क्या पुष्पा को अपने अफसर से विवाद करना चाहिए?

woman wheelchair user in office

यह घटना कुछ दिन पुरानी है। पूरे एक सप्ताह के बाद पुष्पा ऑफिस आयी थी।

पुष्पा एक बड़ी ही हँसमुख, चंचल, मिलनसार और मेहनती लड़की है लेकिन उसके साथ एक समस्या है कि वह विकलांग है। उसे एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण उसकी हड्डियाँ और माँसपेशियाँ समय के साथ धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं। उसे लम्बे समय तक बैठने में परेशानी होती है। फिर भी उसे जो भी काम दिया जाता है वह उसे बड़े अच्छे तरीके से और अपनी सहूलियत से करती है। उसे काम करने में कोई दिक्कत नहीं है, दिक्कत है केवल लम्बे समय तक बैठने में। उसकी काम करने की गति धीमी ज़रूर है लेकिन काम एकदम शानदार रहता है।

जब पुष्पा अपनी व्हीलचेयर लेकर मेरे रूम में आयी तो वह थोड़ी दुखी थी, एक नजर में इतना तो समझ गया था। लेकिन मैं थोड़ा व्यस्त था तो बात की गंभीरता को नहीं समझ पाया। कुछ समय बाद वह फिर मेरे रूम में आकर एक कोने में आकर बैठ गई। ऐसा शायद पहले बार हुआ होगा कि पुष्पा मेरे रूम में बिना किसी काम के दो बार आयी हो। इस बार मैंने बात को गंभीरता से लिया और अपना काम एक तरफ सरका दिया। उसके पास जाकर उससे उसका हालचाल पूछा। पहले तो वह कुछ बताने से कतराती रही फिर मेरे बहुत ज़ोर देने के बाद उसने सारी घटना को मेरे सामने बताना शुरू किया।

पुष्पा: “जब मैं ऑफिस आयी तो जिस टेबल पर मैं काम करती थी उस पर कंचन काम कर रहा था। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्या हुआ कि अचानक बिना मुझे बताये मेरी टेबल से मुझे हटा कर किसी दूसरे कर्मचारी को काम करने के लिए बैठा दिया गया। जब मैं अपने सीनियर अधिकारी के पास इस समस्या को लेकर गई तो उन्होने मुझे दूसरे रूम में बैठ कर काम करने के लिए बोल दिया। और तुम तो जानते ही हो उस रूम में कोई आता-जाता नहीं है, बिल्डिंग के कोने का आखिरी वाला वह रूम जहाँ लोग बस बगल से बने बाथरूम में पेशाब करने आते है।”

मैं: “उस रूम में बैठने के लिए बोला है तुमको?!”

पुष्पा: “हाँ”

मैं: “वो तो बहुत दूर और एकांत में है। एक विकलांग व्यक्ति को इस तरह सबसे अलग कर देने का इन लोगो का क्या औचित्य हो सकता है? और ये विकलांगजन के अधिकारों के खिलाफ़ भी है। विकलांजन को काम के स्थान पर ऐसा माहौल मिलना चाहिए जिससे उनकी क्षमता का पूरा उपयोग किया जा सके। तुमने किसी से इस बारे में बात नहीं की?”

पुष्पा: “मैंने अपने एक सर से और कुछ दोस्तों से बात की है तो उनका कहना है कि पुष्पा तुम जिस पद पर हो उसके हिसाब से तुम्हारे पास सीनियर की बात मानने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इससे अच्छा है तुम अपनी कौशल क्षमता को और बढ़ाओ और वहाँ से निकलो। उनका कहना है कि तुम इस घटना में भी कुछ सकारात्मक ढूंढ़ने का प्रयास करो। थोड़ी कूटनीति सीखो, अपनी बात इस तरह रखो कि अफसर को बुरा भी न लगे और तुम्हारा काम भी हो जाये। फिर उन्होंने आगे कहा तुम इस पद के लिए नहीं बनी हो ये घटना एक सुई कि तरह है जो समय समय पर तुमको चुभती रहेगी और तुमको याद दिलाती रहेगी कि इस नौकरी से निकलकर कुछ अच्छा और बड़ा करो। उन्होंने कुछ उदाहरण दिये जिसे एक विकलांग व्यक्ति आसानी से कर सकता है।”

मैं: “और तुम्हारे दोस्तों ने क्या कहा?”

