दो दिन पहले शनिवार, 10 जून 2023 को, मैंने अपनी व्हीलचेयर के साथ पहली बार हवाई सफ़र किया। इससे पहले मैं पचासियों बार हवाई यात्रा कर चुका हूँ लेकिन अपनी ख़ुद की व्हीलचेयर के साथ हवाई यात्रा का यह पहला अवसर था। इस अवसर में विशेषकर कोई नया अनुभव प्राप्त नहीं हुआ — जो था वह पहले जैसा ही था। एयरपोर्ट जैसी महंगी और प्रोफ़ेशनली-मैनेज्ड जगह पर भी अनेक चीज़ें बेसलीक़ा और बेतरतीब दिखाई पड़ती हैं। आम भारतीय लोगों का चरित्र और हमारी तथाकथित महान संस्कृति की झलक दिखाई पड़ती है। आज हम एक नई संस्कृति वाले देश में जी रहे हैं — इस संस्कृति का हमारी सैंकड़ो या हज़ारों साल पहली की संस्कृति से कोई विशेष नाता नहीं है — आज का आम भारतीय वैसा नहीं है जैसा हम मानना और मनवाना चाहते हैं।
मैंने देखा कि एयरपोर्ट जैसी जगहों पर भी लोग उन स्थानों को घेर कर बैठते हैं जो व्हीलचेयर यूज़र्स या अन्य प्रकार की विकलांगता से प्रभावित लोगों के लिये चिन्हित होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश लोगों का दिमाग़ व्हीलचेयर-चिह्न को देखने से ही इंकार कर देता है — उन्हें व्हीलचेयर-चिह्न एक डिज़ाइन से अधिक कुछ नहीं लगता। उन्हें इसका उद्देश्य ही समझ नहीं आता।
मेरी फ़्लाइट दिल्ली से झारसुगुड़ा के लिये थी। जैसे ही बोर्डिंग शुरु हुई, लोग भीड़ की शक्ल में बोर्डिंग गेट में ऐसे घुसने की कोशिश करने लगे कि जैसे यदि दो-सेकेंड की देरी हो गई तो विमान उन्हें छोड़ कर उड़ जाएगा। पूरी धक्का-मुक्की का आलम था। बोर्डिंग गेट की चाबी पुलिस के एक जवान के पास होती है — जवान गेट खोलने के लिये आगे बढ़ने की कोशिश करता रहा लेकिन लोगों पर पहले-मैं-पहले-मैं की होड़ तारी थी। एयरलाइन की दो युवा बोर्डिंग मैनेजर लड़कियाँ भी असहाय-सी अपनी बारीक आवाज़ में लगभग चीख रही थी — “प्लीज़ मेक ए क्यू… एक लाइन बना लीजिये प्लीज़… व्हीलचेयर यूजर्स को रास्ता दीजिये प्लीज़” — लेकिन बीती संस्कृति का लिहाफ़ ओढ़कर गर्व महसूस करने वाली भारतीय भीड़ आज किसी के लिये कुछ नहीं करना चाहती। अपने निजी फ़ायदे के लिये लोग कुछ भी करेंगे।
बहरहाल भीड़ के बीच किसी तरह धक्के मारते और धक्के खाते हुए मेरे अटेंडेंट ने व्हीलचेयर को किसी तरह हवाई जहाज की सीढ़ियों के करीब पहुँचाया। अब उसे दो और लोगों की ज़रूरत थी जो व्हीलचेयर को उठा कर विमान की सीढ़ियाँ चढ़ा सकें। मेरी व्हीलचेयर को सीढ़ियों के करीब पार्क कर दिया गया — और मेरा अटेंडेंट वहीं खड़े-खड़े चिल्लाते हुए अपने सहकर्मियों को आवाज़ देने लगा कि व्हीलचेयर को चढ़ाने में मदद कर दें — लेकिन किसी के पास व्हीलचेयर के लिये समय नहीं था। नियम के अनुसार व्हीलचेयर यूज़र्स सबसे पहले विमान के अंदर जाते हैं और सबसे आखिर में उतरते हैं। लेकिन मुझे विमान में सबसे आखिर में चढ़ाया गया — सीढियों के पास लगी अन्य यात्रियों की भीड़ में से हर एक यात्री को मैंने विमान में चढ़ते देखा। हर व्यक्ति विमान में चढ़ने से पहले मुझे घूरता रहता था जैसे कि मुझे वहाँ सीढ़ियों के पास एक अजूबे के तौर पर उनके मनोरंजन के लिये बिठाया गया हो। मेरे सामने करीब 150 लोग धीरे-धीरे विमान में चढ़े। एक और सहयात्रियों की घूरती नज़रें और दूसरी ओर अटेंडेंट की चिल्ला-चिल्ला कर की जा रही मदद की विनती ने मेरे लिये माहौल ऐसा बना दिया कि मुझे ख़ुद पर ही तरस आने लगा — ऐसे में अन्य लोग अगर एक व्हीलचेयर यूज़र के लिये मन में तरस का भाव अनुभव करें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
विमान जब झारसुगुड़ा में उतरा तो वहाँ बैग कलेक्ट करने के लिये लोगों ने अफ़रा-तफ़री सी मचा दी। व्हीलचेयर चिह्नों को नज़रअंदाज़ कर सभी स्थानों को अन्य यात्रियों ने घेर लिया — मेरे और कन्वेयर बेल्ट के बीच लोगों की एक दीवार-सी थी जिसके कारण मैं अपना बैग देख नहीं पा रहा था। बैग हासिल करने में मुझे काफ़ी समय लगा।
इन सब बातों को आपसे साझा करने का उद्देश्य यह है कि हम हमारी सच्चाई को जान सकें। अतीत की महानता के गुणगान की अपेक्षा हम अपने वर्तमान को महान बनाने की ओर ध्यान दें — जिस नई संस्कृति में हम जी रहे हैं उसकी कमियों को हम पहचानें, मानें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें। उल्लेखित घटनाओं से यह भी सीखा जाना चाहिये कि नागरिक व सामाजिक शिष्टाचार अति-आवश्यक है। यदि आप स्वयं एक शिष्ट नागरिक नहीं हैं तो आपको व्यवस्था में ख़ामियाँ निकालने का भी कोई हक़ नहीं है।
पंक्तिबद्ध होकर खड़े होने का महत्त्व प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तकों में सिखाया जाता है — लेकिन मैंने अनेक उच्च-शिक्षा प्राप्त लोगों को भी इस सामान्य नियम को तोड़ते देखा है। आजकल चूंकि हर कोई अपना फ़ायदा देखने में ही रुचि रखता है तो उस भाषा में भी आपको बता देता हूँ — यदि हम कायदे में नहीं रहेंगे तो फ़ायदे में भी नहीं रहेंगे।