आयरन लंग मशीन: प्रकार, प्रयोग, आविष्कार और पोलियो के संदर्भ में महत्त्व

paul alexander inside iron lung machine

आयरन लंग एक चिकित्सीय उपकरण है जो श्वसन प्रक्रिया में सहायता प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है। जिन लोगों के फेफड़े किसी गंभीर बीमारी के कारण सक्रिय नहीं रहते या जिन लोगों की श्वसन क्षमता में कमी आ जाती है उन लोगों के लिए आयरन लंग बहुत महत्तपूर्ण उपकरण है। यह एक नकारात्मक दबाव वेंटिलेटर होता (एन.पी.वी.) है जिसकी सहायता से व्यक्ति कोई शारीरिक क्रिया किये बिना मैन्युअल या यांत्रिक रूप से साँस ले सकता है। पोलियोमाइलिटिस (पोलियो) और बोटुलिज़्म जैसी बीमारियों के प्रबंधन में आयरन लंग का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता रहा है।

आयरन लंग मशीन क्या है?

आयरन लंग एक वायुरोधी धातु का टैंक है जो सिर के अलावा पूरे शरीर को घेरता है और पूरे शरीर के चारों ओर वायु का निश्चित दबाव बनाते हुए व दबाव में निश्चित परिवर्तन करते हुए फेफड़ों को साँस लेने व छोड़ने के लिए प्रेरित करता है।

हालाँकि, आधुनिक चिकित्सा के क्षेत्र में आयरन लंग मशीन का प्रयोग अब बहुत कम या न के बराबर रह गया है क्योंकि वर्तमान में अत्याधुनिक श्वास उपचार व प्रणालियाँ विकसित हो चुकी हैं। दुनिया के अधिकांश देशो में पोलियो टीकाकरण के ज़रिये पोलियो समाप्त हो जाने के परिणामस्वरुप आयरन लंग मशीन का प्रयोग काफी हद तक बंद हो गया है। 1940 और 1950 के दशक में जब दुनिया में पोलियो का प्रकोप चरम पर था, तब आयरन लंग मशीन पोलियो से प्रभावित मरीज़ों के लिए एक वरदान की तरह थी।

आयरन लंग मशीन की बनावट व कार्य

पारंपरिक रूप से, आयरन लंग – धातु, फाइबरग्लास या लकड़ी (प्लाइवुड) से बना एक बड़ा क्षैतीज सिलेंडर होता है। यह एक विशेष प्रकार का नकारात्मक दबाव वेंटिलेटर है जो सामान्य श्वसन प्रक्रिया की तरह काम करता है। इसके अन्दर वेलवेट से बना एक चेम्बर होती है जो मरीज़ के पूरे शरीर (सिर को छोड़कर) को घेरे रहती है। आयरन लंग में गर्दन से नीचे रबर की एयरटाइट सील होती है जो चेंबर के अन्दर की वायु को बाहर निकलने से रोकती है। चेम्बर के ऊपरी हिस्से में एक ढक्कन होता है जिसे खोलकर मरीज़ का निरीक्षण आसानी से किया जा सकता है। यह ढक्कन बन्द होने पर चेम्बर एयरटाइट हो जाता है और तब मोटर संचालित पंप या बेलोस प्रणाली द्वारा वायु के दबाव में निश्चित परिवर्तन उत्पन्न किया जाता है। इससे मरीज की छाती और फेफड़ों को विस्तारित और संकुचित करने में सहायता मिलती है। आयरन लंग में मरीज़ को एक इंट्रावीनस लाइन द्वारा श्वसन की ज़रूरत के लिए ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक दवाइयों की पूर्ति की जाती है।

इस प्रकार, आयरन लंग उपकरण का डिज़ाइन मरीज़ को लगातार श्वसन की प्रक्रिया कराने में मदद करता है।

आयरन लंग मशीन के प्रयोग की विधि

आयरन लंग का प्रयोग गंभीर बीमारियों (विशेषकर पोलियो) से उत्पन्न श्वसन विकारों, श्वसन क्षमता में कमी और अन्य श्वसन सम्बन्धी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसका प्रयोग करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • आयरन लंग को खुले साफ़ कमरे में रखना चाहिए जो तेज़ धूप और प्रदूषण से मुक्त हो।
  • मरी्ज़ को इसके अन्दर लिटाते हुए ध्यान रखना चाहिए कि वह आरामदायक स्थिति में हो। मरीज़ के सिर व गर्दन को ठीक प्रकार से सपोर्ट मिलनी चाहिये।
  • यह सुनिश्चित करें कि आयरन लंग में जो श्वसन यंत्र लगाया गया है वह मरीज़ को श्वसन क्रिया कराने में सहायक हो।
  • आयरन लंग को उचित वायु दाब उत्पन्न करने के लिए सक्रिय करें ताकि मरीज को साँस लेने में मदद मिल सके।
  • इसके द्वारा कराई जा रही श्वसन क्रिया की समय-समय पर जाँच कर वायु के दबाव को मरीज़ की आवश्यकतानुसार समायोजित करते रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए आयरन लंग पर दिए गए कंट्रोल पैनल का प्रयोग करना चाहिए।
  • आयरन लंग उपकरण का प्रयोग एक प्रशिक्षित डॉक्टर या रेस्पिरेटरी थेरेपिस्ट के मार्गदर्शन में करना चाहिए।

