सोच, समझ, स्मृति, मनोदशा, धारणा, व्यवहार, निर्णय लेने की क्षमता आदि को प्रभावित करने वाली सैंकड़ो मानसिक बीमारियाँ एक व्यापक शब्द ‘मानसिक विकार’ के अंतर्गत रखी जाती हैं। अमेरिका के मनोरोग एसोसिएशन के द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में तो 300 से अधिक प्रकार के मानसिक रोगों को सूचीबद्ध किया गया है। इस क्षेत्र में बढ़ती जानकारियों के साथ यह सूची थोड़ी और लम्बी भी होती जा रही है।
अच्छी बात यह है कि ज़्यादातर मानसिक बीमारियों को दवाई या थेरेपी आदि से प्रबंधित कर के एक सामान्य जीवन जिया जा सकता है। यह ज़रूरी है कि हम मानसिक बीमारियों के बारे में सजग रहें ताकि सही वक़्त पर सही चिकित्सीय परामर्श ले सकें। हमने मानसिक विकार और उससे जुड़े मुद्दों के विषय में पहले के आलेखों में भी चर्चा की है।
आइये आज जानते हैं कुछ सामान्य मानसिक बीमारियों के बारे में…
1. एंग्जायटी डिसऑर्डर
कभी-कभार तो हम सभी ज़िन्दगी में किसी-न-किसी चिंता में पड़ते ही हैं लेकिन जब चिंता करने की आदत हद से बढ़ जाए तो वह मानसिक बीमारी का रूप ले सकती है। एंग्जायटी डिसऑर्डर से प्रभावित लोगों में चिंता इस हद तक बढ़ जाती है कि वह उनके रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित करने लगती है। एंग्जायटी डिसऑर्डर विभिन्न तरीके के हो सकते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति किस विषय पर चिंता करता है।
यह समझना ज़रूरी है कि एंग्जायटी डिसऑर्डर से प्रभावित लोगों का अपने चिंता करने या घबराने की आदत पर कोई वश नहीं होता। आपको उन्हें चिंता न करने की नसीहत देने या उन्हें यह कहने से बचना चाहिए कि वे बेवजह ही घबराते रहते हैं। उन्हें चिकित्सीय परामर्श की ज़रूरत होती है।
2. अवसाद (डिप्रेशन)
डिप्रेशन ऐसा शब्द है जो हम आए दिन सुनते या इस्तेमाल करते रहते हैं। डिप्रेशन में व्यक्ति का मूड खराब होता है, उनमें उर्जा व उत्साह की कमी हो जाती है और किसी भी काम से उनकी रुचि समाप्त हो जाती है। कई बार अवसाद के मरीज़ों में आत्महत्या का विचार भी काफ़ी प्रबल हो जाता है।
अक्सर उदासी की स्थिति में कई लोग यह कह देते हैं कि वे डिप्रेशन में हैं लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि डिप्रेशन सामान्य उदासी से बहुत अलग और भयावह है। यदि सही समय पर सहायता मिले तो व्यक्ति डिप्रेशन से बाहर आ सकता है और ऐसा न होने पर उसकी पूरी ज़िन्दगी भी प्रभावित हो सकती है।
3. ईटिंग डिसऑर्डर
आजकल ईटिंग डिसऑर्डर भी काफ़ी सामान्य होता जा रहा है। यह डिसऑर्डर कई प्रकार का होता है – कुछ लोगों को ज़्यादा खाने की आदत हो जाती है तो कुछ लोग खाना लगभग त्याग ही देते हैं। सामान्य खाने के तरीके में होने वाली विभिन्न तरह की असामान्यताएँ ईटिंग डिसऑर्डर के अंतर्गत आती हैं और प्रभावित व्यक्ति पर इसके शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नकारात्मक असर पड़ते हैं।
किसी भी मानसिक बीमारी की तरह ईटिंग डिसऑर्डर से प्रभावित व्यक्ति भी बगैर चिकित्सीय सहायता के अपनी आदतों को बदल नहीं सकता। कई बार ईटिंग डिसऑर्डर से प्रभावित व्यक्तियों को उनके कम या ज़्यादा वजन के कारण मज़ाक का निशाना बनाया जाता है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिये।
4. स्किज़ोफ़्रेनिया
यह एक बहुत ही जटिल मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति की सोच और भावनाएँ प्रभावित होती हैं। कई बार वास्तविकता को देखने का नज़रिया भी प्रभावित होता है और व्यक्ति ऐसी चीजों को देखने, सुनने और महसूस करने लगता है जो वास्तव में होती भी नहीं हैं।
स्किज़ोफ़्रेनिया से प्रभावित व्यक्तियों में आत्महत्या का ख़तरा भी अधिक होता है।
5. पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर
पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पी.टी.एस.डी.) एक ऐसी मानसिक बीमारी है जो किसी भी तरह के आघात या ट्रॉमा को झेलने के बाद मानसिक स्थिति के बिगड़ने से होती है। यह स्थिति किसी दर्दनाक घटना को झेलने या उसका साक्षी होने वाले व्यक्ति में एक प्रतिक्रिया के रूप में विकसित होती है। यह अक्सर भयंकर दुर्घटना, बलात्कार, किसी प्राकृतिक आपदा या किसी प्रियजन की मृत्यु आदि जैसी घटनाओं के परिणामस्वरूप होता है।
पी.टी.एस.डी. का असर कई बार व्यक्ति पर जीवन भर रहता है और व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता रहता है।
6. ओब्सेस्सिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर
यह एक ऐसा डिसऑर्डर है जिससे प्रभावित व्यक्ति के मन में बार-बार अवांछित विचार या संवेदनाएँ आती रहती हैं। इन विचारों और संवेदनाओं से छुटकारा पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति बार-बार कुछ करने के लिए मजबूर महसूस करता है।
कुछ लोग घर की साफ़-सफाई करने में लगे रहते हैं, कुछ आवश्यकता से कहीं अधिक बार हाथ धोने या स्नान करने में लगे रहते हैं। ओ.सी.डी. से प्रभावित व्यक्तियों को चिकित्सीय सहायता मिलना ज़रूरी होता है।
निष्कर्ष
चाहे कोई भी बिमारी हो यह ज़रूरी है कि आप मानसिक रोगों से प्रभावित व्यक्तियों के साथ संवेदनापूर्वक पेश आये। यह याद रखें कि मानसिक रोगों से प्रभावित व्यक्तियों का अपने व्यवहार या सोच पर कोई वश नहीं होता और वे बगैर चिकित्सीय सहायता के उसे बदल पाने में असमर्थ होते हैं। उन्हें इस बात के लिए मजबूर करना या उनका उपहास करना ग़लत है। जागरूक बनें, संवेदनशील बनें!