यूँ तो जीवन में कई प्रकार के लोगों से मुलाक़ात हुई और उनके से कई अंतरंग मित्र भी बने; लेकिन मैं आज एक ख़ास दोस्त का ज़िक्र करना चाहता हूँ। मेरे यह मित्र शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद अपनी अद्भुत ‘विल पावर’ के बल पर जीवन की विसंगतियों को अपनाते हुए प्रसन्नतापूर्वक जी रहे हैं। इनका नाम है देश के प्रसिद्ध छायाकार और फोटोग्राफ़ी-शिक्षक गिरीश मिस्त्री; जो मुंबई में रहते हैं और ‘शारी अकेडमी’ नाम का प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़ी स्कूल चलाते हैं। यह देश का एक अनूठा फोटोग्राफ़ी स्कूल है।
मुंबई में रहते हुए गिरीश जी से मेरी मुलाक़ात लगभग हर शनिवार को प्रसिद्ध जहाँगीर आर्ट गैलरी में हो जाती थी। यहाँ वे कला प्रदर्शनी देखने नियमित आया करते थे।
हमारी निकटता बढ़ी – जब वे अपने फोटोग्राफ़ी संस्थान ‘शारी एकेडमी’ में वीडियो और फ़िल्म प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम शुरू करना चाह रहे थे। तब हमारे मित्र जयशंकर शर्मा ने पहल की थी और मैंने हफ़्ते में दो दिन उनके यहाँ फ़िल्म की ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया था। इस दौरान ही मुझे गिरीश जी के बारे में और अधिक जानने का मौक़ा मिला था।
गिरीश जी कई वर्षों से व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं पर हमारे कॉमन मित्र जयशंकर शर्मा उनको तब से जानते हैं जब वे अपने दोनों पैरों पर चलते थे और प्रोफ़ेशनल फोटोग्राफ़ी में एक जाना-माना नाम थे। फिर एक दिन अचानक उनके ऊपर दु:खों का पहाड़ टूटा था जब उनके दोनों पैर ख़राब हो गए। गिरीश बताते हैं कि वे उनके सबसे भयावह दिन थे – जब उनके मित्र, नाते-रिश्तेदार कन्नी काटने लगे थे। ऐसे में उनकी माँ ने उनको सहारा दिया था।
एक सक्रिय व्यावसायिक फोटोग्राफर बिना पैरों के क्या करता? ऐसे में उन्होंने फोटोग्राफ़ी प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया।
उनकी पहली कक्षा में कुछ विद्यार्थी आए और लगा कि काम बन गया। दूसरी कक्षा में सिर्फ़ एक ही विद्यार्थी का नामांकन हुआ और गिरीश जी ने सोचा कि इस बार क्लास कैंसिल कर देते हैं। पर जब वह छात्र आया तो रोने लगा। वह अपने गाँव से किसी तरह कुछ पैसे जमा करके फोटोग्राफ़ी सीखने आया था। ऐसे में गिरीश जी ने उस एक विद्यार्थी को लेकर अपनी क्लास चलायी ताकि उसे बिना सीखे वापस न जाना पड़े।
अब तो इस फोटोग्राफ़ी स्कूल को 25 से ज़्यादा साल हो चुके हैं और उनकी ‘शारी एकेडमी’ के विद्यार्थी देश के कोने-कोने में है। कुछ तो देश के बहुत सफल फ़ोटोग्राफ़र भी है जो गिरीश जी के इस स्कूल से ही निकले हैं। गिरीश ये बताते हैं कि “व्हीलचेयर पर बैठ कर मेरा जीवन कैसा हो जाता – क्या करता घर पर बैठ कर? TV देखता रहता!”
फोटोग्राफ़ी में सक्रिय रहकर अपने मानवीय गुणों और कठिनाइयों के बावजूद स्वयं को विकसित करते हुए उन्होंने एक सफल व्यक्ति के रूप में अपने आपको स्थापित किया।
स्टूडियो फोटोग्राफ़ी की जैसी शिक्षा व्यवस्था उनके स्कूल में उपलब्ध है – वह अद्भुत है। इसका प्रमुख कारण है कि उनके यहाँ काम करने वाले लोग पूरी तरह से समर्पित हैं – जिन्हें वहाँ आने-जाने वाले प्रशिक्षकों छात्र-छात्राओं का भरपूर स्नेह मिलता है। करोना काल के बाद मेरे लिए संभव नहीं रहा कि मैं मीरा रोड मुंबई के अपने आवास से लोकल ट्रेन के ज़रिए उनके यहाँ पढ़ाने जा सकूँ और इसके चलते मेरी मुलाक़ात भी उनसे से नहीं हुई। अभी पिछले महीने ही उनके ऑफ़िस से फ़ोन आया था – “रवि सर स्टूडेंट्स का वार्षिक एक्जीबिशन है – आप आएंगे न?”
पर, अफ़सोस, मैं नहीं जा सका क्योंकि अब मैं दिल्ली में रहता हूँ।
His ability to not give up is inspiration for many of us ….👏
ज़िन्दगी ख़्वाब नहीं कि बिखर जाएगी
जितना अपनाएगें सँवर जाएगी।।
गिरीश सर ने इन शब्दों को सार्थकता दी है।🙏