आयरन लंग मशीन का आविष्कार

बाहरी नकारात्मक दबाव वेंटिलेशन का विचार सर्वप्रथम 1670 में, अंग्रेज़ वैज्ञानिक जॉन मेयो द्वारा दिया गया था और 1832 में पहले नकारात्मक दबाव वेंटिलेटर का वर्णन ब्रिटिश चिकित्सक जॉन डाल्ज़ियल द्वारा किया गया।

हालाँकि व्यापक रूप में आयरन लंग मशीन के जिस स्वरूप का उपयोग किया गया है, उसका सर्वप्रथम आविष्कार संयुक्त राज्य अमेरिका के निवासी और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में औद्योगिक स्वच्छता के प्रोफेसर फिलिप ड्रिंकर और लुईस अगासीज़ शॉ जूनियर द्वारा 1928 में किया गया था। शुरुआती दिनों में इसे ‘ड्रिंकर रेस्पीरेटर’ के नाम से जाना गया।

मानव पर पहला सफल प्रयोग

ड्रिंकर रेस्पीरेटर का मनुष्य पर पहला नैदानिक प्रयोग 12 अक्तूबर 1928 में, अमेरिका के बोस्टन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में एक आठ साल की लड़की पर किया गया जो पोलियो के कारण श्वसन विफलता के कारण लगभग मर ही चुकी थी; लेकिन ड्रिंकर रेस्पीरेटर में रखे जाने के एक मिनट से भी कम के समय में ही उनकी रिकवरी ने इस मशीन को लोकप्रिय बना दिया। अत: 20वीं सदी के मध्य में पोलियो के कारण होने वाली श्वसन विफलता के इलाज के लिए आयरन लंग का सर्वाधिक उपयोग किया गया।

आयरन लंग मशीन के अन्य आविष्कार

कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में डेनिश फिजियोलॉजिस्ट विभाग के प्रोफेसर ऑगस्ट क्रोघ ने 1931 में, ड्रिंकर रेस्पीरेटर से प्रभावित होकर नैदानिक उद्देश्य से एक अन्य आयरन लंग का आविष्कार किया। जिसे ‘डेनिश रेस्पिरेटर’ का नाम दिया गया। यह रेस्पिरेटर ड्रिंकर रेस्पिरेटर से कुछ भिन्न था और वज़न व लागत में भी उसकी तुलना में कम था। क्रोघ ने एक शिशु श्वास यंत्र भी बनाया था।

जॉन हेवन एमर्सन ने भी 1931 में, ड्रिंकर आयरन लंग से प्रेरित होकर लेकिन उससे बेहतर और कम खर्चीला आयरन लंग बनाया। इसका नाम ‘एमर्सन आयरन लंग’ रखा गया। इसमें एक बिस्तर होता था जो सिलेंडर के अन्दर और बाहर स्लाइड कर सकता था और इसमें पोर्टल खिडकियाँ थी जिनसे मरीज़ के अंगों, हॉट पैक इत्यादि को व्यवस्थित करने में सहायता मिलती थी। एमर्सन आयरन लंग, ड्रिंकर आयरन लंग से काफ़ी बेहतर था।

यूनाइटेड किंगडम का पहला आयरन लंग 1934 में, डॉक्टर रॉबर्ट हेंडरसन द्वारा बनाया गया। हेंडरसन आयरन लंग का सर्वप्रथम प्रयोग न्यू डियर, एबरडीनशायर के एक 10 वर्षीय लड़के (जिसे पोलियो हो गया था) की जान बचाने के लिए किया गया था।

आस्ट्रेलिया में 1937 में, एक अन्य  नकारात्मक दबाव वेंटिलेटर का आविष्कार किया गया, जिसका नाम ‘बोथ रेस्पिरेटर’ रखा गया। ऑस्ट्रेलिया में पोलियो महामारी के कारण  श्वसन पक्षाघात से लोगों की जान  बचाने के लिए भारी मात्रा में आयरन लंग मशीनों की ज़रूरत पड़ रही थी। हालाँकि, ड्रिंकर रेस्पिरेटर बेहतर काम कर रहे थे; लेकिन आकार में काफ़ी बड़े व भारी (लगभग 750 पाउंड या 340 किलोग्राम) होने और कीमत में भी अधिक महंगे होने के कारण ड्रिंकर रेस्पिरेटर आवश्यकतानुसार उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। आस्ट्रेलिया और यूरोप में ये बहुत कम संख्या में उपलब्ध थे। अत: आयरन लंग की ज़रूरत को पूरा करने के लिए ‘बोथ रेस्पिरेटर’ का निर्माण किया गया। ये ड्रिंकर रेस्पिरेटर की तुलना में वज़न और निर्माण लागत में कम थे। बोथ रेस्पिरेटर लोहे की बजाय लकड़ी (प्लाइवुड) से बने होने के कारण वज़न में हल्के थे। इन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी आसान था। हालाँकि लकड़ी के बने होने के बावजूद भी इन्हें आयरन लंग के नाम से ही जाना गया। 1950 के दशक में यूनाइटेड किंगडम में 50 ड्रिंकर रेस्पिरेटर की तुलना में 700 से अधिक बोथ आयरन लंग मौजूद थे।

