मीडिया द्वारा सकारात्मक भूमिका निभाने की बात छोड़िये — ये अक्सर समाज में फैली भ्रांतियों को बढ़ावा देकर नकारात्मक भूमिका ही निभाते हैं।

मानसिक विकारों से जुड़े कलंक और भ्रांतियों का दुष्प्रभाव

जैसा कि हम पहले ही बात कर चुके हैं कि मानसिक विकार से जुड़े कलंक और भ्रांतियाँ प्रभावित व्यक्ति पर बहुत बुरा असर डालती हैं। ये दुष्प्रभाव न सिर्फ़ पीड़ित व्यक्ति बल्कि उनसे जुड़े लोगों के लिए भी काफ़ी हानिकारक होते हैं।

  • मानसिक रोगी और उनसे जुड़े लोग चिकित्सीय सहायता लेने से बचते हैं। वे जितना हो सके उस स्थिति को छिपा कर रखने की कोशिश करते हैं। यह कहने की बात नहीं कि सही वक़्त पर सही सहायता न मिलने के कारण कोई भी रोग बिगड़ता ही है — चाहे रोग शारीरिक हो या मानसिक।
  • लोगों में मानसिक बीमारियों को लेकर सही समझ न होने के कारण दोस्तों, परिवार के सदस्यों और सहकर्मियों के साथ रिश्ते भी बिगड़ने लगते हैं।
  • प्रभावित व्यक्ति धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियों से दूर होने लगता है।
  • कई बार प्रभावित व्यक्ति को दुर्व्यवहार और मार-पीट तक का सामना करना पड़ता है। आजकल की ऑनलाइन दुनिया में भी लोगों को उपहास का सामना बहुत अधिक करना पड़ता है। ये सभी चीजें व्यक्ति के आत्मविश्वास को बुरी तरह तोड़ देती हैं।
  • व्यक्ति शर्म, अकेलेपन और उदासीनता जैसी नकारात्मक भावों से भर जाता है जो उसकी स्थिति को और भी बिगाड़ देते हैं। कई बार इन्हीं कारणों से व्यक्ति के मन में आत्महत्या जैसे विचार भी आने लगते हैं।

निष्कर्ष

हमारी नासमझी और जागरूकता की कमी किसी व्यक्ति के जीवन को नर्क बना सकती है और वह व्यक्ति ज़रूरी नहीं कोई दूसरा ही हो। वह हम ख़ुद या हमारा कोई नज़दीकी भी हो सकता है। मानसिक विकार किसी भी व्यक्ति को किसी भी वक़्त प्रभावित कर सकते हैं। एक समाज के रूप में यह ज़रूरी है कि हम मानसिक विकारों को लेकर न सिर्फ़ जागरूक बनें बल्कि अपने आस-पास भी जागरूकता फैलाएँ।

जागरूकता फैलाने का काम आप अभी और इसी वक़्त इस आलेख को साझा करके कर सकते हैं।

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