मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, मोहन यादव, द्वारा विकलांग व्यक्तियों के संबंध में दिया गया बयान

madhya pradesh chief minister mohan yadav's statement about disabled people

मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री, मोहन यादव, द्वारा विकलांग व्यक्तियों के संबंध में दिया गया बयान न केवल अमानवीय है, बल्कि यह भारतीय समाज में गहराई से जड़ें जमा चुके भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण को भी दर्शाता है। जब कोई उच्च पदस्थ व्यक्ति सार्वजनिक रूप से यह कहता है कि हम लोग वैसे ही कटे-पिटे शरीर वालों को “वैसे भी सुग नहीं मानते” और “राजा बनने योग्य केवल वही है, जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हो”, तो यह केवल एक व्यक्तिगत राय नहीं होती, बल्कि यह पूरे समाज को एक भेदभावपूर्ण मानसिकता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी शासक या नेता ने इस तरह के अमानवीय विचार व्यक्त किए हैं। इतिहास में कई ऐसे क्रूर और पक्षपाती शासक हुए हैं, जिन्होंने कमज़ोर या विकलांग व्यक्तियों को समाज पर एक बोझ समझा और उनके अधिकारों को कुचलने का प्रयास किया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान की तुलना हम एडोल्फ हिटलर से कर सकते हैं, जिन्होंने विकलांग व्यक्तियों के प्रति घृणास्पद और क्रूर नीतियाँ अपनाई।

1. संवैधानिक मूल्यों और कानून के विरुद्ध

भारत का संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देता है। अनुच्छेद 14 के तहत सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है, और अनुच्छेद 15 किसी भी प्रकार के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। विकलांगजन अधिकार कानून, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 – RPwD Act) विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें समान अवसर प्रदान करने की बात करता है।

मुख्यमंत्री मोहन यादव का यह बयान इन संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध है। यह न केवल विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को नकारता है, बल्कि समाज में विकलांगता को लेकर बनी नकारात्मक धारणाओं को भी बढ़ावा देता है।

2. हिटलर और विकलांगों के प्रति उसकी घृणास्पद नीतियाँ

अगर हम इतिहास में देखें, तो एडोल्फ हिटलर का शासनकाल सबसे क्रूर और अमानवीय शासन में से एक माना जाता है। उसने विकलांग व्यक्तियों को समाज पर बोझ समझा और उन्हें समाप्त करने की नीति अपनाई।

टी4 प्रोग्राम: नाजी शासन के दौरान विकलांगों को “अनावश्यक” और “अशक्त” मानकर उनकी हत्या कर दी गई।

यूजेनिक्स नीतियाँ: हिटलर का मानना था कि केवल “शुद्ध रक्त” वाले लोग ही समाज में रहने योग्य हैं, और विकलांगों को खत्म कर देना चाहिए।

शारीरिक पूर्णता पर जोर: हिटलर ने हमेशा एक मजबूत, स्वस्थ और सक्षम आर्य जाति की कल्पना की, और विकलांगों को समाज से हटाने की योजना बनाई।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का यह कहना कि राजा बनने योग्य केवल वही है, जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हो, उसी मानसिकता को दर्शाता है, जो हिटलर के शासनकाल में थी। यह विचार न केवल विकलांगों के प्रति अपमानजनक है, बल्कि यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों के खिलाफ भी है।

3. सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाला बयान

भारत में पहले से ही विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक स्वीकार्यता में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब एक मुख्यमंत्री इस तरह का बयान देता है, तो इससे विकलांग व्यक्तियों के प्रति पहले से मौजूद भेदभाव और अधिक मजबूत होता है।

यह बयान समाज में विकलांग व्यक्तियों के प्रति संवेदनशीलता और समानता की भावना को कमजोर कर सकता है। भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन विकलांगता को लेकर जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इस तरह की टिप्पणियाँ उन प्रयासों को धक्का पहुँचाती हैं।

4. एक नेता के लिए अनुचित और असंवेदनशील बयान

एक नेता का कर्तव्य होता है कि वह समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करे और सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करे। एक मुख्यमंत्री का इस तरह का बयान केवल विकलांग व्यक्तियों का अपमान नहीं है, बल्कि यह उनके परिवारों और पूरे समाज के लिए निराशाजनक है।

एक संवेदनशील और जागरूक नेता को चाहिए कि वह विकलांग व्यक्तियों के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाए, उनकी समस्याओं को समझे, और उनके लिए बेहतर अवसर उपलब्ध कराने के लिए काम करे। लेकिन इस तरह का बयान न केवल संवेदनहीनता को दर्शाता है, बल्कि यह एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया भी प्रकट करता है।

5. विकलांगता को लेकर समाज में बदलाव की आवश्यकता

समाज को विकलांग व्यक्तियों के प्रति अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

  1. नेताओं और नीति-निर्माताओं को विकलांगता के मुद्दों पर जागरूक किया जाए, ताकि वे बिना भेदभाव के समावेशी नीतियाँ बना सकें।
  2. शिक्षा और मीडिया के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों की उपलब्धियों को उजागर किया जाए, ताकि समाज में उनकी क्षमताओं को लेकर सकारात्मक सोच विकसित हो।
  3. सरकारी संस्थानों और निजी क्षेत्रों में विकलांग व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएँ, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
  4. ऐसे भेदभावपूर्ण बयानों का पुरजोर विरोध किया जाए, ताकि भविष्य में कोई भी नेता समाज के किसी भी वर्ग को अपमानित करने की हिम्मत न कर सके।

मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया यह बयान असंवेदनशील, अपमानजनक और भेदभावपूर्ण है। यह भारतीय संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक समरसता के खिलाफ है।

अगर हम इतिहास से सबक न लें, तो ऐसे विचार भविष्य में समाज को और अधिक विभाजित कर सकते हैं। हिटलर जैसी मानसिकता का कोई भी नेता जब समाज में अपनी बात रखता है, तो यह एक खतरे की घंटी होती है।

विकलांगता किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा या नेतृत्व क्षमता को सीमित नहीं करती। समाज को चाहिए कि वह इस तरह की भेदभावपूर्ण मानसिकता का विरोध करे और विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर और सम्मान देने के लिए जागरूकता फैलाए।

अब समय आ गया है कि हमारे नेताओं और समाज में एक समावेशी और संवेदनशील दृष्टिकोण विकसित हो, ताकि विकलांग व्यक्ति भी समाज की मुख्यधारा में बराबरी से भाग ले सकें और अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सकें।

अगर इस तरह की मानसिकता पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा साबित हो सकता है।

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