क़िस्सा व्हीलचेयर से हवाई यात्रा का…

A vector image showing a person in wheelchair at the airport and an airplane taking off in the background.

कोरोना के बाद हम सबके जीवन में अनेक बदलाव आये। मेरी भी हवाई यात्राएँ बंद हो गईं — पिछले कई वर्षों से मैंने हवाई यात्रा नहीं की थी। जब हाल में पुणे से दिल्ली हवाई यात्रा का मौका मिला तो मैंने उसे तुरंत लपक लिया। यात्रा का एक अलग ही आनंद होता है और इससे हमारे अनुभवों का संसार भी समृद्ध होता है।

लेकिन इस यात्रा के आनंद-रंग में भंग पड़ने की शुरुआत तब हुई जब मैंने एयर इंडिया की फ़्लाइट का टिकट बुक कराने के बाद उनकी ग्राहक सेवा से संपर्क किया ताकि अपने लिए केबिन व्हीलचेयर बुक करवा सकूँ। केबिन व्हीलचेयर का मतलब होता है कि आपको विमान में आपकी सीट तक व्हीलचेयर एसिस्टेंस दी जाती है। लेकिन एयर इंडिया के ग्राहक सेवा कर्मचारियों ने एकदम साफ़ शब्दों में मुझे बताया कि केबिन व्हीलचेयर कॉल पर बुक नहीं होती और यदि मुझे केबिन व्हीलचेयर बुक करवानी है तो एक ही तरीक़ा है कि कोई व्यक्ति उड़ान से 72 घंटे पहले उस कम्पनी के स्थानीय कार्यालय से संपर्क करे और सम्बंधित दस्तावेज प्रस्तुत करके केबिन व्हीलचेयर बुक करवाए।

यह बात सुनकर मैं हतप्रभ रह गया और ग्राहक सेवा कर्मचारी को समझाने की कोशिश की — मैंने उन्हें बताया कि मैं दूसरे शहर में दो दिन के लिए यात्रा कर रहा हूँ, वहाँ कैसे 72 घंटे पहले स्थानीय कार्यालय से सम्पर्क कर सकता हूँ। लेकिन वह बेचारा कर्मचारी भी मजबूर था, एक ही बात रटता रहा हमारी कम्पनी की पॉलिसी ही यही है मैं कुछ नहीं कर सकता। आपको किसी को भेज कर ही केबिन व्हीलचेयर बुक करवानी पड़ेगी। मैं समझ गया कि इससे कुछ नहीं हो सकता तो फिर मैंने कॉल खत्म कर दी।

मुझे याद आया कि बहुत साल पहले एयर इंडिया से फ़्लाइट टिकट बुक करवाने पर भी यही बात सामने आयी थी। लेकिन मैं उस बात को भूल चुका था और मुझे शायद यह उम्मीद थी इतने वर्षों में उन्होंने अपनी यह मूर्खतापूर्ण और अन्यायपूर्ण नीति बदल दी होगी। लेकिन मुझे पता नहीं था कि यहाँ मामला सूरज टरे, चंदा टरे के स्तर का था। मैंने सोचा थोड़ी आवाज उठायी जाए और एयर इंडिया के एक्स (ट्विटर) एकाउंट पर अपनी शिकायत का पोस्ट कर दिया लेकिन यहाँ भी उन्होंने रटा-रटाया वही जवाब दोहरा दिया कि हमारी यही पॉलिसी है और इसमें कुछ नहीं हो सकता।

Tweet exchange between Sanjiv Sharma and Air India.

मैं समझ चुका था कि कुछ नहीं होने वाला तो मैंने अपने एक मित्र से संपर्क किया जो उसी शहर में रहते हैं जहाँ से फ़्लाइट पकड़नी थी और उनसे अनुरोध किया। उन्होंने उड़ान से 72 घंटे पहले जाकर मेरे लिए केबिन व्हीलचेयर बुक करवायी और मैंने राहत की साँस ली। लेकिन मुझे पता नहीं था कि पिक्चर अभी बाकी थी!!

