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किसकी “क्षमता का आकलन”? मेरी या ख़ुद की?

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नूपुर शर्मा
नूपुर शर्मा | 23 फ़रवरी 2024 (Last update: 23 फ़रवरी 2024)

हरियाणा के पानीपत जिले की रहने वाली नूपुर शर्मा एक लेखिका हैं। वे पोलियो से प्रभावित हैं और व्हीलचेयर प्रयोग करती हैं।

कुछ दिन पहले की बात है मुझे मेरे किसी डॉक्युमेंट संबंधित काम के लिए एक जन सेवा केंद्र (CSC Center) पर जाना पड़ा। डॉक्युमेंट सम्बन्धित व अन्य फॉर्म सम्बन्धित कामों के लिए मैं अधिकतर इस जन सेवा केंद्र पर ही जाती हूँ। मेरे इस निश्चित जन सेवा केंद्र पर जाने की दो अहम वजह हैं- पहली वजह यह कि यह केंद्र-विशेष मेरे घर के नज़दीक है और दूसरी वजह- यदि कभी किसी कारणवश मुझे केंद्र के अंदर जाना पड़े तो किसी के थोड़े-से सहयोग से मैं आसानी से केंद्र के अंदर जा सकती हूँ।

आमतौर पर मैं अपनी ट्राईसाईकिल से केंद्र तक जाती हूँ और इसके बाहर रुक कर ही अपने आवश्यक काम करा लेती हूँ। मुझे किसी के सहयोग की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती; लेकिन इस बार मुझे एक डॉक्युमेंट बनवाने के लिए फोटो खींचवानी थी, जिसके लिए मुझे केंद्र के अंदर जाना ही पड़ता।

चूँकि ट्राईसाईकिल से मैं केंद्र के अन्दर नहीं जा सकती थी, इसलिए मैंने व्हीलचेयर से जाने का सोचा। व्हीलचेयर से जाने और उसको केंद्र के अन्दर करने के लिए इस बार मुझे किसी के सहयोग की ज़रूरत थी। अत: मैंने कुछ परिचितों से साथ चलने के लिए आग्रह किया; लेकिन अपनी व्यस्तता के चलते उस समय कोई भी मेरे साथ नहीं चल सका।

अत: मैंने व्हीलचेयर की बजाय ट्राईसाईकिल से ही जाने का फैसला किया। साथ ही जाने से पहले ख़ुद से यह प्रश्न भी किया कि ‘क्या मैं ख़ुद को अपने-आप ट्राईसाईकिल से केंद्र के अन्दर स्थानान्तरित कर पाऊँगी…?’ मेरा उत्तर था… हाँ! क्योंकि मैं घर पर ख़ुद को व्हीलचेयर से ट्राईसाईकिल पर और ट्राईसाईकिल से व्हीलचेयर पर आसानी से स्थानान्तरित कर लेती हूँ।

अपनी “क्षमता का आकलन” कर लेने के पश्चात मुझे विश्वास था कि केंद्र पर भी मैं ख़ुद को स्थानांतरित कर लूँगी। यदि वहाँ किसी प्रकार के सहयोग की ज़रूरत थी भी तो बस इतनी कि स्थानांतरित होने के लिए मुझे कोई स्टूल या कुर्सी पकड़ा दी जाए।

मुझे पूरी उम्मीद थी कि इतना-सा सहयोग तो कोई भी कर देगा। केंद्र वाले भईया भी। इसी उम्मीद के साथ मैं केंद्र पर जा पहुँची। मैं वहाँ केंद्र के प्रवेश-द्वार से सटाकर ट्राईसाईकिल लगा ही रही थी ताकि ख़ुद को अंदर की ओर किसी स्टूल या कुर्सी पर स्थानांतरित कर सकूँ; लेकिन तभी मुझे अकेली आई देखकर केंद्र वाले भईया ने तो सवालों की झड़ी ही लगा दी।

  • अकेली क्यों आई हो?
  • किसी को साथ क्यों नहीं लाई?
  • अब अंदर कैसे आओगी?
  • व्हीलचेयर पर क्यों नहीं आई?

