बहुत बार कोई विकलांग व्यक्ति आपसे मदद माँगना चाहता है लेकिन नहीं माँगता। क्योंकि वह मदद माँगने के बाद मिलने वाली प्रतिक्रिया और होने वाले परिणामों के विषय में गहन विचार-विमर्श करने लगता है कि मदद करने वाला व्यक्ति मेरे सामने किस रूप में उपस्थित होगा? क्या वह यह कहेगा कि मैंने तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं ले रखी है, तुम अपना समझो। या फिर, वह मदद तो करेगा, लेकिन क्रोध में, बेमन। या फिर, सहानुभूति जताते हुए, या फिर बेचारा समझकर पुण्य कमाने के वास्ते। या कि मदद करते हुए वह ये महसूस कराएगा कि मैं भगवान हूँ। या फिर, वो कुछ भी नहीं बोलेगा और मदद भी नहीं करेगा। इनमें से मददगार का एक भी रूप विकलांग व्यक्ति को पसंद नहीं आएगा क्योंकि ऐसी प्रतिक्रियाओं से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। विकलांग व्यक्ति भले ही पद-प्रतिष्ठा में आपसे उच्च न हो, भले ही वह एक सफल व्यक्ति न हो; किन्तु व्यक्ति तो है; और आत्मसम्मान तो हर व्यक्ति की व्यक्तिगत कीमती धरोहर है, जिसे कोई भी खोना नहीं चाहता। सिर्फ़ इसलिए वह तब तक किसी से मदद नहीं माँगता जब तक उसकी जान पर न बन आये।
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आपने कभी सोचा है? यदि आप सक्षम हैं और आपसे किसी विकलांग व्यक्ति ने मदद माँग ली, तो आप उपरोक्त में से किस श्रेणी में रह कर उसकी मदद करेंगे? क्या आपने कभी सोचा है कि इस दुनिया में कोई भी इतना सक्षम तो नहीं है कि उसे जीवन में कभी, किसी की सहायता की आवश्यकता ही न पड़े। स्वयम् प्रभु श्रीराम को भी लंका विजय के लिए बंदर-भालुओं की मदद लेनी पड़ी थी, तो फिर हम सब तो मनुष्य हैं। आप कितने ही ऊँचे पद पर क्यों न हों, समाज में चाहे कितनी ही बड़ी आपकी प्रतिष्ठा हो, लेकिन फिर भी कभी-न-कभी आपको दूसरों की मदद की ज़रूरत पड़ती-ही-पड़ती है। परिवार में, समाज में, या किसी भी संस्था या क्षेत्र में आप अकेले रहकर कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे समावेशी रहकर समाज में समन्वय स्थापित करते रहना चाहिए। इसलिए मदद शब्द सिर्फ़ विकलांग व्यक्तियों के लिए बना है, ऐसा सोच कर नाक-भौं मत सिकोड़िये। अगर आप स्वयम् को हीरो समझते हैं तो आगे बढ़कर किसी ज़रूरतमंद की मदद करने का दायित्व उठाइये। फिर चाहे वह दायित्व अंतरराष्ट्रीय हो, राष्ट्रीय हो, सामाजिक हो या कि पारिवारिक हो। क्योंकि जिनमें दायित्व संभालने का बल होता है, हर हाल में हीरो वही कहलाता है। अगर आप दायित्व नहीं उठा सकते तो न उठाइये लेकिन, कृपया किसी विकलांग को अपने व्यवहार से छोटा महसूस मत कराइये। क्योंकि इस परिस्थिति में छोटा वो नहीं, छोटे तो आप हैं।
