क्या सिर्फ़ विकलांगों के साथ भेदभाव होता है?
विकलांगता की स्थिति में किस तरह की चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसे सिर्फ़ एक विकलांग व्यक्ति ही अच्छे से समझ सकता है। बात चाहे एक्सेसिबिलटी (सुगम्यता) की हो या बुनियादी सुविधाओं की, समाज के नज़रिये की हो या अवसरों की, विकलांगजन को हर जगह साफ़ तौर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कई चीजें जो विकलांगों का हक़ हैं वह भी नहीं मिल पातीं।
उपरोक्त स्थितियों का सामना करने वाले विकलांग व्यक्ति को महसूस होता है कि कदम-कदम पर उसके साथ नाइंसाफी हो रही है और सुविधाएँ न मिलने के कारण वह अपनी काबिलियत का भी उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन, यदि हम बारीकी से देखें तो समझ में आने लगता है कि ऐसा नहीं है कि सोच-समझकर कर ख़ास तौर पर विकलांगों के साथ भेदभाव किया जाता है, बल्कि समाज की संरचना ही इंक्लूसिव या समावेशी नहीं है और जो भी हाशिए पर हैं उसके साथ जाने-अनजाने भेदभाव किया जाता है।
यदि समाज इंक्लूसिव न हो तो जो भी थोड़ा कमजोर है, उपलब्धियों की दौड़ में चुनौतियों का सामना कर रहा है, मुख्यधारा के लोगों से अलग है या जिसके पास साधन और शक्ति का अभाव है उसे हाशिए पर धकेल दिया जाता है। यह साफ़ है कि विकलांगजन अक्सर कमज़ोर स्थिति में होते हैं इसलिए उनके साथ भेदभाव और नाइंसाफ़ी की जाती है। लेकिन जो भी समूह कमजोर स्थिति में हो, मुख्यधारा से कटे हुए हों, उनके साथ भी भेदभाव और नाइंसाफी होती है, फिर चाहे वह एल.जी.बी.टी. समुदाय हो, सेक्स वर्कर हो, फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे हों, बाल श्रमिक हों या इसी तरह का कोई और वल्नरेबल (कमजोर) समूह हो, उसे भेदभाव का सामना करना ही पड़ता है।
इस बात को उठाने का आशय यह बिलकुल भी नहीं है कि विकलांगों की ख़ास समस्याओं से ध्यान हटा कर इस मुद्दे को हल्का किया जाए — बल्कि मेरा उद्देश्य इस बात की ओर ध्यान दिलाना है कि कोई भी समाज किसी एक ख़ास समुदाय के लिए इंक्लूसिव नहीं हो सकता, या तो वह हर एक ऐसे समुदाय को साथ ले कर चलने का प्रयास करेगा जो किसी भी कारण से भेदभाव या नाइंसाफी का शिकार हो रहा है या फिर वह हाशिए पर धकेल दिए गए हर समुदाय के प्रति उदासीन ही बना रहेगा।
दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसा संभव नहीं है कि कोई समाज विकलांगों के लिए तो इंक्लूसिव हो जाए लेकिन दूसरे वंचित समुदायों के प्रति भेदभावपूर्ण बना रहे। जब हम इंक्लूसिव समाज की बात करते हैं तो हमें यह समझना होगा कि हम जोरदार ढंग से अपनी आवाज़ उठाएँ, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें, जागरूकता फैलाने में जुटें, लेकिन साथ ही इस बात को भी अपने मन में साफ़ तौर पर समझें कि हर वंचित समुदाय के प्रति हमें इंक्लूसिव होना होगा और यदि ज़रूरत पड़े तो उनके भी पक्ष में आवाज़ भी उठानी पड़ेगी।
भेदभाव के साथ कभी-कभी एक अजीब जटिलता भी जुड़ जाती है, वह यह है कि जो व्यक्ति ख़ुद भेदभाव का सामना करना कर रहा होता है वह भी किसी अन्य वंचित समुदाय के साथ भेदभावपूर्ण रवैया रखता है। इसलिए विकलांगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए हमें इस बात के लिए भी पूरी तरह सतर्क रहना होगा कि कहीं हम ख़ुद तो किसी अन्य वंचित समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण नज़रिया नहीं रखते। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम भी किसी और के साथ भेदभाव में शामिल हों, या नाइंसाफी का सामना कर रहे किसी समुदाय के प्रति हमारा नज़रिया भी ठीक न हो।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकलांगों की समस्याएँ सबसे अलग हैं; शारीरिक चुनौतियों, समाज की दोषपूर्ण सोच और ज़िम्मेदार एजेन्सी में संवेदनशीलता के अभाव के कारण उनको जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है वह औरों से बिलकुल अलग होती है। लेकिन समझने की बात यह है कि हमारी कोशिश एक इंक्लूसिव समाज बनाने की होनी चाहिए जिसमें हर एक के लिए सम्मान हो, सुविधाएँ हों और जो वंचित हैं उनके लिए उनकी ज़रूरतों के अनुसार विशेष सुविधाएँ हों। इन्हीं में विकलांगजन भी शामिल हों और उनके जो अधिकार हों वे उनको दिए जाएँ और हर वह विशेष सुविधा उपलब्ध करायी जाए जो उनकी प्रतिभा को निखारने और जीवन को यथासंभव भरपूर तरीके से जीने के लिए ज़रूरी हों। आइए, हम सब मिलजुलकर एक इंक्लूसिव समाज के लिए प्रयास में अपना-अपना योगदान दें।
बहुत प्रेममयी ….
बहुत सुंदर।