वर्तमान में आयरन लंग मशीन का प्रयोग

वर्तमान समय में आयरन लंग का प्रयोग लगभग समाप्त हो चुका है। इसका मुख्य कारण पोलियो टीकाकरण कार्यक्रमों की सफलता के परिणामस्वरूप पोलियो महामारी का उन्मूलन और आधुनिक वेंटिलेटर उपकरणों का विकास होना है। साथ ही ट्रेकिअल इंट्यूबेशन और ट्रेकिओटॉमी के व्यापक उपयोग के कारण वर्तमान में आयरन लंग का प्रयोग आधुनिक चिकित्सा में समाप्त हो चुका है।

1959 में, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 1,200 लोग आयरन लंग का उपयोग कर रहे थे; वहीं 2004 में यह संख्या घटकर केवल 39 रह गई और 2014 में, तो 10 लोग ही आयरन लंग का उपयोग कर रहे थे। वर्तमान में अमेरिका के टेक्सस प्रान्त में पॉल अलेक्जेंडर नाम के एक व्यक्ति आज भी आयरन लंग का प्रयोग कर रहे हैं।

आयरन लंग के अन्य विकल्प

वर्तमान में सकारात्मक दबाव वेंटिलेशन आयरन लंग मशीन का एक अन्य बेहतर विकल्प है जो नकारात्मक दबाव प्रणालियों की तुलना में अधिक सुविधाजनक साबित हो रहा है। ये वेंटिलेटर इंट्यूबेशन के माध्यम से मरीज़ के फेफड़ों में वायु प्रवाहित करके श्वसन क्रिया कराते हैं। सकारात्मक वेंटिलेटर का एक फ़ायदा यह भी है कि ये मरीज़ों की गतिविधियों  और उनकी जाँच करने वाले चिकित्सकों की क्षमता को आयरन लंग की अपेक्षा बहुत कम प्रतिबंधित करते हैं।

सकारात्मक वेंटिलेटर का पहली बार सफल प्रयोग 1952 में, कोपेनहेगम के ब्लेगडैम्स अस्पताल में एक पोलियो से प्रभावित मरीज़ पर किया गया। इसके बाद पूरे यूरोप में जल्द ही सकारात्मक दबाव वेंटिलेशन ने आयरन लंग की जगह ले ली।

प्राकृतिक श्वसन क्रिया के सामान

सकारामक दबाव वेंटिलेशन के फायदों के बावजूद यह सत्य है कि नकारात्मक दबाव वेंटिलेशन (आयरन लंग) सामान्य श्वसन प्रक्रिया के सामान होते हैं। आयरन लंग फेफड़ों में वायु के अधिक सामान्य रूप से वितरण करने में सक्षम होते हैं। यह पोलियो के समान कई अन्य गंभीर बीमारियों जैसे सेंट्रल हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (जिसमें साँस लेने पर स्वायत्त नियंत्रण नहीं होता है) में बेहतर काम करते हैं।

कोविड-19 महामारी के दौरान नए संस्करण

वर्ष 2020 की शुरुआत में कोविड-19 महामारी के प्रकोप के दौरान आधुनिक वेंटिलेटर की तत्काल वैश्विक कमी होने लगी थी। ये वेंटिलेटर कोविड-19 से प्रभावित गंभीर मरीज़ों के लिए आवश्यक थे। अत: उस समय कुछ उद्यमों के द्वारा आयरन लंग के नए और सरल संस्करणों को विकसित करने पर विचार किया गया और यूनाइटेड किंगडम में चिकित्सको, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक टीम ने “एक्सोवेंट” नामक एक वेंटिलेटर का निर्माण किया। ‘एक्सोवेंट’ का निर्माण आयरन लंग मशीन की अवधारणा को ध्यान में रखकर ही किया गया था।

संक्षेप में…

आयरन लंग मशीन ने 1940 और 1950 के दशक में जब पोलियो महामारी से प्रभावित लोग साँस न ले पाने के कारण मर रहे थे, तब लोगों का जीवन बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ड्रिंकर, एमर्सन और बोथ रेस्पिरेटर आयरन लंग के महत्त्वपूर्ण उदाहरण रहे हैं।

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