विकलांगता यह शब्द सुनते ही आप क्या कल्पना करते हैं? शायद कोई व्हीलचेयर या बैसाखी इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति! या फिर शायद कोई ऐसा व्यक्ति जिसके पैर, हाथ या आँखें न हों! या फिर हो सकता है कि आप किसी ऐसे व्यक्ति की भी कल्पना कर लें जिसके कानों में सुनने की मशीन लगी हो!
लेकिन क्या आपको पता है कि हर प्रकार की विकलांगता को ऐसे प्रत्यक्ष रूप में देखा नहीं जा सकता। कुछ विकलांगताएँ अदृश्य भी होती हैं। इनके अदृश्य होने का यह कतई मतलब नहीं है कि वे उन विकलांगताओं से कम परेशानियों भरी हैं जिनको हम प्रत्यक्ष रूप में देख सकते हैं। अक्सर अदृश्य विकलांगता से जूझ रहे लोगों को बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है क्योंकि लोग उन्हें विकलांग व्यक्ति के रूप में देखते ही नहीं और उनकी तकलीफ़ों को झूठा मान लेते हैं।
आइये आज बात करते हैं अदृश्य विकलांगता के विषय में!
अदृश्य विकलांगता क्या है?
अदृश्य विकलांगता की परिभाषा बताती है कि यह शारीरिक, मानसिक या तंत्रिका-सम्बन्धी ऐसी स्थिति है जिसका असर बाहर से दिखाई नहीं देता किन्तु यह प्रभावित व्यक्ति की इन्द्रियों को प्रभावित करती है व दिनचर्या की आम गतिविधियों में बाधा उत्पन्न करती है।
अदृश्य विकलांगता किसी एक विकलांगता का नाम नहीं है बल्कि यह एक व्यापक शब्द है जिसके अंतर्गत अनेक ऐसी बीमारियाँ व विकलांगताएँ सम्मिलित हैं जो सामने से तो नज़र नहीं आती लेकिन व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं।
कई बार अदृश्य विकलांगता से जूझ रहे लोगों पर ऐसे आरोप लगते हैं कि वे बीमारी का नाटक कर रहे हैं या फिर उनकी विकलांगता महज़ उनकी कल्पना है।
कुछ श्रवणबाधित व्यक्ति सामने से दिख जाने वाली सुनने की मशीन का इस्तेमाल नहीं करते। कुछ दृष्टिबाधित व्यक्ति चश्मों की जगह कांटेक्ट लेंस का इस्तेमाल करते हैं। दोनों ही मामलों में व्यक्ति की विकलांगता सामने वाले के लिए अदृश्य होगी।
मानसिक विकलांगताएँ व्यक्ति के जीवन के हर पहलु को प्रभावित करती हैं लेकिन वे सामने वाले को नज़र नहीं आती इसलिए उन्हें समझना या स्वीकार करना लोगों के लिए मुश्किल होता है। यही स्थिति किडनी के रोगियों या मधुमेह और कैंसर जैसे रोगों से जूझते व्यक्तियों की होती है।
पुराने दर्द और थकान से जुड़े कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनकी वजह से प्रभावित व्यक्ति के लिए कई बार बिना सहारे चल पाना या कोई काम कर पाना भी मुश्किल होता है। दर्द या थकान के घटते-बढ़ते रहने के कारण व्यक्ति की स्थिति हर दिन एक-सी नहीं होती। किसी दिन व्यक्ति बिना सहारे के चल पाता है तो किसी दिन उसे सहारे (या व्हीलचेयर तक) की ज़रूरत पड़ जाती है। ऐसे लोगों को लेकर अन्य लोगों में अक्सर ग़लतफ़हमी उत्पन्न हो जाती है।
अदृश्य विकलांगता के प्रभाव
चूँकि अदृश्य विकलांगता के अंतर्गत कई प्रकार की विकलांगताएँ सम्मिलित हैं तो व्यक्ति के शरीर, दिनचर्या और जीवन पर उस स्थिति का क्या असर होगा यह उसकी बीमारी/विकलांगता और उसकी तीव्रता पर निर्भर करेगा। लेकिन, सामाजिक असर हर अदृश्य विकलांग व्यक्ति पर अमूमन एक जैसा ही होता है।
लोग उनकी विकलांगता को देख नहीं पाते और इसके कारण वे उनकी तकलीफ़ों को ठीक से समझ भी नहीं पाते। उदाहरण के तौर पर यदि बैंक या किसी अन्य कार्यालय में लम्बी कतार लगी हो और कोई व्हीलचेयर पर बैठा व्यक्ति वहाँ आये तो ज़्यादातर लोग ख़ुद ही उसे अपना काम पहले करा लेने के लिए आगे कर देंगे। लेकिन, फाईब्रोमाइलजिया या ऐसी ही किसी अन्य बीमारी के कारण असहनीय दर्द झेलता कोई व्यक्ति कतार में आगे जाने के लिए कहे तो शायद ही कोई उसे ऐसा करने की इज़ाज़त देगा। जबकि कतार में इंतज़ार कर लेना शायद व्हीलचेयर पर बैठे व्यक्ति के लिए अपेक्षाकृत आसान ही हो।
अन्य लोगों द्वारा समझे न जाने के कारण अक्सर अदृश्य विकलांगता से प्रभावित व्यक्तियों को आलसी, कमज़ोर, गैर-सामजिक होने जैसे तमगो से नवाज़ दिया जाता है। इसका बुरा असर उस व्यक्ति के आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान पर भी पड़ता है। विद्यालय, महाविद्यालय, दफ़्तर आदि जैसे सार्वजनिक स्थानों पर भी अदृश्य विकलांगता से जूझ रहे लोगों को काफ़ी दिक्कतों और ग़लतफ़हमियों का सामना करना पड़ता है।
अंत में…
यह सही है कि अदृश्य विकलांगता से जूझते लोगों की तकलीफ़ों को समझ पाना मुश्किल है क्योंकि हम उनकी विकलांगता को देख नहीं पाते लेकिन एक सहानुभूतिपूर्ण व्यक्ति बनना इतना मुशिकल तो नहीं है न? बेशक हम किसी व्यक्ति को देखते ही उसकी तकलीफ़ों का अंदाज़ा नहीं लगा सकते लेकिन अपने अन्दर यह समझ तो पैदा कर सकते हैं कि हमें नहीं पता कि हमारे सामने खड़ा कोई भी व्यक्ति कितनी तकलीफ़ों के साथ जी रहा है।