पुष्पा: “एक दोस्त बोला ये सब ऑफिस में चलता रहता है। एक बोला सहन करने से तुम और मजबूत बनोगे। सहनशीलता से आदमी कमजोर नहीं मजबूत बनता है। दूसरा दोस्त बोला अगर तुमने इनके खिलाफ आवाज़ उठाई तो ये अफसर लोग बहुत परेशान करेंगे। अभी तुम्हारी नौकरी चल रही खर्चा-पानी निकल रहा है, कहाँ आजकल विकलांगजन को नौकरी मिल रही है? तुम चुपचाप शांत होकर अपना काम करती रहो। ज़्यादा हीरोइन बनने की कोशिश मत करो। एक बोला तुमको काम से मतलब होना चाहिए चाहे इस रूम में करो या फिर किसी दूसरे रूम में। एक दोस्त बोलता है कि तुम पहले से ही कितनी बीमार हो अपनी शारीरिक परिस्थिति देखी है जो लड़ने चली हो, और परेशान की जाओगी और अंत में कुछ नहीं मिलेगा। एक बोला कि कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी वजह से तुम्हारे परिवार को परेशानियाँ झेलनी पड़ जाएँ।”

मैं: “और कुछ कहना है क्या, जो तुम कहना चाहती हो?”

पुष्पा: “मुझे उस अधिकारी ने मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है। मैं उन लम्हों को नहीं भूल पा रही हूँ, रह-रह कर वो पल मेरे आँखों के सामने आ जाते हैं। सबके सामने मेरी विकलांगता का मज़ाक़ बनाया गया। अगर मैं स्वस्थ होती तो इनकी इतनी हिम्मत होती? और मैं इतना जानती हूँ अगर मैं सही हूँ तो किसी से डरने वाली नहीं हूँ।”

मैं: “सबको सुनकर क्या सोचा?”

पुष्पा: “मुझे सबकी बातें बिल्कुल सही लगी लेकिन मैं अंदर ही अंदर घुटी जा रही हूँ। मेरे अंदर कई सारी भावनाएँ एक साथ चल रही हैं मुझे डर भी लग रहा है कि मेरे एक निर्णय से कुछ गलत हो गया तो? लेकिन साथ में लग रहा कि ऐसा मेरे साथ क्यों किया गया? और कितने लोगो के साथ ऐसा ही हो रहा होगा? जबकि नियम में ये है कि विकलांग व्यक्ति को उसी काम पर रखा जाये जहाँ वो अपना शत-प्रतिशत दे सके। उसे स्थानांतरण नीति से दूर रखा जाये। और इन्होने इन सब नियमों का उलंघन करते हुए विकलांग नीतियों का हनन किया है।”

मैं: “अभी तुम्हारे दिमाग़ मैं क्या चल रहा है?”

पुष्पा: “मैं अपने लिए नहीं बल्कि उन तमाम विकलांगजन के लिए लड़ना चाहती हूँ जो इस तरह की मानसिकता का शिकार हो रहे है? मुझे तो काम करते हुए बहुत समय हो गया है, मेरे पास तुम जैसे अच्छे दोस्त है, सर जैसे गुरु है, मेरे परिवार वाले हैं आसानी से इस नौकरी के साथ आगे बढ़ सकती हूँ लेकिन मैं तो उन विकलांग भाइयों और बहनो के बारे मैं सोच रही हूँ जिनका कोई नहीं है जो हर समय इस तरह कि मानसिक यातना झेल रहे है। उनके लिए लड़ना चाहती हूँ और लड़ना क्या उनकी बात अच्छे से एक ऐसे मंच पर रखना चाहूँगी जहाँ इंसाफ मिले, हमारी बात को सुना जाये। अब चाहे जीत हो या हार, चाहे कितनी ही यातनायें झेलने पड़े, झेलूंगी लेकिन लड़ूँगी। अगर अभी नहीं बोली तो जीवन भर अपने-आप को माफ़ नहीं कर पाउगी। और यह मेरा अंतिम निर्णय है।”

मैं: “मैं पुष्पा को बस देखे और सुने जा रहा था। मैं अंदर ही अंदर सोच रहा था ये वही पुष्पा है जो कभी ऑफिस रूम की दीवार पर चिपकी छिपकली को देखकर डर जाया करती थी और आज अपने ऑफिस के एक बड़े अधिकारी से भिड़ने को तैयार है वो भी अपने लिए नहीं बल्कि उन तमाम विकलांगजन के लिए जो कहीं किसी दूर शहर के किसी दूर से ऑफिस में इसी तरह कि मानसिक परेशानी को झेल रहे होंगे। मुझे ये नहीं पता पुष्पा सही कर रही है या फिर ग़लत। मैं बस इतना जनता हूँ कि आज पुष्पा बड़ी हो गई है। मेरी नज़र में पुष्पा की इज़्ज़त और बढ़ गई है। आज जब इस दुनिया में लोग इतने मतलबी होते जा रहे हैं – पुष्पा इन सबसे ऊपर उठकर अपने लिए और अपने जैसे उन सभी विकलांगजन कर लिए एक मिसाल कायम करने जा रही है।”

पुष्पा: “कहाँ खो गए?”

