हम अक्सर छोटे बच्चों के परिजनों की गर्वोक्तियाँ सुनते हैं कि उनके बच्चे ने कितनी जल्दी बैठना, लुढ़कना, चलना, बोलना, ख़ुद खाना आदि शुरू कर दिया। आजकल तो लोग सोशल मीडिया पर फ़ोटो या वीडियो आदि माध्यमों से इन जानकारियों को एक तरह से पूरी दुनिया से ही साझा करने लगे हैं। उनके सभी शुभचिंतक इन सोशल मीडिया चैनल के ज़रिये बच्चे की इन उपलब्धियों का जश्न भी मनाते हैं। लेकिन, ये बातें उन परिजनों के लिए अत्यंत तनाव का विषय बन जाता है जिनके बच्चे कुछ धीमी गति से आगे बढ़ रहे हों।
हालाँकि छोटे बच्चे वाले परिवारों में बच्चों के विकास की गति हमेशा से चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रही है लेकिन सोशल मीडिया ने इसकी पुनरोक्ति को बढ़ा दिया है। जहाँ भी ऐसी कोई चर्चा चलती है तो 20 वर्ष के युवा की भी माँ बताती है कि उनके बच्चे ने किस उम्र में विकास के मील के पत्थरों को पार किया था। यदि कोई बच्चा सामान्य कही जाने वाली गति से नहीं बढ़ रहा तो ये चर्चाएँ उसके परिजनों के लिए काफ़ी तनावयुक्त हो सकती हैं। ऐसे मामलों में उनके मन पर विकलांगता का डर हावी हो जाना भी सामान्य ही है।
हालाँकि यदि कोई बच्चा अपने हमउम्र बच्चों से कुछ देरी से बढ़ रहा है तो ज़रूरी नहीं कि उसे कोई विकलांगता ही हो।
विकासात्मक विलम्ब और विकासात्मक विकलांगता दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं। आइये इन दोनों के बीच अंतर के बारे में विस्तार से जानते हैं।
विकासात्मक विलम्ब की परिभाषा
आसान शब्दों में विकासात्मक विलम्ब उस स्थिति को कहते हैं जब कोई बच्चा विकास के ज़रूरी पड़ावों, जैसे कि बैठना, चलना, बोलना आदि तक देर से पहुँचता है। यदि किसी बच्चे के हमउम्र बच्चे चलना सीख गए और वह बच्चा अभी खड़ा ही हो पा रहा है तो हम यह कह सकते हैं कि बच्चे के विकास में थोड़ा विलम्ब हो रहा है।
हालाँकि विकासात्मक विलम्ब किसी विकलांगता या अन्य गंभीर समस्या की तरफ़ इंगित कर सकता है लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। बच्चों के विकास का क्रम या वक़्त बिल्कुल निर्धारित नहीं होता। अलग-अलग बच्चे अलग-अलग तरीके से विकसित होते हैं। कोई बच्चा पहले बोलना सीख लेता है तो कोई बच्चा पहले दौड़ने लगता है। कुछ बच्चे देर से खड़े होते हैं लेकिन खड़े होते ही आराम से चलने लगते हैं जबकि कुछ बच्चे धीरे-धीरे खड़े होना और फिर एक-एक क़दम चलना शुरू करते हैं। कुछ देर से बोलना सीखने वाले बच्चे छोटे-छोटे शब्द सीखने की बजाए सीधे पूरे वाक्य में बात करना शुरू कर देते हैं। हर बच्चे के विकास की अपनी गति और अपना तरीका होता है।
विकासात्मक विकलांगता की परिभाषा
विकासात्मक विकलांगता वह स्थिति है जिसमें किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी या विकलांगता के कारण बच्चे के सामान्य विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। यह विकासात्मक विलम्ब की तरह कोई सामान्य स्थिति नहीं है।
विकासात्मक विकलांगता की स्थिति में जितना जल्दी हो सके बच्चे को उचित चिकित्सा मिलनी चाहिए। यह जितना जल्दी हो बच्चे के लिए उतना ही बेहतर होता है। हालाँकि अक्सर विकासात्मक विकलांगता पूरी ज़िन्दगी रहती है लेकिन सही वक़्त पर उचित चिकित्सा दिला कर बच्चे पर विकलांगता के असर को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है।
विकासात्मक विलम्ब की स्थिति में माता-पिता को क्या करना चाहिए?