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वहीं बहुत बार ऐसा भी होता है कि, एक सक्षम व्यक्ति अपने सात्विक विचारों के साथ किसी विकलांग व्यक्ति की मदद करने के लिए आगे बढ़ता है, तभी वो विकलांग व्यक्ति “कब तक?” कहकर उसे रोक देता है। इस परिस्थिति में वो सक्षम व्यक्ति न सिर्फ़ शर्म से पानी-पानी होता है, बल्कि उसे स्वयम् पर क्रोध भी आता है कि जब उस विकलांग व्यक्ति ने मुझसे मदद माँगी ही नहीं, तो फिर मैं आगे बढ़कर गया ही क्यों? क्यों मेरी मति मर गई थी? विकलांग व्यक्ति के द्वारा कहे गये शब्द “कब तक?” से उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है। और वह स्वयम् में एक निर्णय लेता है कि वह अब कभी भी किसी विकलांग व्यक्ति की मदद के लिए आगे नहीं बढ़ेगा। यहाँ पर विकलांग व्यक्ति गलत होता है। माना कि आपको किसी की मदद की जरूरत नहीं है, लेकिन आपके जैसे कितने विकलांग हैं जिन्हें मदद की जरूरत है। आप अगर स्वयम् को स्पेशल मान रहे हैं तो मानें। किन्तु हर विकलांग व्यक्ति स्पेशल हो ज़रूरी नहीं। माना कि कुछ विकलांग व्यक्ति अपनी मेहनत से शीर्ष पर पहुँचे हैं, दुनिया में स्वयम् को प्रतिष्ठित किया है। लेकिन, वहीं पर कुछ ऐसे भी विकलांगजन हैं जो स्वयम् खाना तक नहीं खा सकते। तो आपका रूखे अंदाज़ में कहा गया “कब तक?” शब्द अन्य विकलांगजन के लिए राह का रोड़ा बनता है। उन्हें जो आसानी से किसी से मदद मिल सकती थी, अब नहीं मिलेगी। सिर्फ़ आपके रूखे व्यवहार के कारण।
नहीं, जैसे हर सामान्य व्यक्ति किसी घटना, स्थान, परिस्थिति में कभी सक्षम तो कभी अक्षम होता है, कभी सफल, कभी असफल होता है। ठीक उसी तरह आप विकलांग होकर भी एक सामान्य व्यक्ति ही हैं। तो इसलिए “कब तक?” कहकर आप मदद करने वाले व्यक्ति की भावनाओं को ठेस न पहुँचायें। जब भी कोई आपकी मदद के लिए आगे बढ़े, आप मुस्कुरा कर कहें – “जी आपका बहुत धन्यवाद! लेकिन इस काम को मैं खुद ही करना चाहता हूँ/जी मैं इसे करके देखता हूँ/जी मैं ही कोशिश करता हूँ। वरना आप तो हैं ही।”
डॉली परिहार जी बहुत अर्थपूर्ण लिखा
आप भी व्यक्ति हैं व्यक्ति विशेष नहीं जिनके लिए आप व्यक्ति विशेष है वह आपकी मदद सदैव करेंगे और इसमें आप विकलांग है अथवा नहीं इसका कोई ध्यान नहीं रखता
🙏☺️
संवेदना से परिपूर्ण, हृदय को झकझोर देने वाला अनुभवी लेख
डॉली जी, मैं आपसे पूर्णरूपेण सहमत हूँ। और हाँ, विकलांग शब्द ही उचित है।
मैं प्रत्येक विकलांग व्यक्ति की यथासंभव मदद करने को सदैव तत्पर हूँ।
आपके इस लेख से मेरी सबसे बड़ी दुविधा दूर हो गई। मेरी दुविधा की मेरे मदद मांगे बिना लोग मदद को आ जाते हो, मुझे बड़ा अखरता था, मैं यह सोचती थी कि जब मुझे सच में भी मदद की जरूरत होगी तो मैं खुद से कह दूंगी।।। हालांकि मैंने मदद करने वाले किसी भी शख्स को रूखा व्यवहार नहीं दिखाया।।।। पर आज मेरी दुविधा दूर हो गई, आगे से कोई मदद को आयेगा तो मैं असहज महसूस नहीं करूंगी।।☺️❤️
मेरी बेटी ने अद्भुत लिखा है।
सहायता जैसे सामान्य शब्द पर इस तरह भी सोचा व लिखा जा सकता है ?
संवेदना व प्रेम के सागर परमपिता परमात्मा तुम्हारी लेखनी में और अधिक संवेदना व प्रेम भरें, यही कामना है।
शुभाशीष 💐💐💐
धन्यवाद दादू 🙏
आपने विकलांग और सामान्य व्यक्ति दोनों के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए लिखा, बहुत अच्छा लगा।
इतनी जटिल मनोदशा को इतने सुन्दर और सटीक शब्दों मे व्यक्त करना बहुत कठिन कार्य है.. डॉली जी से बहुत प्रभावित हू
बहुत शुक्रिया 🙏