मैं: “कहीं नहीं”

पुष्पा: “ठीक है फिर मैं जा रही हूँ और निर्णय होने के बाद मिलते हैं।”

मैं: “अपना ख्याल रखना और मेरे लायक़ कोई मदद हो तो बताना।”

पुष्पा सर को हाँ में हिलाती हुई अपनी व्हीलचेयर लेकर निकल जाती है। मैं उसे हाथो से व्हीलचेयर को खींचते हुए दूर जाते हुए देखता रहा।

मुझे नहीं पता उसके इस निर्णय से उसकी नौकरी पर, उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा? उसको और प्रताड़ित किया जायेगा या नहीं?

मैं कुछ सवाल आप सबके लिए छोड़ना चाहता हूँ।

  1. क्या पुष्पा को अपने अफसर से विवाद करना चाहिए या फिर नहीं? यहाँ अफसर की जगह कोई भी हो सकता है, आपका पड़ोसी, आपका कोई रिश्तेदार, आपका दोस्त, आपकी पत्नी, आपका पति, कोई भी जो आपकी विकलांगता का मज़ाक उड़ाये, उसे छोटा समझे, उसकी स्वतंत्रता को छीने, उसे प्रताड़ित करे।
  2. क्या उसे चुपचाप उस कोने वाले रूम मे बैठकर काम करते रहना चाहिए?
  3. वह चाहती तो आराम से अकेले उस रूम में बैठकर अपना काम करती रहती लेकिन उसने ऐसा क्यों नहीं किया?
  4. क्या बाकी कर्मचारी उसका इस घटना में सहयोग करेंगे?
  5. इससे उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा?
  6. अगर आप पुष्पा की जगह होते तो क्या करते?
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नूपुर शर्मा
नूपुर शर्मा
3 months ago

आपका आलेख बहुत प्रभावी और मन को झकझोर देने वाला है। आपके आलेख की मुख्य पात्र ‘पुष्पा’ एक वास्तविक चरित्र है या काल्पनिक इस बात से कोई फर्क नही पड़ता, फर्क पड़ता है तो उसकी परिस्थिति से।
इस परिस्थिति से हर विकलांगजन को कभी-न-कभी ज़रूर जूझना पड़ा होगा।

यह आलेख एक सवाल है, और आग़ाज़ है, हर उस विकलांगजन के लिए जो ख़ामोशी से इस तरह की परिस्थितियों को झेल रहे हैं।

आपने आलेख के अन्त में कुछ सवाल किए हैं, जिनके जवाब मेरे नज़रिए से कुछ इस प्रकार है–

1) विवाद किसी समस्या का समाधान नहीं हैं, पुष्पा को विवाद करने की बजाय सोच-समझकर पूरी सूझ-बूझ के साथ अपने अधिकार और सम्मान की लड़ाई लड़नी चाहिए। इसमें उसे अपने सहयोगियों का साथ लेकर अपनी आवाज को मजबूत बनाना चाहिए।

2) नहीं, हरगिज़ नहीं। पुष्पा को सूचित किये बग़ैर और उसकी अनुमति के बिना, उसे उसकी कार्य टेबल से उसकी विकलांगता को आधार बनाकर दूसरी जगह स्थानांतरित कर देना ग़लत है।

3) क्योंकि, बात सिर्फ़ आराम से काम करने भर की नहीं है, बात है विकलांगजन के सम्मान की, उनके अधिकारों की।

4) जो लोग संवेदनशील होंगे और सही-ग़लत में भेद करना जानते होंगे, वें निश्चित ही पुष्पा का साथ देंगे।

5) अपनी आवाज़ को दबा लेने पर पुष्पा पल-पल मानसिक पीड़ा को सहन करेगी; लेकिन अपने अधिकारों के लिए उठाई गई उसकी आवाज़ ही उसका सबल बनेगी। बस ज़रूरत होगी सोच-समझकर उठाए गए कदम की। तो, निश्चित ही यह फैसला पुष्पा के शरीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।

6) अगर मैं, पुष्पा की जगह होती तो मैं भी उसी की तरह अपने हक़ और सम्मान की लड़ाई लड़ती। क्योंकि, यह सिर्फ़ किसी एक विकलांगजन की लड़ाई नहीं है। यह हर उस विकलांगजन की लड़ाई है, जिसके अधिकारों और सम्मान का हनन सिर्फ़ इसलिए हो जाता है कि वह “विकलांग” है।

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