फिर वह दिन आ गया जब मुझे फ़्लाइट पकड़नी थी। एयरपोर्ट पहुँचने पर मुझे व्हीलचेयर सहायता तो मिल गयी और मैं अंदर पहुँच गया। एयरलाइन की केबिन व्हीलचेयर पर मैं शिफ़्ट भी हो गया और बोर्डिंग पास बन गया। फिर वह मुझे एक जगह ले गए जहाँ सामान की पैकिंग हो रही थी। वहाँ मेरी अपनी वाली व्हीलचेयर की पैकिंग कर दी गयी और मुझे रु. 600 का बिल थमा दिया गया। मैंने कहा कि यह क्या है? आज तक किसी एयरलाइन ने व्हीलचेयर पैकिंग के पैसे नहीं लिए। जो हेल्पर मेरे साथ था उसने रटी-रटायी बात दोहरा दी कि एयरलाइन की पॉलिसी यही है और आपको व्हीलचेयर पैकिंग के पैसे देने पड़ेंगे। मैंने पैसों का भुगतान किया उसके बाद आगे की कार्यवाई हुई।

इस यात्रा से जो सबक सीखे वह मैं साझा करना चाहता हूं। यदि आपको कैबिन व्हीलचेयर की जरूरत होती है तो निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखें:-

1) फ़्लाइट टिकट बुक कराने से पहले एयरलाइन के ग्राहक सेवा पर फ़ोन करके यह पुष्टि कर लें कि उनकी पॉलिसी में फ़ोन पर कैबिन व्हीलचेयर बुक करने की सुविधा है या नहीं। यदि यह सुविधा न हो तो आप किसी और एयरलाइन से बुक करवाएं जो यह सुविधा देती हो।

2) टिकट बुक कराने से पहले यह भी पुष्टि कर लें कि आपकी अपनी व्हीलचेयर पैक करने के लिए आपको भुगतान तो नहीं करना पड़ेगा क्योंकि लगभग सभी एयरलाइन यह सुविधा निशुल्क देती हैं, सिर्फ एयर इंडिया को छोड़कर।

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Himanshu Singh
Himanshu Singh
2 months ago

हाल ही में मैंने बहुत से वीडियो देखे व्हीलचेयर के द्वारा हवाई यात्रा का….
मैं काफी सकरात्मक था कि भारत के बसों और ट्रेन से तो काफी अच्छे हवाई यात्रा.. लेकिन यह भी एक भ्रम मात्र निकला

Vivek Rastogi
Vivek Rastogi
2 months ago

हवाई यात्रा अब हवा हवाई ही रह गई हैं, ये लोग इंसान को इंसान समझ रहे हैं, यही बड़ी बात है।

Mukesh Khare
Mukesh Khare
2 months ago

ऐसी ही नियम रेलवे द्वारा भी जारी किए है। रेलवे के ऑनलाइन पोर्टल से कंसेशन प्राप्त करने के लिए एक आई डी कार्ड जारी होता है। यह कार्ड स्थाई विकलांगता वाले साथियों के लिए डॉक्टर द्वारा एक बार जारी प्रमाण पत्र के आधार पर बनाया जाता है।
में अपना आई डी कार्ड जो स्थाई विकलांगता के आधार पर जारी किया था को विगत वर्ष रिनिवल करवाने गया तो मुझे बोला गया की आपको हमारे नए फॉर्म पर डॉक्टर से विकलांगता का प्रमाण पत्र लाना होगा तब ही आपका आई डी कार्ड बन पाएगा। जबकि मेरी विकलांगता का प्रमाण पत्र पूर्व से ही स्थाई विकलांगता का है।
मैने सभी जगह शिकायत की भोपाल drm से लेकर रेलवे बोर्ड तक अनुरोध किया भारत शासन के जन शिकायत पोर्टल पर शिकायत करी परन्तु वही समाधान दिया गया की हमारी पॉलिसी में परिवर्तन हो गया है । यह संभव नहीं है।
जब शासन के विभाग हमारी सुध नहीं ले रहे तो प्राइवेट कंपनी से क्या ही उम्मीद की जा सकती है।

Smita Shree
Smita Shree
2 months ago

हद दर्जे की असंवेदनशीलता से जूझ रहीं हैं हमारी संस्थाएं आज इस दौर में भी । क्या फायदा है फिर यह जाप करने का कि हम विकसित हो रहे हैं ?

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