अँधेरे से प्रकाश की ओर
उन्होंने अपंग व्यक्तियों की भावनाओं को समझा. अपने जैसे ही और शारीरिक विकलांगता, अपंगता वाले व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश का उजियारा भरने की दिशा में आज वो अपना पहला कदम आगे बढ़ाने को तत्पर है।
उन्होंने अपंग व्यक्तियों की भावनाओं को समझा. अपने जैसे ही और शारीरिक विकलांगता, अपंगता वाले व्यक्तियों के जीवन में प्रकाश का उजियारा भरने की दिशा में आज वो अपना पहला कदम आगे बढ़ाने को तत्पर है।
युवराज सिंह, हरभजन सिंह और सुरेश रैना का वायरल “तौबा तौबा” वीडियो विकलांगता और विकलांगजन का मज़ाक बनाता है। इन खिलाड़ियों और अधिक ज़िम्मेदार होने की आवश्यकता है
जाने क्यों लोग विकलांग व्यक्तियों को हमेशा दीन-हीन ही मानते हैं या दीन-हीन रूप में ही देखना चाहते हैं!? उनके प्रति झूठी हमदर्दी और तरस दिखाते हैं! पता नहीं कब वे जानेंगे और मानेंगे कि विकलांग लोगों को उनकी झूठी तो छोड़ो सच्ची हमदर्दी और तरस भी नहीं चाहिए। यदि कुछ चाहिए तो वह है सिर्फ़ –“समानता का नज़रिया”।
संजीव अक्सर अपने भाग्य को कोसता और सोचता कि आखिर उसकी शादी एक अपाहिज महिला से क्यों की गई? कुछ रिश्तेदारों ने तो यह नसीहत दे डाली की इस अपाहिज को छोड़ कर दूसरी शादी कर लो।
हीन भावना को जन्म न लेने दे। ऐसे दोस्त बनाये जो आपको मानसिक रूप से दृढ़ बनाये, आपका मनोबल बढ़ाएँ और आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
इस समय जो भी दोस्त, रिश्तेदार भावना से मिलने आते थे वे उसके परिवार वालों से यही कहते थे कि लड़की की ज़िन्दगी बर्बाद हो गई है। अब एक पैर न होने की वजह से उसके लिए कोई रिश्ता नहीं आएगा
सम्यक ललित द्वारा डिज़ाइन किये गये विकलांगता डॉट कॉम के नये लोगो की डिज़ाइन-फ़िलॉसफ़ी
डॉक्टर अयान की इतनी सारी खूबियों को ऑटिज्म का नाम देते हैं। पर अयान दुनिया के दिए नामों से अनजान अपनी ही दुनिया में ख़ुश है। और सही मायने में जीवन वही सार्थक है जब व्यक्ति अंदर से ख़ुश हो।
मैं कहीं भी आने-जाने के लिए हमेशा दूसरों पर निर्भर रहती थी। चाहे विद्यार्थी जीवन रहा, कॉलेज के दिन या ट्रेनिंग के दिन, मुझे आने-जाने के लिए हमेशा किसी के साथ की ज़रूरत पडती थी। जहाँ शादी से पहले यह साथ मेरे पापा ने दिया, वहीं शादी के बाद यह ज़िम्मेदारी मेरे पति के कंधों पर आ गयी।
इस यात्रा पर इतने अनजान लोगों के बीच रहते हुए भी मुझे यह अहसास हुआ कि विकलांगता पर थोड़ी-सी ही सही पर मैंने शायद कुछ विजय प्राप्त कर ली है।
आपने कई स्थानों पर देखा होगा कि यदि कोई किसी अनजान व्यक्ति से ग़लती से टकरा जाये तो सामने वाला गाली के रूप में कहता है “अँधा है क्या?” या किसी साधारण से कार्य को करने में ग़लती हो जाये तब सामने वाला गाली के रूप में कहता है “पागल है क्या?”
इस पूरे सफर में मैं सभी के चेहरों पर कुछ ढूँढ़ रही थी और जिसे न पाकर मैं बहुत खुश थी। पता है क्या…? वह थी—वह शिकन और असहजता जो अधिकतर किसी विकलांग व्यक्ति की मौज़ूदगी में गैर-विकलांग व्यक्तियों के चेहरे पर उभर आती है। वे लाख चाह कर भी अपनी असहजता को छुपा नहीं पाते; लेकिन मैं खुश थी कि इस “प्यारे अनुभव के सफर” में वह असहजता और शिकन मुझे कहीं नहीं मिली।
समाज अपनी सोच में थोड़ा बदलाव करे अपनी व्यवस्थाओं को थोड़ा-सा हमारे हिसाब से भी बदले तो पूरी दुनिया ही बहुत खूबसूरत हो सकती है और विकलांगों के संघर्ष बहुत हद तक कम किए जा सकते हैं।
मैं पिछले 13-14 साल से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का एक पेशेंट हूँ। फ़िलहाल मैं दो वर्ष पहले हुई मेरी स्पाइन सर्जरी के वक़्त दोस्तों द्वारा की गई मदद के बारे मे बताना चाहूँगा।
विवाह के पश्चात जहाँ सबकी परिस्थितियाँ बदल जाती है, वहीं विकलांगजन को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ख़ासकर तब अगर वह एक लड़की है। विवाह के बाद नये घर में जाना, वहाँ सबके साथ तालमेल बिठाना, नए माहौल में सामंजस्य बिठाना उसके लिए किसी पहाड़ पर चढ़ने से कम नहीं होता। जाने अनजाने में किये गए कटाक्ष उसके हृदय को चीर देते हैं।