जैसे ही उन्होनें अपने सवालों को विराम दिया, मैंने उत्तर देते हुए अपना पक्ष रखा कि कोई साथ आने के लिए उपलब्ध नहीं था, इसलिए अकेली आना पड़ा और रास्ते में स्पीड-ब्रेकर होने के कारण व्हीलचेयर पर नहीं आ सकती थी। रही बात केंद्र के अंदर स्थानांतरित होने की तो आप दरवाजें के पास कुर्सी या स्टूल रख दीजिये, मैं आसानी से स्थानांतरित हो जाऊँगी; लेकिन उन्हें मेरे अंतिम कथन पर कतई विश्वास नहीं हुआ।

मेरे बार-बार विश्वास दिलाने के बावजूद भी उन्हें मेरी इस क्षमता पर संदेह था। यह संदेह उनके चेहरे और बातों से साफ झलक रहा था। उन्होनें मेरे डॉक्यूमेंट सम्बन्धित प्रक्रिया को घर पर आकर पूरी करने का आश्वासन देते हुए मुझे घर वापस जाने को बोल दिया।

मैं समझ गई थी कि वे मेरी “क्षमता का आकलन” कर रहे थे। उनके अनुसार मैं ख़ुद से स्थानांतरित नहीं हो सकती थी और इस कार्य के लिए मुझे किसी की ‘अधिक सहायता’ की ज़रूरत पड़ती और इस ‘अधिक सहायता’ को देने के लिए वे भईया तैयार नहीं लग रहे थे। इसीलिए वे मुझे घर वापस जाने के लिए बोल रहे थे।

मैं मन में सवाल कर रही थी कि वे किसकी “क्षमता का आकलन” कर रहे थे, मेरी या ख़ुद की…? उस परिस्थिति में वास्तव में अक्षम मैं थी या सहायता करने के लिए तैयार न हो पाने के कारण वे ख़ुद…? ज़ाहिर है उनके अनुसार तो मैं ही अक्षम रही होंगी।

यदि वास्तविकता में मैं ही अक्षम थी तो भईया मेरी मदद कर सकते थे, न कि मुझे घर वापस जाने के लिए बोलते और यदि मदद कर पाने में वे ख़ुद अक्षम थे तो क्या उन्हें अपनी इस अक्षमता को स्वीकार नहीं करना चाहिए था। बजाय इसके कि मेरी क्षमता पर ही सवालिया-निशान (?) लगा दें।

ख़ैर जाने दीजिये, अधिकांश गैर-विकलांगजन कहाँ किसी विकलांगजन के समक्ष अपनी अक्षमता स्वीकार करते हैं। वे तो अपनी अक्षमताओं की पोटली बाँधकर उसका सारा बोझ भी विकलांगजन के कंधों पर ही डाल देते हैं और फिर क्षमताओं के सभी पक्षों पर विकलांगजन को आँकते हुए उसे पूर्णरूपेण अक्षम मान लेते हैं।

यह सब सोचकर मुझे गुस्सा और हँसी दोनों आ रही थी कि कितनी आसानी से लोग किसी विकलांग व्यक्ति की “क्षमता का आकलन” करने का अधिकार अपने हाथों में ले लेते हैं। एक विकलांग व्यक्ति को ही क्यों जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी क्षमता साबित करने के लिए जद्द-ओ-ज़हद करनी पड़ती है? क्या सिर्फ़ इसलिए कि उनकी विकलांगता दिखाई दे रही है?

वहीं दूसरी ओर किसी गैर-विकलांग व्यक्ति को देखकर कोई भी उसकी क्षमता पर कोई सवालिया-निशान (?) नहीं लगाता, चाहे उसकी सोच, उसका नज़रिया ही विकलांग क्यों न हो; लेकिन कोई भी उसकी “क्षमता का आकलन” करने का अधिकार अपने हाथों में नहीं लेता। यह उसका अपना व्यक्तिगत अधिकार होता है; लेकिन विकलांग व्यक्ति के अधिकार का क्या…?

ख़ैर छोड़िए, तभी केंद्र पर मेरी एक परिचित आ गई और मैंने उनसे दरवाजे में एक स्टूल रखवाया और ख़ुद को उस पर स्थानांतरित करके आसानी से केंद्र के अंदर चली गई। वहाँ अपने डॉक्यूमेंट सम्बन्धित काम कराये और अपने  सवालों को सवालों के रूप में ही मन में लिए वापस घर लौट आई। अपने सवालों के उत्तर मैं अभी तक नहीं खोज पायी हूँ।

क्या आपके पास मेरे सवालों के जवाब होंगे…?

© Viklangta.com   इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। इससे विकलांगता डॉट कॉम की सहमति आवश्यक नहीं है।
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