जैसा की हमने बताया, विकासात्मक विलम्ब विकासात्मक विकलांगता की ओर इंगित कर सकता है। ऐसे में बेशक आपको सतर्क तो रहना चाहिए लेकिन तनाव में बिल्कुल नहीं रहना चाहिए। तनाव से आप ख़ुद के अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बिगाड़ सकते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखें
बच्चे के विकास की गति पर ध्यान रखने के लिए आपके लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना बहुत ज़रूरी है। बच्चे के विकास की गति सामान्य है या नहीं इस बात को परखने के लिए आपके पास Child Development Milestone Chart होना चाहिए। यह चार्ट किसी विश्वसनीय स्रोत से ही प्राप्त करें। आप अपने बच्चे के चिकित्सक से भी यह चार्ट माँग सकते हैं। इस चार्ट में यह जानकारी होती है कि किस उम्र से किस उम्र तक बच्चे को विकास के किस पड़ाव तक पहुँच जाना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर, दो महीने तक के बच्चे को माता-पिता या अन्य लोगों को देख कर मुस्कुराना और छह महीने तक हँसना आ जाना चाहिये।
यदि वैज्ञानिक रूप से तैयार किये गए चार्ट के मुताबिक आपका बच्चा विकास के एक या अधिक पड़ावों तक पहुँचने में देर कर रहा हो तब आपको चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
नोट: Development Milestone Chart पत्थर की लकीर नहीं होते। हो सकता है एक या दो पड़ावों के छूटने के बाद भी चिकित्सक आपको बताएँ कि आपका बच्चा सामान्य है।
किसी दूसरे बच्चे से तुलना न करें
अक्सर माँ-बाप पड़ोस या परिवार के किसी दूसरे हमउम्र बच्चे से अपने बच्चे की तुलना करते रहते हैं। कई बार तो यह तुलना बड़े भाई या बहन से भी होती है कि वह तो इतने महीने में बैठना सीख गया था यह अभी तक नहीं सीखा। ऐसी सभी तुलना बेबुनियाद हैं और इससे न आप अपना कोई भला करते हैं न बच्चे का। जैसे कि हमने पहले भी कहा कि हर बच्चे के विकास की अपनी गति होती है। तुलनात्मक ढंग से आपके बच्चे के विकास की गति धीमी होना ज़रूरी नहीं कि दुखद हो; और न ही उसका तेज़ होना कोई बड़ी ख़ुशख़बरी होती है। यदि आपका बच्चा किसी अन्य बच्चे से पहले खड़ा होना सीख गया है तो हो सकता है वह दूसरा बच्चा पहले दौड़ना सीख ले।
बच्चों की तुलना कर के उनके विकास की गति को तब ही मापा जाना चाहिए जब आपके पास तुलना करने के लिए बहुत सारे बच्चे हों। यदि आप एकदम एक ही उम्र के दर्जनों बच्चों से तुलना करके अपने बच्चे के विकास की गति को धीमा या तेज़ बताते हैं तब आप सही हो सकते हैं। ऐसे में भी ध्यान दें कि क्या आपका बच्चा अनेक विकासात्मक पड़ावों पर पीछे छूट रहा है? यदि हाँ, तो आपको चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
अंत में…
बच्चे के विकास की गति में उसके आस-पास के वातावरण का बहुत योगदान होता है। छोटी-सी उम्र से ही आप अपने बच्चे से बात करना, उनके साथ खेलना, उन्हें नयी चीजों से परिचित कराना शुरू करते हैं तो बच्चे तेज़ी से विकास करते हैं। सिर्फ़ बच्चों के विकास की गति पर ध्यान देने की बजाए उसे बढ़ाने पर भी ध्यान दें। मोबाइल, टीवी जैसे उपकरणों से बच्चों को जितना दूर रखें उतना बेहतर होगा। यदि आपको लगता है कि आपके बच्चे के विकास की गति धीमी है तो चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिये।