यह लेख हमें अनाम संदेश के ज़रिये प्राप्त हुआ है। लेखक ने संदेश में अपना नाम लिखा है लेकिन अनाम संदेश के नियमों के कारण हम नाम बदल कर इस लेख को प्रकाशित कर रहे हैं। यदि इस लेख के लेखक अपना असली नाम प्रकाशित करना चाहते हैं तो कृपया हमें बतायें।
==
मेरा नाम अमन है और मैं 35 साल का हूँ। मेरी ज़िंदगी में दो गंभीर बीमारियाँ हैं जिनका डॉक्टरों के पास भी कोई इलाज नहीं है, इन बीमारियों के नाम Meniere’s Disease और Hyperacusis हैं। ये हर दिन एक नई चुनौती लेकर आती हैं। इन बीमारियों ने मेरी शारीरिक और मानसिक सेहत पर गहरा असर डाला है और मेरी सामान्य ज़िंदगी को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
Meniere’s Disease के साथ संघर्ष
मेनिएर डिज़ीज़ ने मेरे जीवन को कठिन बना दिया है। इस बीमारी के कारण मुझे अक्सर तेज चक्कर और उल्टी आते हैं। चक्कर इतने गंभीर होते हैं कि चलने में भी कठिनाई होती है। अक्सर, चलते समय मेरे कदम लड़खड़ा जाते हैं और मुझे असंतुलन महसूस होता है। लड़खड़ाने के कारण घर के अंदर और बाहर कई बार दुर्घटना होने की स्थिति बन जाती है। चक्कर के साथ-साथ, मेरे कानों में पिछले कई सालों से कभी न बंद होने वाली सीटी जैसी गूंज (टिनिटस) भी रहती है, इस गूंज ने मेरी सुनने की क्षमता को काफी कम कर दिया है।
Hyperacusis – जब आवाज़ें असहनीय बन जाती हैं
Hyperacusis के कारण, मेरे कान बेहद संवेदनशील हो गए हैं जिससे हल्की आवाज़ें जैसे सामान्य बातचीत, बच्चों की आवाज़, बर्तनों की खड़खड़, गाड़ियों के हॉर्न इत्यादि भी मेरे लिए असहनीय हो गईं हैं। मुझे हर समय अपने कानों में रुई लगानी पड़ती है ताकि मैं इन आवाज़ों से थोड़ी राहत पा सकूँ। घर से बाहर निकलने का ख्याल मुझे डराता है, क्योंकि बाहरी दुनिया की आवाज़ें मेरे लिए बेहद कष्टकारी होती हैं। इस कारण मुझे अक्सर घर के अंदर ही रहना पड़ता है। मजबूरी में मैं जो काम करता था वो भी छोड़ना पड़ा जिससे जीवन में अस्थिरता आई है। फोन पर बात करना, जो पहले एक साधारण काम था, अब मेरे लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। कई मौकों पर मैं लोगों का फोन रिसीव नहीं कर पाता।
बीमारियों का मानसिक और सामाजिक प्रभाव
ये बीमारियाँ सिर्फ शारीरिक नहीं हैं, बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी मुझे प्रभावित करती हैं। सामाजिक कार्यक्रमों, शादी, बर्थडे पार्टी आदि में भाग नहीं ले पाता हूँ जिससे दोस्तों और रिश्तेदारों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ता है। जब मैं अपने दोस्तों और परिचितों से मिलता हूँ, तो मुझे उन्हें अपनी स्थिति समझाना मुश्किल होता है क्योंकि बाहर से देखने पर मैं बिल्कुल स्वस्थ और सामान्य दिखता हूँ, लेकिन अंदर से मैं इन समस्याओं से जूझ रहा होता हूँ। लोग मेरी तकलीफ को समझ नहीं पाते हैं और इस वजह से मैं कई बार अकेला महसूस करता हूँ।
ये सारी चीज़ें मेरे लिए एक ऐसी लड़ाई बन गई हैं जिसे मैं हर रोज़ लड़ता हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए ताकत कम पड़ रही है, लेकिन फिर भी मैं अपने लिए नए रास्ते तलाशने की कोशिश करता रहता हूँ।
आगे की उम्मीद
मैं ये लिख रहा हूँ ताकि लोगों को पता चले कि यह केवल एक शारीरिक समस्या नहीं है, बल्कि यह मेरे और मेरे जैसे अनेक लोगों के मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक जीवन को भी गहराई से प्रभावित करती है।
शायद, एक दिन, मैं इन बीमारियों पर विजय पाकर अपनी ज़िंदगी में कुछ अर्थपूर्ण कर पाऊँ जिससे मैं अपनी और अपने जैसे अन्य लोगों की कुछ मदद कर पाऊं ताकि हम सब मिलकर इस कठिन यात्रा को थोड़ा आसान बना सकें और एक-दूसरे को सहारा दे सकें।
आपने बिल्कुल सही है कि एक समय पर ऐसा महसूस होता है क्योकि जब आपके बारें में जानने वाला ही आपकी परेशानी न समझे तब खुद को अकेलापन महसूस होता है | ये याद रखिये की अगर आप खुद से न हारे तो आपकी जीत निश्चित है…