इलाज या सनक?
विकलांग व्यक्तियों के साथ ऐसा होते बहुत ज्यादा देखा जाता है। इलाज के नाम पर किए जाने वाले झाड़-फूँक, टोने-टोटके फ़िल्म में काल की तरह असंभव को संभव करने की हमारी सनक नहीं तो और क्या है?
ख़ुद से बातें — विकलांगता डॉट कॉम पर प्रदीप सिंह का कॉलम
विकलांग व्यक्तियों के साथ ऐसा होते बहुत ज्यादा देखा जाता है। इलाज के नाम पर किए जाने वाले झाड़-फूँक, टोने-टोटके फ़िल्म में काल की तरह असंभव को संभव करने की हमारी सनक नहीं तो और क्या है?
अफसोस कि दुनिया में रहकर भी वह चारों तरफ अजनबी-सा तकता है। तुम्हारे इस कुशाग्र बुद्धि जीव को तुम्हारी भी कोई खबर नहीं। क्या तुम भी भूल गए हो उसे? इतनी भी क्या बेखबरी? कहलाते तो सर्वज्ञाता हो।
एक-एक कर उनकी सेवा समिति की 6 एम्बुलेंस शहर भर में घूमने लगी हादसों में गिरे लोगों को तुरंत हस्पताल पहुँचाने के लिए। उनके द्वारा स्थापित भाई कन्हैया जी सेवा समिति (अब जो भाई कन्हैया जी मानव सेवा ट्रस्ट है) द्वारा आश्रम चला दिए जहाँ लावारिस बेसहाराओं को रिहायश, दवाएं, भोजन और कपड़े मुहैया कराए जाते।
आदत रूपी विकलांगता बहुत व्यापक असर रखती है। अक्सर इसका निदान अपने ही पास होता है जैसे कि समय-समय खुद ही खुद को जाँचते रहना कि कहीं हमारी आदतें लत तो नहीं बन रही।
वैसे तो इस व्हीलचेयर क्रिकेट मैच में सब कुछ था लेकिन दर्शकों का अभाव बहुत था। आयोजकों, प्रायोजकों, और आमंत्रित अतिथिगण को मिलाकर मुश्किल से 250-300 लोग ही होंगे।
अगर सोसाइटी के शिखर पर ही पकड़ बनाने की कोशिश की जाए तो क्या मुमकिन नहीं हो सकता। हो सकता है सच में कोई विदेशी नामचीन नेता कह उठे – ‘अ प्राइमनिस्टर ऑन व्हील्स’।
विकलांगता केवल उदासी, अकेलेपन, मजबूरी, और बेचारगी नहीं होती। उससे कहीं आगे की यात्रा होती है। विकलांगों को अजीब नजरों से देखना बंद कीजिए, उन्हें दोस्त की तरह अपना कर देखें।
पिछले किसी जन्म में तुम भी इसके (विकलांग) किए गुनाहों में सहभागी थे इसलिए तुम भी सज़ा के बराबर हकदार हो। तुमने इसके किए गुनाह में ऐसे साथ दिया इसलिए तुम इसकी माँ बनी, तुम फलां तरीके से जुर्म में शामिल थे इसलिए तुम इसके पिता हो। इसकी सेवा तुम्हारे हिस्से आई है तुम्हारा जन्म सफल हुआ समझो।
अब जब भी कोई कहीं इस शब्द से संबोधित करता है तो मन करता है कि उससे कहूँ कि अगर इसे दिव्यता कहते हैं तो आइये आप भी इस दिव्यता को जी कर देखिए।
खुद पर खुद का बोझ ज़ब नहीं होता। आवाज़ सुनकर जवाब देना मुश्किल लगता है तो जीवन भर के सन्नाटों को जीने वालों से क्या कहेंगे? किसी आवाज़ को आवाज़ से जवाब दे सकना इतना भी मुश्किल नहीं होता।
विकृतियों पर हँसने वाले या उन पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले और विकृतियों को देख उन पर अपने ‘ओह्ह बेचारे’ रूपी तेज़ाब छिड़कने वाले इस समाज पर तरस नहीं हँसी आनी चाहिए
सुविधाओं के नाम जितनी लीपापोती हमारे साथ की जा रही है शायद ही कहीं और होती हो। एक-दो जगहों को छोड़ कर बड़ी तस्वीर में देखें तो सुविधाओं के नाम पर बस लीपापोती ही मिलती है विकलांगजन को।
दीपावली व अन्य अवसरों पर होने वाले पटाखों के शोर से सेरेब्रल पाल्सी से प्रभावित लोगों को बहुत कष्ट होता है। इसी के बारे में प्रदीप सिंह के विचार।
सम्पूर्ण मानवता को धर्य, जिज्ञासा, अंगों का सही इस्तेमाल, कड़ी मेहनत, समर्पण और लगातार सीखते रहने की सीख हेलेन केलर अपने जीवित शब्दों के माध्यम से आज भी दे रही हैं।
हमारे परिवार समाज में एक अपवाद जैसे हैं — जहाँ हमें उतना ही लाड़-प्यार मिलता है जितना कि किसी नॉर्मल बच्चे को। जहाँ हर संभव तरीक़ा अपनाया जाता है कि हमें कोई तकलीफ न हो। हमारे साथ बर्ताव के दौरान हमारी विकलांगता को नजरअंदाज किया जाता है। ग़लती पर डाँटा जाता है, नाराज़गी जताई जाती है। दो-चार छींक या थोड़ा-सा बुखार आ जाये तो सभी परिवारजन अपने-अपने आज़माए नुस्खे बताने लगते है।