लेखक: अग्न • गुजरात के रहने वाले अग्न पोलियो से प्रभावित हैं।
==
आइये आज कुछ सवाल ख़ुद से पूछते हैं। ख़ुद में झाँकने का प्रयास करते हैं। कौन हैं हम? कहाँ से आये हैं? वैज्ञानिको की सुने तो पृथ्वी पर अब तक की सबसे अधिक विकसित प्रजाति हैं हम। सबसे ज़्यादा बुद्धि, सबसे ज़्यादा समझ रखने वाली प्रजाति जिसे मनुष्य अथवा मानव की संज्ञा दी जाती है। परन्तु क्या हम सच में मानव हैं? या विकास (Evolution) की प्रक्रिया में हम किसी अलग ही प्रजाति में विकसित हो गए हैं? ऐसा मुझे इसलिये लगता है क्योंकि अब मानवों में मानवता तो दिखती ही नहीं है।
आज के समय में मानवता धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? हम सब मानव नहीं तो क्या हैं? आधुनिकता के पीछे भागते हुए हम अपने मूल स्वरुप, अपने मूल उद्देश्य ही विस्मृत करते जा रहे हैं। आपने देखा होगा कि यदि किसी कुत्ते को मार के भगाओ तो गली के सभी कुत्ते उसके समर्थन में भोंकने लगते हैं। यदि किसी शहर में आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए नगर निगम की गाड़ी आती है तो सभी कुत्ते उन पर भोंकते हैं अथवा झुण्ड बना कर मुकाबला करते हैं। पशुओं तक में ऐसा संगठन दिखाई देना बड़ी आम बात है।
हम लोग अपनी मानवता की मिसाल देते नहीं थकते; लेकिन यदि हमारे ही सामने कोई घरेलु हिंसा हो रही होगी वहाँ हम दर्शक बन कर तमाशा देखते हुए मिल जायेंगे। हम ही किसी दुर्घटना के स्थान पर यह बोलते हुए पाए जाते हैं की बहुत बुरा हादसा है – परन्तु मदद करने के लिए अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाते। कोई विरला ही होता है जो मदद का हाथ बढ़ाता है।
आज हम मनुष्य एक-दूसरे से इतने दूर हो गए हैं कि बहुत कम ही लोग होंगे जो अपनी कॉलोनी में सभी लोगों को नाम या व्यवसाय से जानते होंगे, हमनें अपने बुज़ुर्गों से सुना है और पुरानी फिल्मो में भी देखा है कि पहले के समय में किसी का पता पूछने के लिए मकान नम्बर, रोड का नाम, या कॉलोनी का नाम नहीं अपितु व्यक्ति का नाम ही काफ़ी था। बहुत हुआ तो उसके पिता का नाम। गाँव का डाकिया किसी समय पूरे गाँव के लोगों को नाम से जानता था, और आज हम अपने डाकिये को भी नहीं जानते।
इसी तथाकथित विकसित मानव समाज से हम ये अपेक्षा करते हैं कि ये विकलांगजन के साथ समानता का व्यवहार करेंगे, जो विकलांगता को गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। आपने कई स्थानों पर देखा होगा कि यदि कोई किसी अनजान व्यक्ति से ग़लती से टकरा जाये तो सामने वाला गाली के रूप में कहता है “अँधा है क्या?” या किसी साधारण से कार्य को करने में ग़लती हो जाये तब सामने वाला गाली के रूप में कहता है “पागल है क्या?”
मैं आज मानसिक रूप से विकलांग एक महिला से मिला जिसने मुझमें फिर से मानवता जगाई है। यह महिला घर अथवा समाज से बहार ही अपना जीवन बिता रही है। मुझे आस-पास के लोगों से पता चला है कि यह महिला यहीं सड़को पर घूमती रहती है, कभी किसी को गालियाँ देते हुए तमाशा करती है तो कभी किसी राह चलते वाहन के सामने जा कर उसे रोक लेती है। कुछ समय पूर्व इस महिला की मानसिक हालत का फ़ायदा उठा कर कुछ मनचलों ने इसके साथ बलात्कार जैसा जघन्य अपराध भी किया था, जिसके कारण यह महिला गर्भवती भी हुई थी।
मैं आम तौर पर चाय पीने के लिए शहर में ऐसे स्थानों पर जाना पसंद करता हूँ, जहाँ कुछ लोगों का समूह पहले से मौजूद हो और बातें कर रहा हो। क्योंकि किसी के साथ भी बात करने अथवा किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने से ज्ञान की कुछ बातें अवश्य जानने को मिलती हैं। कई स्थानों पर आपने ऐसे लोगों की भीड़ अवश्य देखी होगी जो चाय पीते हुए अथवा सिगरेट के कश लगाते हुए बड़ी आध्यात्मिक, राजनीतिक अथवा सामाजिक बातें करते हैं। आज भी मैं चाय पीते हुए ऐसी ही एक चर्चा में व्यस्त था कि इसी बीच इस महिला से सामना हुआ और समूह के कुछ सदस्य इसके बारे में बात करने लगे।
चर्चा शुरू ही हुई थी कि अचानक एक जवान व्यक्ति जो दोपहिया वाहन से जा रहा था, वो एक कार से टकरा कर गिर गया। और इस समूह के सभी लोग इस चर्चा में लग गए कि टकराने में ग़लती किस की थी – कार वाले की अथवा दो पहिया वाहन वाले की। परन्तु यह महिला सबसे पहले दोपहिया वाहन के पास गयी और इसने उस व्यक्ति को उठने में मदद की। बाद में भीड़ लग गयी और कोई यह पूछ रहा था कि चोट लगी की नहीं या कैसे टकराये इत्यादि।
मेरे दिल से बस एक ही आवाज निकली, जो मैंने समूह में सभी के सामने कही कि आप लोग कह रहे थे की यह महिला तो पागल है। परन्तु वो तो हम सबसे ज्यादा समझदार है। हम सब जो ख़ुद को मानसिक रूप से सक्षम मानते हैं, हमारा कर्तव्य था कि घायल व्यक्ति की मदद के लिए जाएँ, और हम यहाँ चर्चा करने में व्यस्त हो गए कि ग़लती किस की है। और जो व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं वह हमसे ज़्यादा मानवता दिखा रहा है। “क्या अब भी हम मानव हैं?” इस प्रश्न का उत्तर उनके पास तो नहीं था, क्या किसी और के पास है?
अग्न,आपने ठीक लिखा कि आजकल मानवता देखने को ही नही मिलती। मानवता का विकलांगता से कोई सम्बन्ध नही है। यह पूर्णतः व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस प्रवृति का है। एक व्यक्ति किसी को दुःख – दर्द में देख कर पसीज जाता है, वही कोई इतना कठोर हों जाता है कि उसको कुछ फर्क ही नही पड़ता।
आज की मानवता को दर्शाने की कोशिश की है बस।
आजकल की सामाजिक व्यवस्था और कमजोर होती मानवता पर शानदार लेख। आपको शुभकामनायें।
धन्यवाद भाई।
इतना बेहतरीन लेख लगा आपका Agna जी। एक के बाद एक कड़ी को ऐसे जोड़ा कि पता ही नहीं चला लेखक ने कितनी आसानी से इतनी सरल भाषा में अपने विचार व्यक्त कर दिए।
बहुत ख़ूब। 👏👌👌
धन्यवाद मैम।